पालखीवाला और रूसी मोदी थे प्रबल दावेदार, लेकिन JRD ने रतन टाटा को ही क्यों सौंपी थी Tata की कमान?

Tata Group: टाटा की अगुवाई में ग्रुप की कंपनियों का बिजनेस काफी तेजी से फैला. अभी टाटा समूह की कंपनियां 100 से अधिक देशों में सूई से लेकर टैंक तक का कारोबार कर रही हैं. हाल ही में टाटा समूह ने सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया का भी अधिग्रहण किया है.

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Ratan Tata News: उद्योगपति रतन टाटा (Ratan tata) ने साल 1991 में टाटा संस (Tata Sons) और टाटा ग्रुप की कमान संभाली थी. उनके नेतृत्व में समूह ने नमक से लेकर एयर इंडिया तक कारोबार का इतना विस्तार किया कि रसोई से लेकर आसमान तक समूह की धमक दिखाई दी. वर्तमान में टाटा समूह (Tata Group) की कंपनियां 100 से अधिक देशों में सूई से लेकर टैंक तक का कारोबार कर रही हैं. हाल ही में टाटा समूह ने सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया का भी अधिग्रहण किया. लेकिन जब आज से 33 साल पहले उन्हें टाटा इंडस्ट्रीज का प्रमुख बनाया गया तो यह फैसला उनके लिए भी अप्रत्याशित था. रिपोर्ट्स के मुताबिक इंडस्ट्रीज के उत्तराधिकारी के लिए टाटा खुद को दावेदार मानते नहीं थे. लेकिन जेआरडी टाटा ने उन्हें ही अगला उत्तराधिकारी चुना. 

रतन टाटा भी इन दो को ही मानते थे दावेदार

दरअसल, जब जेआरडी 75 साल के हुए तो उनके अगले उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा शुरू हो गई. इस लिस्ट में नानी पालखीवाला, रूसी मोदी, शाहरुख़ साबवाला और एचएन सेठना जैसे नाम शामिल थे, लेकिन खुद रतन टाटा को भी इस कुर्सी के लिए दो ही दावेदारों का अंदाजा था. वो नाम थे पालखीवाला और रूसी मोदी. लेकिन जेआरडी टाटा ने रतन टाटा को कमान सौंपी. 86 साल की उम्र में जब उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया तो साल 1991 में रतन टाटा प्रमुख बने. 

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अमेरिका में नौकरी करने का था मन, दादी की तबीयत के बिगड़ने के बाद लौट आए

रतन टाटा ने 8वीं कक्षा तक कैंपियन स्कूल मुंबई में पढ़ाई की. वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए हार्वर्ड बिजनेस स्कूल चले गए. उन्होंने साल 1959 में कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर एंड स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. इसके बाद उनकी इच्छा अमेरिका में ही नौकरी करने की थी. लेकिन जब उनकी दादी की तबीयत खराब हो गई तो वह लौट आए और यहां आकर उन्होंने आईबीएम ज्वॉइन कर लिया. यह उनकी पहली नौकरी थी. उनकी पहली नौकरी के बारे में उनके परिवार को भी नहीं जानकारी थी.  

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मैं फैसले लेता हूं और फिर उन्हें सही साबित करता हूं- टाटा

रतन टाटा का कहना था कि ‘मैं सही फैसले लेने में विश्वास नहीं रखता. मैं फैसले लेता हूं और फिर उन्हें सही साबित करता हूं.' उनके फैसलों पर नजर डालें तो उनकी बात झलकती भी है. साल 2000 में जब उन्होंने ब्रिटिश ग्रुप टेटली का अधिग्रहण किया तो इस फैसले पर काफी सवाल उठाए गए थे. लेकिन अब यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी है. ऐसा ही अगली बार तब हुआ जब उन्होंने यूरोप की दूसरी सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी कोरस को खरीदा. इस बार भी कई सवाल उठने के बावजूद उन्होंने अपने फैसले को सही साबित किया.

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