अब तक कितनी बार हुआ है लोकसभा स्पीकर का चुनाव, क्या रहे नतीजे, क्यों अहम है ये पद?

देश में चौथी बार लोकसभा स्पीकर पद के लिए चुनाव हो रहा है. ज़्यादातर बार स्पीकर सर्वसम्मति से निर्विरोध चुना गया. इस बार 48 साल बाद ओम बिरला और के सुरेश के बीच मुकाबला हो रहा है.

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Lok Sabha Speaker Election:   18वीं लोकसभा के पहला सत्र 24 जून से शुरू हो गया. लोकसभा स्पीकर के लिए दो उम्मीदवार मैदान में हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की तरफ से ओम बिरला और इंडिया गठबंधन की तरफ से आठ बार के सांसद के.सुरेश मैदान में हैं. 

1952 में पहली बार लोकसभा स्पीकर का हुआ था चुनाव

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, अध्यक्ष पद के लिए पहली बार चुनाव 1952 में हुआ था. जी.वी. मावलंकर ने शांताराम मोरे को हराकर लोकसभा स्पीकर बने थे. जी.वी. मावलंकर को 394 वोट और शांताराम मोरे को 55 वोट मिले थे. 

1967 - दूसरी बार चुनाव कांग्रेस के नीलम संजीव रेड्डी का मुकाबला टेनेटी विश्वनाथ से

चौथी लोकसभा 1967 में दूसरी बार लोकसभा स्पीकर पद के लिए चुनाव हुआ. कांग्रेस के नीलम संजीव रेड्डी का मुकाबला टेनेटी विश्वनाथ से हुआ. नीलम संजीव रेड्डी को लोकसभा स्पीकर के रूप में चुनाव गया. नीलम संजीव रेड्डी को 278 और विश्वनाथ को 207 वोट मिले. 

1976 में आपातकाल के बीच तीसरा चुनाव - बलिराम भगत जीते

द हिंदू के अनुसार, पांचवी लोकसभा 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने के बाद पांचवे सत्र की अवधि एक साल के लिए बढ़ा दी थी. तत्कालीन अध्यक्ष जी.एस. ढिल्लो ने 1 दिसंबर 1975 में इस्तीफा दे दिया था. 1976 में बलिराम भगत का चुनाव इस लिए जरूरी हो गया था क्योंकि, स्पीकर को तत्कालीन कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बना दिया गया था.  

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5 जनवरी 1976 को, आपातकाल के दौरान भगत को जनसंघ नेता जगन्नाथ राव जोशी के खिलाफ अध्यक्ष चुना गया था. भगत को 344 वोट और जोशी को 58 वोट ही मिले थे. 

अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव 

संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है. सांसद अपने में से दो सांसदों को सभापति और उप-सभापति चुनते हैं. सदस्यों को इस लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव से एक दिन पहले उम्मीदवारों को समर्थन का नोटिस जमा करना होता है.

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लोकसभा स्पीकर कामकाज को सुचारू रूप से चलाता है 

लोकसभा स्पीकर कामकाज को सुचारू रूप से चलाता है. स्पीकर का पद बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. लोकसभा स्पीकर संसदीय बैठकों का एजेंडा भी तय करते हैं. सदन में विवाद होने पर स्पीकर नियमानुसार कार्रवाई करते हैं. 

लोकसभा स्पीकर किसी मुद्दे पर अपनी राय नहीं देते

सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पक्षों सदस्य होते हैं, इसलिए लोकसभा अध्यक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह तटस्थ रहकर कामकाज चलाएं. लोकसभा स्पीकर किसी मुद्दे प र अपनी राय नहीं देते हैं. लोकसभा स्पीकर किसी प्रस्ताव पर मतदान नहीं करते लेकिन, प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में बराबर वोट हों तो वे निर्णायक मत डाल सकते हैं. 

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लोकसभा स्पीकर समितियों का गठन करते हैं 

लोकसभा स्पीकर समितियों का गठन करते हैं. स्पीकर के निर्देशानुसार समितियां काम करती हैं. कोई सदस्य दुर्व्यवहार करता है तो उसे लोकसभा स्पीकर निलंबित कर सकते हैं.