यहां छिपा है 100 साल पुराने दुर्लभ ऐतिहासिक बर्तनों का खजाना, विदेशी बाजारों में है हजारों-लाखों की कीमत

Treasure of Jodhpur:जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस से कुछ ही दूरी पर स्थित अपने म्यूजियम में सैकड़ों साल पहले के ऐसे दुर्लभ और विलुप्त होते बर्तनों को संजोकर रखा हुआ है. राजशाही शासन के दौरान कम संसाधनों के बावजूद इन बर्तनों का इस्तेमाल शहरी के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों के परिवारों के जरिए किया जाता था.

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Treasure of Jodhpur: राजस्थान का जोधपुर आज भी अपने अंदर कई इतिहास समेटे हुए है. हमारे इस शहर में आज भी कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने यहां की ऐतिहासिक, दुर्लभ और विलुप्त होती विरासत को संजोकर रखा हुआ है. जिसके बारे में आज की नई पीढ़ी शायद ही जानती होगी. इन्हीं में से एक हैं जोधपुर के सुनील, जिन्होंने जोधपुर के उम्मेद भवन पैलेस से कुछ ही दूरी पर स्थित अपने म्यूजियम में सैकड़ों साल पहले के ऐसे दुर्लभ और विलुप्त होते बर्तनों को संजोकर रखा हुआ है. राजशाही शासन के दौरान कम संसाधनों के बावजूद इन बर्तनों का इस्तेमाल शहरी के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों के परिवारों के जरिए किया जाता था. इनमें से कुछ दुर्लभ बर्तन भारत की आजादी से पहले के भी हैं. जिनकी समय के साथ काफी मांग है. विदेशी बाजारों में इन बर्तनों की हजारों-लाखों रुपए की कीमत है.

jodhpurs Treasure

लंबे समय तक रखे सामान नहीं होते थे खराब

इन बर्तनों को इकट्ठा कर रहे सुनील ने बताया कि हमने कई ऐसे दुर्लभ बर्तन संभाल कर रखे हैं जो आज के दौर में शायद ही कहीं देखने को मिलें. राजशाही के दौर में उस समय की ग्रामीण महिलाएं जिन बर्तनों से तालाबों और कुओं से पानी लाती थीं, वे आज भी यहां सुरक्षित हैं. पानी के अलावा वे इन बर्तनों में घी, तेल और दूध भी रखती थीं. इसकी खासियत यह थी कि इसमें रखा कोई भी सामान लंबे समय तक खराब नहीं होता था. इसके अलावा बड़े परिवारों में जब भी सामूहिक भोज का आयोजन होता था, तो उनमें भी इनका इस्तेमाल किया जाता था. वर्तमान समय में भोजन और खाने-पीने की चीजों को खराब होने से बचाने के लिए रेफ्रिजरेटर का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि पुराने समय में खास धातुओं से बने बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता था, जो आज भी अपने संग्रहालय में मौजूद हैं. आधुनिक समय में खाने-पीने की चीजों को मशीनों और मिक्सर के जरिए पीसा जाता है, जबकि पुराने समय में छोटे-छोटे अनाजों को पीसने के लिए 'हमाम' का इस्तेमाल किया जाता था, जो संग्रहालय में मौजूद है.

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 'हमाम' से होती थी खाघ साम्रगी की पिसाई

सुनील आगे बताते हैं कि कुछ ग्रामीण इलाकों में आज भी 'हमाम' का इस्तेमाल होता है. यह वजन में भारी होता है लेकिन इसमें पिसे जाने वाले अनाज की गुणवत्ता मिक्सर के मुकाबले बरकरार रहती है. इन बर्तनों के अलावा सुनील ने इस संग्रहालय में मौजूद उन तमाम दुर्लभ और विलुप्त ऐतिहासिक बर्तनों के बारे में जानकारी दी. साथ ही बताया कि मौजूदा समय में जहां स्कूली बच्चे हॉटकेस टिफिन का इस्तेमाल करते हैं, वहीं पुराने समय में स्कूली बच्चे पीतल से बने टिफिन का इस्तेमाल करते थे, जो पीतल के साथ-साथ मिश्र धातु से भी बना होता था. इसमें गर्मियों में भी खाना लंबे समय तक खराब होने से बचाया जा सकता था. आपको बता दें कि पहले के समय में ग्रामीण इलाकों में गेहूं के मुकाबले बाजरे का इस्तेमाल ज्यादा होता था. यहां बाजरा एक ऐसा अनाज था, जो पीसने के बाद जल्दी खराब हो जाता था. उस समय बाजरे को तांबे से बने एक खास टैंक में सुरक्षित रखा जाता था. इससे यह लंबे समय तक सुरक्षित रहता था.

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