सवाई माधोपुर में सिंघाड़ों की खेती से किसानों को मिल रहा बंपर मुनाफा, कम लागत में कमा रहे अधिक फायदा

सर्दी की दस्तक के साथ ही सवाई माधोपुर जिले के कई इलाकों में तालाबों और छोटे बांधों में सिंघाड़े की बंपर पैदावार होने लगती है. जिले के कई तालाब और बांध में हरा सोना कहे जाने वाले सिंघाड़े अच्छी पैदावार के साथ लोगों की अच्छी आमदनी का जरिया बना हुआ हैं.

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सिंघाड़ों की खेती

Sawai Madhopur Water chestnuts: सवाई माधोपुर जिला अरावली की पहाड़ियों और रणथम्भौर के जंगलों से घिरा हुआ है. जिले में बहने वाली चम्बल, बनास, मोरल, गलवा नदियाँ और तालाब व बांध जिले को समृद्ध बनाते हैं. जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दक्षिण में मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित खण्डार उपखंड के बालरे क्षेत्र के कई गांवों में तथा टोंक व जयपुर जिलों से करीब 50 किलोमीटर उत्तर में बौंली व मित्रपुरा तहसील क्षेत्र के गांवों में स्थित कई तालाबों व छोटे बांधों में मीठे सिंघाड़े की बंपर फसल हो रही है. जिला मुख्यालय सहित जिले के अन्य शहरों व कस्बों के बाजारों में जगह-जगह सिंघाड़े बेचने वाले ठेले नजर आ रहे हैं.

मीठे और पोषक तत्वों से होते है भरपूर

सवाई माधोपुर जिले के सिंघाड़े मीठे और पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं. इनमें रस की मात्रा अधिक होती है. ये सिंघाड़े औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं, जो शरीर की तमाम समस्याओं को दूर कर सकते हैं.  कई लोग सिंघाड़ों को सुखाकर और पीसकर आटा बनाते हैं, जिसे खासतौर पर व्रत के दौरान खाया जाता है. जिले में इस बार अच्छी बारिश होने से लगभग सभी बांध और तालाब लबालब भरे हुए हैं. ऐसे में किसानों को भी सिंघाड़े की खेती के लिए ज्यादा रकबा मिल गया है. सिंघाड़े की खेती अगस्त माह से ही शुरू हो जाती है। किसानों की मानें तो इसकी खेती के लिए पौधे लगाने का काम बारिश के दौरान अगस्त से ही शुरू हो जाता है. सर्दी शुरू होते ही बाजार में सिंघाड़ों की आवक शुरू हो जाती है. सिंघाड़े का थोक भाव 20 से 30 रुपए प्रति किलो है, जबकि खुदरा भाव 40 रुपए प्रति किलो तक है.

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मेहनत के साथ अच्छी कमाई

सिंघाड़ा की खेती करने वाले किसानों ने बताया कि उन्होंने अगस्त माह में सिंघाड़े के पौधे रोपे थे और पिछले 20 दिनों से सिंघाड़े तोड़ने का काम चल रहा है. सिंघाड़े की खेती में उन्हें 50 प्रतिशत मुनाफा मिलता है. इस समय किसान अपने खेतों में जुताई करने के बाद स्थानीय नगर निगम प्रशासन और ग्राम पंचायत प्रशासन से सिंघाड़े की खेती का ठेका ले लेते हैं. इसके बाद रोजगार का अच्छा साधन मिल जाता है. इसमें अच्छी कमाई तो है, लेकिन मेहनत भी काफी करनी पड़ती है. तालाब से सिंघाड़े तोड़ने में काफी मेहनत करनी पड़ती है.

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सिंघाड़ों का सीजन चलेगा लंबा

किसानों का कहना है कि इस बार सिंघाड़े का सीजन लंबा चलने की उम्मीद है। पानी की भी कोई कमी नहीं है। ऐसे में सिंघाड़े का उत्पादन और मांग फरवरी तक रहने की संभावना है। जिले में सिंघाड़े की पैदावार, गुणवत्ता और स्वाद इस बार बेहतर है. हालांकि सवाई माधोपुर जिले में सिंघाड़े की खेती का रकबा अपेक्षाकृत कम है. जिले में महज 10 हेक्टेयर में ही सिंघाड़े का उत्पादन होता है।

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किसानों के अनुसार सिंघाड़े की खेती में जोखिम और मेहनत ज्यादा है. किसान और कृषि मजदूर हवा वाली नली और नाव लेकर पानी में जाते हैं और तैरकर गहरे पानी में जाते हैं और नीचे पौधे रोपते हैं। तीन से चार माह में पौधा बड़ा होकर सतह पर आ जाता है। इसके बाद सतह पर ही फल आने लगते हैं, जिन्हें नाव में बैठकर ही तोड़ा जाता है. सिंघाड़ों को तालाबों और बांधों के पानी से ही साफ किया जाता है. सिंघाड़ों को धोने के बाद ही बाजार में बेचा जाता है।वही व्यापारी बांध पर ही सिंघाड़े की बोरियो की बोली लगाकर छुड़ा लेते हैं और फिर छोटे दुकानदारों और ठेला थड़ी संचालको को बेचते है ,जो सड़क किनारे फुटपाथ पर या फिर ठेले पर सिंघाड़े बेचकर भी अच्छा मुनाफा कमाते हैं. वही कई किसान सिंघाड़े सीधे मंडियों में ले जाते हैं. इस बार मजदूरी की दरें बढ़ने से खेतिहर मजदूरों को भी सीजन में फायदा हो रहा है.

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