Rajasthan News: देश में आपने माता लक्ष्मी और भगवान नारायण (विष्णु) की एक साथ विराजमान मूर्तियां वाले मंदिर तो कई देखे होंगे, लेकिन राजस्थान के सीकर जिले में एक ऐसा प्राचीन और अनूठा मंदिर है, जहां यह दिव्य युगल दिन के समय अलग-अलग स्थानों पर विराजते हैं और रात की शयन आरती के समय ही उनका मिलन होता है. इस मंदिर का नाम 'श्री कल्याण जी का मंदिर' है, जो 103 साल से भी अधिक पुराना है, जिसकी कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं है.
भारत का संभवतः एकमात्र मंदिर
सीकर के इस प्राचीन कल्याण जी मंदिर को भारत का संभवतः एकमात्र मंदिर माना जाता है, जहां लक्ष्मी जी और भगवान नारायण की पूजा दिन के अधिकांश समय अलग-अलग की जाती है. मंदिर के गर्भगृह से करीब 50 मीटर की दूरी पर मां महालक्ष्मी का अलग से भवन है.
दिन में जुदाई
मंदिर के विधान के अनुसार, दिन की शुरुआत ही इस अलगाव के साथ होती है. सुबह करीब 4:30 बजे सबसे पहले मां लक्ष्मी जी की मंगला आरती की जाती है. इसके बाद ही भगवान नारायण को जगाया जाता है और उनकी आरती व पूजा होती है. दिन भर में दोनों की कुल 6 बार आरती होती है.
रात में मिलन
सबसे महत्वपूर्ण विधान रात की शयन आरती के समय होता है. इस समय, मां लक्ष्मी जी की अष्टधातु की प्रतिमा को उनके भवन से लाकर भगवान नारायण की संगमरमर की प्रतिमा के पास गर्भगृह में एक साथ विराजमान किया जाता है. रात्रि विश्राम के बाद, अगले दिन सुबह मंगला आरती के समय दोनों प्रतिमाओं को फिर से अलग-अलग उनके स्थानों पर विराजित कर पूजा का क्रम शुरू किया जाता है. यह अनूठा विधान सदियों से चला आ रहा है.
103 साल पुराना इतिहास
यह प्राचीन मंदिर करीब 103 साल से भी ज्यादा पुराना है. इसका निर्माण सीकर के तत्कालीन शासक राव राजा कल्याण सिंह ने सन 1921 में अपने गढ़ से कुछ ही दूरी पर स्थित पुराना दूजोद गेट के पास करवाया था. यह मंदिर पूरी तरह से राजपूत कालीन कला शैली पर आधारित है, जिसकी दीवारों पर देवी-देवताओं के विभिन्न रूपों को मनमोहक चित्रकारी के माध्यम से दर्शाया गया है.
राव राजा का स्वप्न
मंदिर के महंत विष्णु प्रसाद शर्मा बताते हैं कि मंदिर के निर्माण के पीछे एक दैवीय स्वप्न की कथा है. मान्यता है कि मंदिर निर्माण के बाद राव राजा कल्याण सिंह को साक्षात मां लक्ष्मी जी ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा- 'मेरा भवन अलग होना चाहिए.' इस स्वप्न के बाद, मंदिर निर्माण के लगभग 3 महीने बाद ही, राव राजा कल्याण सिंह ने महालक्ष्मी जी के लिए अलग से भवन बनवाया और उन्हें भगवान नारायण के गर्भगृह से 50 मीटर की दूरी पर अलग से विराजित किया.
बनारस से आए थे पंडित
महंत शर्मा ने यह भी बताया कि 1921 में मंदिर की स्थापना के समय विधि-विधान से पूजा-पाठ के लिए 51 पंडितों को बनारस से बुलाया गया था. राव राजा कल्याण सिंह स्वयं डिग्गी मालपुरा से मूर्ति को अपने सिर पर रखकर यहां विराजमान करने के लिए लाए थे.
चमत्कारी प्रतिमाएं
मंदिर में भगवान नारायण की चमत्कारी संगमरमर की प्रतिमा है, जिन्हें यहां ‘कल्याण धनी' के रूप में पूजा जाता है और ये डिग्गी पुरी के कल्याण जी महाराज के इष्ट के रूप में भी माने जाते हैं. माता लक्ष्मी की अष्टधातु की मूर्ति है.
हीरे का रहस्य
महंत विष्णु प्रसाद शर्मा के अनुसार, भगवान नारायण यानी कल्याण धनी की प्रतिमा के मस्तक और ठोडी पर हीरे जड़े हुए हैं, जिनकी चमक का रहस्य सिर्फ सावन के महीने में ही प्रकट होता है. यह चमत्कारिक तत्व श्रद्धालुओं के लिए गहरी आस्था का केंद्र है.
मंदिर के विधान के अनुसार, पूरे दिन में कुल 7 बार आरती की जाती है. महंत विष्णु प्रसाद शर्मा के परदादा महंत बद्री नारायण जी को मंदिर का पहला महंत नियुक्त किया गया था और आज उनकी चौथी पीढ़ी मंदिर की सेवा-पूजा में जुटी हुई है.
दीपावली पर 16 दिवसीय महालक्ष्मी महोत्सवकल्याण जी धाम का यह मंदिर धार्मिक आयोजनों का एक बड़ा केंद्र भी है. हर वर्ष दीपावली के अवसर पर यहां शरद पूर्णिमा से लेकर गोवर्धन पूजा तक 16 दिवसीय महालक्ष्मी महोत्सव सहित अनेक धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं.
इस महोत्सव में कई विशेष आयोजन होते हैं, जैसे:
- शरद पूर्णिमा पर खीर का प्रसाद वितरण.
- करवा चौथ पर विशेष आयोजन.
- महालक्ष्मी जी का अष्टमी पूजन.
- धनतेरस को धनलक्ष्मी को श्रवण के आभूषण पहनकर पूजा.
- दीपावली पर छप्पन भोग की झांकी सजाकर महाआरती का आयोजन.
गोवर्धन पूजा की आरती के साथ इस 16 दिवसीय महोत्सव का समापन किया जाता है. साल भर में इस प्राचीन मंदिर में करीब 57 से अधिक धार्मिक कार्यक्रम होते हैं, जिनमें राजस्थान और आस-पास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेने आते हैं.
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