Gangaur 2025: राजस्थान में साल का सबसे लंबा त्योहार शुरू, महिलाओं के लिए खास, शाही सवारी से लेकर गौरी और ईसर की मूर्तियों का जानें महत्व

Rajasthan News: गणगौर की शुरुआत प्रदेश में हो चुकी है. यह 15 मार्च से शुरू होकर  31 मार्च तक चलेगा. तो आइए जानते हैं कि गणगौर मनाकर वे माता पार्वती और शिव को कैसे प्रसन्न करती हैं.

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Gangaur 2025

Gangaur 2025 in Rajasthan: राजस्थान में होली के बाद पूरा प्रदेश गणगौर के रंग में रंगने लगता है. राजस्थानी महिलाओं के लिए यह सदियों से चला आ रहा त्योहार और परंपरा का हिस्सा है, जिसके लिए उनका उत्साह हमेशा चरम पर रहता है. प्रदेश में गणगौर की शुरुआत हो चुकी है. यह 15 मार्च से शुरू होकर  31 मार्च तक चलेगा. इस दौरान राजस्थान की महिलाएं इसके लिए कई तरह की तैयारियां करती हैं, तो आइए जानते हैं कि गणगौर मनाकर वे माता पार्वती और शिव को कैसे प्रसन्न करती हैं.


होली के बाद गणगौर की होती है शुरुआत

गणगौर की शुरुआत होली के अगले दिन से होती है, जो इस बार 14 मार्च से शुरू हो गई है. इस दिन महिलाएं होलिका दहन की राख को मिट्टी में मिलाकर गमलों (कुंडों) में गेहूं और जौ के बीज बोती हैं, जो जीवन और समृद्धि का प्रतीक हैं. वे इन बीजों को 18 दिनों तक पानी देकर अंकुरित करती हैं.

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 18 दिन तक रखती है उपवास

यह व्रत विवाहित महिलाएं और लड़कियां दोनों ही रखती हैं. विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए व्रत रखती हैं, जबकि अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की कामना करती हैं. लेकिन नवविवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत रखना जरूरी माना जाता है. कई महिलाएं पूरे 18 दिनों तक यह व्रत रखती हैं. वे दिन में केवल एक बार भोजन करती हैं, जिसमें अनाज का त्याग कर फल, दूध आदि लिया जाता है.

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महिलाएं करती है  16 श्रृंगार 

इस दिन महिलाएं लहंगा-चोली जैसे पारंपरिक परिधान पहनती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं. वे हाथों और पैरों पर मेहंदी लगाती हैं जिसे "सिंजारा" कहते हैं. यह उनके उत्साह और सुंदरता को दर्शाता है. जिसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है.

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मिट्टी से बनाए जाते हैं गौरी और ईसर

इस व्रत में मिट्टी की गौरी और ईसर की मूर्ति बनाने की परंपरा है. गौरी को देवी पार्वती और ईसर को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है. इन मूर्तियों को रंग-बिरंगे कपड़ों, गहनों और फूलों से सजाया जाता है. कुछ परिवारों में लकड़ी की पक्की मूर्तियां भी बनाई जाती हैं. इनकी प्रतिदिन पूजा की जाती है.

घूमर कर उत्सव में भरते हैं रंग

महिलाएं गणगौर के लोकगीत गाती हैं, जिसमें गौरी के अपने पति के घर लौटने की कहानी कही जाती है. इस दौरान घूमर जैसे राजस्थानी लोकनृत्य भी किए जाते हैं, जो इस त्यौहार में रंग भर देते हैं.

मायके से आता है सिंजारा का सामान

गणगौर के आखिरी दिन को सिंजारा कहते हैं. इस दिन विवाहित महिलाओं को उनके मायके से कपड़े, आभूषण और मिठाइयां उपहार में दी जाती हैं. यह परंपरा उनके परिवार के साथ उनके रिश्ते को मजबूत बनाती है.

आखिरी दिन होता है गौरी और ईसर की मूर्तियों का विसर्जन

आखिरी तीन दिन सबसे भव्य होते हैं. इस दिन महिलाएं सज-धज कर गौरी और ईसर की मूर्तियों को सिर पर रखकर जुलूस निकालती हैं. ढोल, तुरही और लोक संगीत के साथ जुलूस झीलों, तालाबों या कुओं तक जाता है. आखिरी दिन (31 मार्च 2025) मूर्तियों का विसर्जन किया जाएगा. जो गौरी के अपने पति के घर लौटने का प्रतीक है. यह एक भावपूर्ण विदाई के साथ समाप्त होता है.

घेवर होती है गणगौर की खास मिठाई

गणगौर में "घेवर" जैसी मिठाइयां खास होती हैं. पूजा के बाद परिवार और पड़ोसियों के साथ ये व्यंजन बांटे जाते हैं.

राजपरिवार द्वारा निकाली जाती है गणगौर माता की शाही सवारी

 इस दिन जयपुर में शाही परिवार के जरिए गणगौर माता की शाही सवारी निकाली जाती है. जिसमें पालकी, हाथी और बैलगाड़ियाँ शामिल होती हैं. उदयपुर में पिचोला झील पर नाव जुलूस और आतिशबाजी होती है.

राजस्थान की महिलाओं के लिए गणगौर केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि उनकी आस्था, संस्कृति और सामाजिक बंधनों का उत्सव है. यह उनकी शक्ति, समर्पण और जीवन के प्रति उत्साह को दर्शाता है.

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