राजस्थान के इस गांव में आज भी रात में जाने से लगता है डर


जैसलमेर से करीब 17 किलोमीटर दूरी पर स्थित इस खंडहर में सन्नाटा, रेगिस्तान का खालीपन दिखता है.

यहां के टूटे मकान, टूटी दीवारें डर को और भी बढ़ाती है. शाम 6 बजे के बाद यहां कोई नहीं आता-जाता है.


दौ सौ साल पहले इस गांव को एक श्राप मिला था जिसके कारण आज तक यह गांव विरान पड़ा है. 


 मान्यताओं और लोक कहानियों के हिसाब से इस गांव को पालीवाल ब्राह्मणों ने बसाया था.

5000 से ज्यादा लोग इस गांव में रहते थे. वे लोग यहां खेती-बाड़ी कर अपना जीवन चलाते थे.

उनकी रियासत का दीवान सालम सिंह था जो बड़ा ही अय्याश और मक्कार इंसान था.

उसकी बुरी नजर गांव के प्रधान की खूबसूरत बेटी पर थी. वह उसे पागलों की तरह पसंद करता था. 

उसने गांव वालों को पूर्णमासी तक लड़की उसे सौंपने का आदेश दिया, वरना अंजाम बुरा होने की धमकी दी.

दीवान की धमकी के बाद कुलधरा गांव की लड़की के लिए उन्होंने  रातों-रात गांव खाली करने का फैसला किया. 

कुलधरा गांव से जाते हुए वहां के पाली ब्राह्मणों ने इस गांव को श्राप दिया कि वहां कभी भी कोई भी व्यक्ति नहीं बस पाएगा

इस श्राप के बाद से यह गांव वीरान हो गया. जिसके बाद से फिर कोई भी वहां नहीं पहुंचा.

ये गांव अब भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है. प्रशासन से सुरक्षा के लिए यहां एक बोर्ड रखा गया जिसपर कुछ रोक बता रखी है.

वहीं सैलानियों के लिए  इसे दिन के समय यह खोला जाता है, वह यहां सुबह के 8 बजे से शाम के 6 बजे तक  घूमने सकते हैं