बांसवाड़ा के इस कुंड का रामायण-महाभारत दोनों से संबंध, भगवान राम ने चलाया था तीर, जानें मान्यता

बांसवाड़ा के राम कुंड का निर्माण भगवान राम द्वारा किया गया था. साथ ही अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव भी यहां आए थे. 

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बांसवाड़ा स्थित वो कुंड जहां भगवान राम ने चलाया था तीर.

Rajasthan News: अयोध्या में रामलला प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के अन्तर्गत समूचा भारतवर्ष राममय हो उठा है. अयोध्या में श्रीराम अपनी जन्मभूमि पर बने भव्य-नव्य मंदिर में प्रतिष्ठापित होंगे. जब बात भगवान राम की होती है तो बांसवाड़ा के राम कुंड और भीम कुंड का नाम आना भी स्वाभाविक है, जहां अज्ञात वास में पांडव भी आए थे और भगवान श्री राम भी आए थे.

राम कुंड की प्राचीन मान्यता

मान्यता के अनुसार भगवान श्रीराम वनवास के समय यहां आए थे और शिवलिंग की स्थापना की थी. रामकुंड पहुंचने के बाद सीढ़ियां उतरने पर गुफा में यह शिवलिंग दिखाई पड़ता है. जिसकी आज भी नियमित पूजा-अर्चना की जाती है. शिवलिंग के सामने भगवान गणेश की प्राचीन प्रतिमा भी है. मान्यता है कि वनवास के दौरान यहां से गुजरते समय माता सीता को प्यास लगी. चारों ओर पहाड़ी क्षेत्र और जंगल था.

आसपास पानी भी तक मौजूद नहीं था. इस पर भगवान राम ने तीर चलाया इससे पहाड़ का एक हिस्सा कट गया और पानी की धारा फूटने के साथ ही नीचे की ओर कुंड बन गया, जिसे रामकुंड कहा जाता है. पहाड़ की चट्टानों से पानी टपकता है, जो धारा के रूप में परिवर्तित होकर कुंड को भरता है. इस कुंड में पानी भी शुद्ध है. बरसात के दिनों में हरीतिमा से आच्छादित यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य हर किसी का मन मोह लेता है. 

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भीम की गदा से भी कुंड का निर्माण

यह अचंभित करने वाला है कि राम कुंड से गुफाओं का एक छोर भीमकुंड भी जाता है. भीमकुंड के बारे में मान्यता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव भी यहां आए थे और प्यास लगने पर भीम ने गदा से प्रहार किया. जिससे एक बड़ा गड्ढा हो गया जिसे कालांतर में भीम कुंड कहा जाने लगा.  

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एक ही रास्ते पर मौजूद हैं दोनों कुंड

जिला मुख्यालय से तलवाड़ा तक करीब 12 किलोमीटर का सफर तय करना होता है. मां त्रिपुरा सुंदरी मंदिर की ओर मुड़ने के बाद करीब डेढ़ किलोमीटर आगे दो रास्ते पर दाएं ओर मुड़ना पड़ता है. यह रास्ता आगे जाकर फिर दो रास्तों में बंटता है. सीधे जाने वाला रोड भीमकुंड को ले जाता है जबकि बाएं हाथ का मोड़ करीब 100 मीटर आगे राम कुंड को ले जाता है. इस रूट पर आने के बाद पर्यटक सभी जगहों पर एक साथ घूम सकता है.

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इसलिए कहते हैं फाटी खान

दरअसल यह पहाड़ अंदर तक फटे हुए है. इनके बीच में लंबी दरारें हैं इसलिए इसे स्थानीय भाषा में फाटी खान कहा जाता है. वहीं टूरिस्ट के लिए भी यह जगह खास है. खासतौर सावन में यहां लोगों की खासी भीड़ हो जाती है.

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