माही बैकवाटर बना विदेशी 'पक्षियों का स्वर्ग', फ़्लमिंगो समेत सैकड़ों प्रजातियां हर साल करती हैं डेरा

माही बैकवाटर में विदेशी पक्षियों की मेहमाननवाजी के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं. प्रशासन और वन विभाग की टीम लगातार यहां के वातावरण को पक्षियों के अनुकूल बनाने के लिए काम करती है.

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Rajasthan News: राजस्थान का दक्षिणी सिरा – वागड़ अंचल का बांसवाड़ा जिला, सिर्फ अपने नैसर्गिक सौंदर्य, पहाड़ियों और माही नदी के लिए ही नहीं, बल्कि अब प्रवासी पक्षियों के स्वर्ग के रूप में भी पहचाना जाने लगा है. जिले में करीब 50 किलोमीटर तक फैले माही बैकवाटर क्षेत्र में हर साल हजारों की संख्या में विदेशी पक्षियों का आगमन होता है, जो यहां की शांत जलराशि, समृद्ध पारिस्थितिकी और भोजन की प्रचुरता के कारण बार-बार लौट कर आते हैं.

विदेश से वागड़ तक का सफर:

सर्दियों की शुरुआत से ही हजारों किलोमीटर दूर से ये पक्षी यहां का रुख करते हैं. इनमें प्रमुख रूप से आते हैं –

  • साइबेरिया
  • मंगोलिया
  • तिब्बत
  • कजाकिस्तान
  • और अन्य उत्तरी देशों से

ये पक्षी शीतकालीन माइग्रेशन के तहत नवंबर-दिसंबर में आना शुरू होते हैं और मार्च तक रुकते हैं, जबकि कुछ प्रजातियां जैसे राजहंस (फ्लेमिंगो) गर्मी में भी यहां डेरा डालती हैं.

फ्लेमिंगो: गर्मियों का खास मेहमान

हर साल फरवरी से जुलाई तक माही बैकवाटर में फ्लेमिंगो के बड़े झुंड नजर आते हैं. इनकी विशेषताएं:

  • आकर्षक गुलाबी-सफेद रंग
  • लंबी टांगें और टेढ़ी चोंच
  • जल सतह पर धीमे-धीमे घूमते हुए भोजन तलाशते हैं
  • इनकी आवाज दूर तक सुनाई देती है
  • सामूहिक उड़ान और जल क्रीड़ाएं देखने योग्य होती हैं

माही बैकवाटर ही क्यों?

प्राकृतिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र कई मायनों में पक्षियों के लिए उपयुक्त है.

  • माही नदी का मीठा और छिछला पानी.
  • पर्याप्त मछलियां, कीट, शैवाल जैसे खाद्य स्रोत.
  • इंसानी गतिविधियों से अपेक्षाकृत कम हस्तक्षेप.
  • अनुकूल तापमान और नमी.

इन सब कारणों से यह इलाका हर साल प्रवासी पक्षियों की पसंदीदा शरणस्थली बन चुका है।

लोकल बायोडायवर्सिटी को भी मिलती है मजबूती

प्रवासी पक्षियों का आगमन केवल सौंदर्य और पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को भी संतुलन और मजबूती मिलती है. ये पक्षी कई बीजों का फैलाव करते हैं और जलचरों की जनसंख्या को संतुलित रखते हैं.

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क्या हैं चुनौतियां?
  • कुछ इलाकों में बोटिंग व पर्यटकों की आवाजाही से पक्षियों की शांति भंग होती है.
  • प्लास्टिक और कचरे से इनकी सुरक्षा को खतरा.
  • अवैध शिकार की आशंका, विशेष निगरानी की जरूरत.
देश के प्रमुख बर्ड माइग्रेशन सेंटरों में पहचान बनाने का मौका  

स्थानीय समुदाय, प्रशासन और पर्यटकों के सामूहिक प्रयास से हम इन अतिथि पक्षियों के लिए एक सुरक्षित, शांत और समृद्ध वातावरण तैयार कर सकते हैं. बांसवाड़ा की यह अद्भुत प्राकृतिक धरोहर न केवल पर्यावरणीय रूप से मूल्यवान है, बल्कि यह जिले की पहचान और गौरव का प्रतीक भी है. यदि समय रहते उचित संरक्षण उपाय किए गए, तो आने वाले वर्षों में बांसवाड़ा देश के प्रमुख बर्ड माइग्रेशन सेंटरों में अपनी पहचान पुख्ता कर सकता है.

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