Ambikeshwar Temple Amer Jaipur: राजधानी जयपुर के आमेर सागर रोड़ स्थित अंबिकेश्वर का प्राचीन मंदिर में महादेव शिवलिंग के रूप में नहीं, शिला रूप में विराजमान हैं. यहां सावन-भादो में शिवलिंग जलमग्न रहता है. 5 हजार साल पुराने इस मंदिर में भूगर्भ से जल आता है और जो बारिश के बाद खुद ही सूख जाता है. इसी अंबिकेश्वर मंदिर के नाम पर ही आमेर का नाम पड़ा. इस मंदिर से जुड़ी एक खास मान्यता भी है कि गाय के दूध गिराने से यहां शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था. मंदिर की शिवशिला हजारों वर्षों पुरानी है, जबकि मंदिर का निर्माण 900 साल पहले हुआ था. यह मंदिर 14 खंभों पर टिका है और जलहरी भूतल से करीब 22 फीट गहरी है. जलहरी का जल गर्भगृह के पास ही स्थित पन्ना-मीणा कुंड में जाता है.
यह रहस्यमय ढंग से बहता है पानी
मंदिर के महंत संतोष व्यास ने बताया, "बारिश में भूगर्भ का जल ऊपर आ जाता है और मूल शिवलिंग जलमग्न रहता है. बारिश समाप्त होते ही यह पानी भूगर्भ में चला जाता है, जबकि ऊपर से डाला पानी भूगर्भ में नहीं जाता, कुंड में जाता है."
वरिष्ठ गाइड महेश कुमार शर्मा ने बताया कि रोज एक गाय घास चरकर आती थी. लेकिन दूध नहीं देती थी. लोगों ने देखा कि एक छोटे से गड्ढे के पास खड़े होकर गाय पूरा दूध जमीन पर गिरा रही थी, उन्होंने वहां खुदाई करवाई तो करीब 22 फीट की खुदाई के बाद वहां एक स्वयंभू शिवलिंग निकला.
फिर ऐसे हुई आमेर राज्य की स्थापना
जनश्रुति और मान्यताओं के अनुसार, वहां मंदिर का पुन: निर्माण करवाया गया. द्वापर में इस क्षेत्र को अंबिका वन के नाम से जाना जाता था. ऐसा भी कहा जाता है कि नंद बाबा और श्रीकृष्ण जब पधारे तो उस दिन शिवरात्रि थी, उन्होंने यहां अपने केश छोड़े (मुंडन संस्कार) थे. यहां हर भक्त पूरे मनोयोग से अपनी अभिलाषा लिए भगवान के शरण में आते हैं. इस मंदिर ने ही जयपुर के विश्वविख्यात किला आमेर को भी नाम दिया था और बाद में चलकर आमेर राज्य की स्थापना की गई.
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