Rajasthan Election 2023 News: टिकटों के बंटवारे को लेकर जारी घमासान के बीच राजस्थान में नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. निर्वाचन आयोग द्वारा जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, सभी उम्मीदवार 6 नवंबर तक अपना पर्चा भर सकेंगे. इसी के चलते प्रदेश में सियासी हलचल बढ़ गई है. जगह-जगह बैठकों का दौर जारी है, और प्रत्याशी नामांकन के लिए शुभ मुहूर्त निकलवा रहे हैं. इस चुनावी माहौल में आज हम आपको राजस्थान की उन सीटों के बारे में बताएंगे जिन्हें कांग्रेस और बीजेपी का गढ़ कहा जाता है. साथ ही कुछ दिलचस्प आंकड़ों के साथ बात करेंगे कि कौन सी पार्टी पिछले 30 साल से चुनावी समीकरण पर अपनी पकड़ बना पाई है और कैसे आगामी चुनाव में क्या 3 दशक पुराने आंकड़े बदले भी जा सकते हैं? इसके लिए पार्टी को कितना जोर लगाना पड़ेगा, ये भी जानने की कोशिश करेंगे. पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट...
बीजेपी के 19 अभेद्य किले
राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों में कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जिन्हें कांग्रेस और बीजेपी का गढ़ कहा जाता है. ये वो सीटें हैं जहां 1993 के विधानसभा चुनाव से अब तक 6 में से 5 बार एक ही पार्टी को जीत मिलती रही है. सबसे पहले बात करते हैं उन 19 सीटों की जहां बीजेपी ने वर्ष 1993 से अभी तक 5 बार कमल खिलाया है. इनमें चूरू, विराटनगर, अजमेर उत्तर, ब्यावर, जैतारण, बाली, सूरसागर, जालौर, रेओदर, उदयपुर, प्रतापगढ़, राजसमंद, आसींद, भीलवाड़ा, कोटा दक्षिण, लाडपुरा, छाबड़ा, झालरापाटन और मनोहरथाना सीट का नाम शामिल है. इनके अलावा पाली में 6 के 6 चुनाव बीजेपी ने जीते हैं.
चूरू
इस सीट को बीजेपी का गढ़ माने जाने वाली इस सीट से नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ विधायक चुनकर आते हैं. अबकी बार राठौड़ तारानगर से चुनाव लड़ रहे हैं. 1990 से लेकर अब तक के चुनाव में बीजेपी को 6 में से 5 चुनाव में जीत मिली. 1990 में जनता दल के टिकट पर चुनाव जीतने वाले राजेंद्र राठौड़ बाद में बीजेपी में आ गए और यहां से लगातार चुनाव जीतते रहे हैं.
विराटनगर
ये विधानसभा सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां पर 6 में से 5 चुनाव में बीजेपी को जीत मिली. 2008 के बाद से यहां पर हुए 3 चुनाव में 2 बार बीजेपी को जीत मिली, जबकि एक बार कांग्रेस के खाते में यह जीत गई. 2008 में बीजेपी के फूलचंद भिंडा ने कांग्रेस के रामचंद्र को हराया था. 2008 चुनाव में बीजेपी के सुरेंद्र पारीक जीते थे.
जैतारण
यहां से पुष्पेंद्र सिंह बीजेपी विधायक हैं. यह पाली जिले में है. बीजेपी के सुरेंद्र गोयल ने यहां से 1990 में पहली बार चुनाव में जीत हासिल की. फिर 1993 और 1998 में लगातार भी चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाई. फिर 2003 में भी सुरेंद्र गोयल विजयी हुए. उसके बाद पुष्पेंद्र सिंह बीजेपी विधायक चुने गए.
ब्यावर
अजमेर की इस सीट से बीजेपी के शंकर सिंह रावत विधायक हैं. पिछले 3 बार से लगातार बीजेपी जीत रही है. यहां कांग्रेस के पारसमल जैन चुनाव हार गए. अजमेर जिले में 18 लाख से ज्यादा मतदाता हैं. इनमें एससी-एसटी वोटरों की संख्या करीब साढ़े 3 लाख है. 2.50 लाख जाट, 2 लाख गुर्जर मतदाता, ब्राह्मण, राजपूत और मुसलमान वोटरों की संख्या भी 1.50-1.50 लाख के करीब है. वैश्य समाज के भी 1 से सवा लाख वोटर हैं.
अजमेर उत्तर
बीजेपी के वासुदेव देवनानी विधायक हैं. यह सिंधी बाहुल्य सीट है और यहां से सिंधी प्रत्याशी जीतता है. बीजेपी सिंधी और कांग्रेस गैर सिंधी को टिकट देती है. सिंधी ही जीतता है. 1998 में कांग्रेस के किशन मोटवानी अंतिम बार चुनाव जीते थे. उसके बाद 2003 से बीजेपी के वासुदेव देवनानी चुनाव जीत रहे हैं.
पाली
इस सीट को बीजेपी का मजबूत गढ़ कहा जाता है. कांग्रेस को यहां से 1985 से कभी जीत नहीं मिली. वर्तमान विधायक ज्ञानचंद पारख पिछले 25 वर्षों से विधायक हैं. वह वसुंधरा राजे के भी करीबी हैं. 1985 और 1990 चुनाव में यहां भाजपा की पुष्पा जैन ने जीत हासिल की थी, जबकि 1993 में निर्दलीय भीमराज भाटी ने इस सीट पर कब्जा किया था. फिर 1998 से वापस भाजपा के ज्ञानचंद पारख यहां से लगातार जीतते चले आ रहे हैं. 1993 से अभी तक 6 विधान सभा चुनाव हुए हैं, और सभी बीजेपी ने जीते हैं.
कांग्रेस के 7 अभेद्य गढ़
राजस्थान में 7 ऐसी विधानसभा सीट हैं जिन्हें कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है. इनमें सरदार शहर, लछमनगढ़, दांतारामगढ़, सरदारपुरा, गुढ़ामालानी, डूंगरपुर और हिण्डोली का नाम शामिल है. आइए विस्तार से जानते हैं...
सरदार शहर
सरदार शहर चूरू जिले में है. यहां भंवरलाल शर्मा ब्राह्मण चेहरे के रूप से लगातार कांग्रेस से विधायक रहे. उनके निधन के बाद उनके पुत्र अनिल शर्मा कांग्रेस विधायक हैं.
लछमनगढ़
यहां से पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा 3 बार से लगातार विधायक चुने जा रहे हैं. 1993 के चुनाव में यहां अटल जी भी आए थे. 1951 से लेकर 2013 तक ही कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशियों ने 9 दफा जीत हासिल की थी. 1951 में लक्ष्मणगढ़ और फतेहपुर एक ही विधानसभा क्षेत्र था. 1957 में अलग से विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र गठित होने के बाद कांग्रेस के किशनसिंह पहले विधायक चुने गए. 1962 के दूसरे चुनावों में भी किशनसिंह ही विजयी रहे. 1967 से 1972 तक लगातार दो दफा स्वतंत्र पार्टी का कब्जा रहा. इसमें 1967 में नथमल और 1972 में केशरदेव विधायक चुने गए. कांग्रेस नेता परसराम मोरदिया यहां से सर्वाधिक 5 बार विधायक चुने गए. भाजपा का खाता 2003 में खुला, जब पार्टी के केशरदेव बाबर ने कदावर नेता परसराम मोरदिया को पटखनी दी. 2008 में लक्ष्मणगढ़ सीट सुरक्षित से सामान्य में तब्दील होने के बाद वर्तमान विधायक गोविंद सिंह डोटासरा लगातार 3 चुनावों में जीतते आ रहे हैं.
दांतारामगढ़
पूर्व पीसीसी प्रमुख और 7 बार के विधायक रहे जाट किसान नेता नारायण सिंह के बेटे वीरेंद्र सिंह का परिवार पारंपरिक रूप से कांग्रेस के साथ रहा है. उनकी पत्नी डॉ. रीटा सिंह इस बार अगस्त में जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) में शामिल हो गईं और उन्हें पार्टी की महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. रीटा चौधरी ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले दांता रामगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस से टिकट मांगा था, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने इस बार उनके पति को चुना.
सरदारपुरा
सरदारपुर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सीट है. यहां से लगातार पिछले 5 बार से अशोक गहलोत सीएम चुने जा रहे हैं.
गुढ़ामालानी
बाड़मेर के गुढ़ामालानी से हेमाराम चौधरी कांग्रेस विधायक हैं. जाट बाहुल्य विधानसभा में 12 बार जाट विधायक रहे हैं. रोचक चुनाव 1993 का रहा. इसमें जोधपुर के परसराम मदेरणा यहां चुनाव लड़ने आए और वे भी जातिय गणित से जीत गए. 1998 में से हेमाराम चौधरी 52 हजार 537 वोटों से जीते, जो अपने आप में रिकॉर्ड है. 2003 और 2008 में भी हेमाराम चौधरी ने ही जीत दर्ज करवाई.
डूंगरपुर
डूंगरपुर आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां से वर्तमान में कांग्रेस विधायक गणेश घोघरा हैं. आजादी के बाद से ही डूंगरपुर विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है. 1951 से अब तक डूंगरपुर विधानसभा से 16 विधायक बने हैं, जिसमें से भाजपा के विधायक केवल एक बार (देवेन्द्र कटारा) 2013 में बने, जबकि 9 बार इस सीट पर कांग्रेस ने कब्जा किया है. डूंगरपुर विधानसभा में कांग्रेस के नाथूराम अहारी 1980 से लेकर 2003 चुनाव तक लगातार 6 बार कांग्रेस विधायक चुने गए. 2006 में कांग्रेस के पूंजीलाल परमार, 2008 में लालशंकर घाटिया, 2013 में बीजेपी के देवेन्द्र कटारा, 2018 में गणेश घोगरा कांग्रेस से विधायक चुने गए.
हिंडोली
यहां से अशोक चांदना कांग्रेस विधायक हैं. यह बूंदी जिले की सीट है. 1952 में विधानसभा के गठन के बाद हिंडौली के पहले विधायक राम राज्य परिषद से सज्जनसिंह चुने गए थे. इसके बाद 1957 में कांग्रेस से भंवरलाल शर्मा और मोडूलाल (मनोनीत विधायक), 1962 में कांग्रेस से गंगासिंह मीणा, 1967 में जनसंघ से केसरीसिंह, 1972 में कांग्रेस से रमेशचंद्र मीणा, 1977 में जनता पार्टी से गणेश बैरागी, 1980 में कांग्रेस से प्रभुलाल शर्मा, 1985 में बीजेपी से गणेशलाल बैरागी, 1990 में कांग्रेस से रमा पायलट, 1993 में कांग्रेस से शांति धारीवाल, 1998 में कांग्रेस से रमा पायलट, 2001 में हुए उपचुनाव में बीजेपी से नाथूलाल गुर्जर, 2003 में कांग्रेस के हरिमोहन शर्मा, 2008 में बीजेपी से प्रभुलाल सैनी और 2013 में कांग्रेस के अशोक चांदना चुने गए हैं.