Jaisalmer Tourism: सोने सा चमकता सुनहरा शहर जिसे आप और हम स्वर्णनगरी, गोल्ड़न सिटी या फिर जैसलमेर के नाम से जानते हैं. पर्यटन मानचित्र पर अपनी अमिट पहचान बना चुके इस शहर के चारों ओर रेत का समंदर है. यंहा के पीले बलुआ पत्थर (जो स्वर्ण ईट सा प्रतीत होता है) से बना सोनार किला, हवेलियां, छतरिया व बंगलिया हर किसी को आकर्षित करती है. मूल महेंद्रा की प्रेम कथा हो या फिर यहां की ढाई शाके की सच्ची कहानी. सब कुछ इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से दर्ज किया गया है. आइए आज जानते हैं जैसलमेर की इन्हीं खूबसूरत जगहों के बारे में...
सोनार किला
जैसलमेर का सोनार किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल है. यह किला विश्व का एक मात्र लिविंग फोर्ट है, जो इसे सबसे खास बनाता है. 5 हजार के करीब लोग आज भी इस किले में रहते हैं. इस किले का निर्माण महारावल जैसल सिंह ने 1156 में करवाया था. इसे त्रिकूटगढ़ भी कहा जाता है, क्यूंकि यह त्रिकूट पहाड़ी पर बना हुआ है. जैसलमेर के इस 99 बुर्ज वाले दुर्ग की आकृति 'त्रिकूटाकृति' है, जो अंगड़ाई लेते शेर और तैरते हुए जहाज की तरह दिखाई देता है.
1974 में बनी सत्यजीत रे की फिल्म 'सोनार किला' से इस दुर्ग को विश्वस्तर पर पहचान मिली. चार प्रोलों (द्वार) से होकर इस किले में प्रवेश लेना पड़ता है. अखे प्रोल, सुरज प्रोल, गणेश प्रोल और हवा प्रोल के रास्ते दुर्ग के मुख्य दशहरा चौक में पहुंचा जाता है. दुर्ग में प्रवेश करते ही फोर्ट पैलेस म्यूजियम,जैन मंदिर, बा री हवेली, लक्ष्मीनाथ मंदिर और कैनन पॉइंट्स से सिटी का व्यू काफी शानदार है. जिसे देखने के लिए लाखों पर्यटक जैसलमेर आते है और सुनहरी यादों को समेंट पर साथ ले जाते है.
गड़ीसर लेक
जैसलमेर आने वाला हर शख्स रेगिस्तान में रेत के टीलों की कल्पना करता है, लेकिन रेगिस्तान में नखलिस्तान का अनुभव करवाती गडीसर लेक आपको सोचने पर मजबूर कर देगा कि आप कोई सपना तो नही देख रहे है. इस झील का निर्माण महारावल गड़सी सिंह ने 13वी शताब्दी में करवाया था, इसलिए इसका नाम गड़सीसर रखा गया, लेकिन समय के साथ इसे गड़ीसर लेक के नाम से पुकारा जाने लगा.
सरोवर के बीचो-बीच समाई पीले पत्थर से बनी नकाशीदार छतरिया व बंगलिया जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है. पर्यटक यहां बोटिंग का भी लुफ्त उठाते हैं. अगर आप खुले आसमान में तालाब किनारे, पक्षियों के कलरव के बीच शांत वातावरण में सूर्योदय को अपनी आँखों व कैमरे में कैद करना चाहते हैं तो गडीसर जाना तो बनता है. सर्दी के दिनों में जब कोहरा इस झील को घेरे रहता है तो यह कश्मीर की डल झील के समान प्रतीत होती है.
पटवा हवेली
पटवा हवेली जैसलमेर के मुख्य पर्यटन स्थलों में से एक है. देश ही नहीं, बल्कि सात समंदर पार विदेशों से भी हर वर्ष लाखों सैलानी इसे निहारने आते हैं. पटवा हवेली 5 हवेलियों के समूह से मिलकर बनी हुई है. इसका निर्माण कार्य 1805 में गुमान चंद पटवा ने शुरू करवाया था और हवेलियों के इस समूह को बनकर तैयार होने में लगभग 60 वर्ष का समय लगा था. विश्व के पर्यटन मानचित्र में अपनी विशेष पहचान बना चुकी हवेली की बनावट व बसावट की तारीफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुकें है.
इसके परिसर में संग्रहालय है, जिसमें बीते युग की कलाकृतियों, चित्रों, कला और शिल्प का शानदार प्रदर्शन देखने को मिलता है, जो समृद्ध जीवन शैली को प्रदर्शित करने के लिए हवेलियों के निवासियों का चित्रण करते हैं. पटवों की हवेली के खंभे और छत पर उस समय के विशेषज्ञों द्वारा की गई आकर्षक और जटिल नक्काशी है. इसके दरवाजे बारीक डिजाइनों से भरे हुए हैं जो वास्तुकला के शौकीनों को बेहद पसंद आते हैं. खासकर पर्यटक यंहा के झरोखो में फोटोग्राफ़ी का लुफ्त उठाते हैं .
सम सेंड ड्यूंस
सम के मखमली धोरों आपके ट्रिप को रोमांच से भरपुर बना देंगे. जहां आप रेत के टीलों के बीच खुले आसमान में बैठकर शानदार सनसेंट का लुफ्त उठा सकते है. इतना ही नही कैमल सफारी,जीप सफारी, पैरासेलिंग, पैराग्लाइडिंग, डेज़र्ट मोटरबाइक राइड का भी लुफ्त उठा सकते हैं. वहीं चांदनी रात में सितारों के नीचे मखमली धोरों में कैम्प फायर के बीच कालबेरिया नृत्य और लोक संगीत का कोम्बिनेशन तो जनत सा लगता है और यहां का जायकेदार ट्रेडिशनल फ़ूड आपको दीवाना बना देगा.
कुलधरा
इस गांव में भले ही कोई न रहता हो, लेकिन इसकी रखवाली के लिए करीब 85 साल के एक वृद्ध जरूर रहते हैं, इस गाँव के अनसुलझे राज़ों की कहानी शुरु होती है, जालिम दीवान सालम सिंह के अत्याचारों से. जिसके बाद पालीवाल समाज के 84 गांव एक ही रात में वीरान हो गए. कहते हैं कि जाते जाते पालीवाल जाति ने कुलधरा गांव को श्राप दिया कि अब यहां कोई नहीं बस पाएगा. आज भी यह गांव वीरान पड़ा है और इसे श्रापित गांव या भूतिया गांव भी कहा जाता है. यही वजह है कि यह गांव सुबह भले ही पर्यटकों से भरा रहता हो, लेकिन रात में आज भी यहां सन्नाटा छा जाता है.
जैसलमेर से लगभग 16 किलोमीटर दूर कुलधरा गांव पालीवाल ब्राह्मण समाज के लोगों ने सरस्वती नदी के किनारे बसााया गया था. इतिहासकार बताते हैं कि उस दौरान यहां का दीवान सालम सिंह थे. जिनकी बुरी नजर इस गांव के मुखिया की बेटी पर पड़ गई जो बहुत खूबसूरत थी. वो उस लड़की से जबरन शादी करना चाहते थे. लेकिन पालीवाल ब्रह्मणों को यह मंजूर नहीं था, उन्होंने अपने स्वाभिमान को सर्वोपरि रखते हुए 84 गांवों ने एक सभा बुलाई और एक रात अचानक सब चीजें छोड़कर यहां से चले गए.