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Rajasthan: आठवीं में छोड़ी पढ़ाई, 16 साल की उम्र में बेटे की मौत से थी टूटी; अब युवा महिला उद्यमियों के लिए बनी प्रेरणा

NDTV Emerging Business Conclave: बाड़मेर ज़िले की रूमा देवी (Ruma Devi) दुनिया भर में राजस्थान का नाम रोशन कर रही हैं. . एनडीटीवी राजस्थान के इमर्जिंग बिज़नेस कॉन्क्लेव में शिरकत करके उन्होंने महिला सशक्तिकरण और अपने जीवन के उतार-चढ़ाव पर बात की.

Rajasthan: आठवीं में छोड़ी पढ़ाई, 16 साल की उम्र में बेटे की मौत से थी टूटी; अब युवा महिला उद्यमियों के लिए बनी प्रेरणा
Ruma Devi

Ruma Devi Success Story: राजस्थान के बाड़मेर ज़िले की रूमा देवी (Ruma Devi) दुनिया भर में  राजस्थान का नाम रोशन कर रही हैं. उन्हें हार्वर्ड विश्वविद्यालय ( Howard University) में कई बार व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है और वे देश-विदेश में एक फैशन आइकन के रूप में भी नाम कमा रही हैं. आज की युवा महिला उद्यमियों में भी उनका नाम सबसे ऊपर आता है. एनडीटीवी राजस्थान के इमर्जिंग बिज़नेस कॉन्क्लेव में शिरकत करके उन्होंने महिला सशक्तिकरण और अपने जीवन के उतार-चढ़ाव पर बात की. उन्होंने बालिका शिक्षा से लेकर महिला सशक्तिकरण तक हर विषय पर चर्चा की.

भावों में पला-बढ़ा बचपन

ड्रेस डिजाइनर रूमा देवी ने कॉन्क्लेव में अपनी जिंदगी के शुरुआती पहलुओं पर चर्चा करते हुए बताया कि उनका जन्म 1988 में बाड़मेर के राउसर गांव में हुआ था. जब वे मात्र चार साल की थीं, तब उनकी मां का साया उनके सिर से उठ गया. पिता ने दूसरी शादी कर ली, जिसके बाद घर की सारी जिम्मेदारियां कम उम्र में ही उनके कंधों पर आ गईं. आर्थिक तंगी के कारण उन्हें आठवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ना पड़ा.

दादी से सीखी थी कशीदाकारी

उस समय बाड़मेर के हर घर में कशीदाकारी का काम होता था, और उनकी दादी भी यही काम करती थीं. रूमा देवी ने अपनी दादी के पास बैठकर यह कला सीखी. घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी.

बच्चे के खोने के दर्द से मिली जीवन बदलने की प्रेरणा

रूमा देवी की शादी मात्र 16 साल की छोटी उम्र में कर दी गई, लेकिन घर के हालात जस के तस बने रहे. उनके पति ने भी पांचवीं कक्षा में ही पढ़ाई छोड़ दी थी. ऐसे में, उनके पास रोजगार का कोई ठोस साधन नहीं था जिससे वे घर चला सकें.

उन्होंने आगे बताया कि शादी के डेढ़ साल बाद उनके बच्चे को सांस की तकलीफ हुई. "मेरे पास उसके इलाज के लिए पैसे नहीं थे और उसकी मृत्यु हो गई." इस भयावह घटना ने रूमा देवी को अंदर तक झकझोर दिया. उन्होंने उसी पल ठान लिया कि वे ऐसी जिंदगी नहीं जीएगी. यह सदमा उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बना और 2008 से उन्होंने अपनी किस्मत खुद गढ़ने का काम शुरू किया.

ऐसे पड़ी रूमा फाउंडेशन की नींव

शुरुआत में रूमा देवी ने छोटे बैग बनाने का काम शुरू किया. इस पहल के लिए उन्होंने सबसे पहले 10 महिलाओं को एक साथ जोड़ा और 100-100  का समूह बनाकर एक संस्था बनाई. साल 2010 में, उन्होंने दिल्ली में अपनी पहली प्रदर्शनी लगाई. जिसमें 10 से 15 हजार रुपये की सेल हुई थी. जिससे उनकी हिम्मत बहुत बढ़ी. इस छोटी सी सफलता ने उन्हें गांव की अन्य महिलाओं को जागरूक करने और उन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए प्रेरित किया. रूमा देवी का मानना है कि हर महिला के पास रोजगार का साधन होना चाहिए. जिसके कारण रूमा फाउंडेशन की नींव पड़ी.

राजस्थान के हैंडीक्राफ्ट को विदेशों तक पहुंचना

  इसके बाद इस फाउंडेशन से जब महिलाओं की अपनी कमाई होना शुरू हुई, तो उनमें आत्मविश्वास आया.   अगली प्रदर्शनी में जब 10-15 हजार की बजाय 11 लाख रुपये की रिकॉर्ड बिक्री हुई, तो सभी महिलाएं खुशी से झूम उठीं. फाउंडेशन का भी मुख्य उद्देश्य यही है कि राजस्थान के हैंडीक्राफ्ट और यहां की कला को और बेहतर बनाना और अधिक से अधिक महिलाओं को इस उद्यम से जोड़ना है. तब से यह सिलसिला निरंतर चला आ रहा है.

भाषा, पहनावा और महिला सशक्तिकरण पर रूमा देवी के विचार

रूमा देवी भाषा और पहनावे को लेकर अपनी अलग राय रखती हैं.  उनका मानना है कि "हमारी भाषा, हमारा पहनावा ही ठीक है. हमें अपनी भाषा को ही मान्यता देनी चाहिए जो स्वतः लोगों को समझ आ जाएगा." एक सशक्त महिला उद्यमी के रूप में, रूमा देवी हमेशा बालिका शिक्षा को मजबूती प्रदान करने और बालिकाओं को हमेशा प्रोत्साहित करने पर जोर देती हैं. उनका यह महत्वपूर्ण संदेश कि "महिला महिला का सपोर्ट करे" एक ऐसे समाज की नींव रखता है जहां महिलाएं एक-दूसरे का हाथ थामकर आगे बढ़ें और सामूहिक रूप से सशक्त बनें.

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