Eid- Ul-AZha 2024: जून का महीना मुस्लिम समुदाय के लिए कुर्बानी का महीना माना जाता है. इसे बकरीद भी कहते हैं. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, बकरीद यानी ईद-उल-अजहा (Eid- Ul-AZha 2024) जिलहिज्जा के 12वें यानी आखिरी महीने का चांद दिखने के 10वें दिन मनाई जाती है. जो इस बार 17 जून को मनाई जाएगी. इस दिन बड़ी ईदगाह में सुबह 7.45 पर ईद की नमाज अदा की जाएगी. ईद की नमाज अदा करने के बाद सभी मुस्लिम भाई एक-दूसरे के गले मिलेंगे और ईद की मुबारकबाद देंगे.
राजस्थान समेत देश के अलग-अलग राज्यों में बकरीद का चांद नजर आ गया है. इसके अलावा जामा मस्जिद के पूर्व शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने भी 17 जून को बकरीद मनाने का ऐलान किया.
ईद-उल-अजहा का महत्व (Significance of Eid al-Adha)
ईद-उल-अज़हा पैगम्बर इब्राहिम की अल्लाह पर विश्वास की याद में मनाया जाता है. इस दिन अल्लाह ने इब्राहिम को अपने बेटे की कुर्बानी देने का आदेश दिया था. इब्राहिम ने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और चेहरे पर किसी भी तरह की चिंता के बिना कुर्बानी देने के लिए आगे बढ़ चला.
यह देखकर अल्लाह बहुत खुश हुए. उन्होंने इब्राहिम को अपने जान से भी प्यारे बेटे की कुर्रबानी से रोकते हुए उन्हें एक भेड़ की कुर्बानी देने का आदेश दिया. जिसके बाद से अपनी सबसे खास चीज की कुर्बानी देने का रिवाज बन गया. माना जाता है कि इससे अल्लाह के प्रति और भी एतबार कायम होता है.
ईद-उल-अजहा कैसे मनाया जाता है (How Eid al-Adha is Celebrated)
ईद-उल-अजहा के दिन, मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह जल्दी उठकर नहाते हैं और नए कपड़े पहनते हैं. फिर वे ईद की नमाज़ पढ़ने के लिए ईदगाह या मस्जिद जाते हैं. नमाज़ के बाद, भेड़ या बकरे की कुर्बानी दी जाती है. कुर्बानी का मांस तीन भागों में बांटा जाता है: एक भाग गरीबों और जरूरतमंदों में बांटा जाता है, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है, और तीसरा परिवार के लिए रखा जाता है.
अपनों में प्यार बांटने का है ये त्योहार
जाहिर है इस दिन का मुस्लिम समदाय में बेसब्री के साथ इतजार किया जाता है. ईद-उल-अजहा के दिन सभी, रिश्तेदारों से मिलने, दावत खाने और एक-दूसरे को उपहार देने का भी होता है. बच्चे नए कपड़े पहनकर और ईदी (ईद की राशि) लेकर बहुत खुश होते हैं.