India Independence Day 2024: देश की आजादी के संग्राम में हिस्सा लेने वाले बहुतेरे बहादुरों की कहानियां हम जानते हैं. लेकिन ऐसे भी बहुत सारे लोग हैं जिन्होंने वतन की आजादी के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया, मगर उनकी जिंदगी और संघर्ष के बारे में शायद ही ज्यादा कुछ लिखा गया. जंगे आजादी के अजीम सिपाही रहे शौकत उस्मानी ऐसी ही एक महान हस्ती थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए देश छोड़ना कुबूल कर लिया, मगर अंग्रेजों के सामने झुकना गवारा नहीं किया.
बीकानेर में पैदा हुए शौकत उस्मानी ने बहुत कम उम्र में ही मुल्क को आजाद करवाने का ख्वाब देखना शुरू कर दिया था. अपनी मां से 1857 की क्रांति के किस्से सुनते-सुनते उनमें भी जज्बा पैदा हुआ और वह भी होश संभालने पर आजादी की जंग में कूद पड़े.
विदेश से लड़ी लड़ाई
भारत से भेस बदल कर बाहर निकले और रूस, जर्मनी और मिस्र होते हुए अपने मकसद को कामयाब बनाने में लगे रहे. आखिरकार वो दिन आ गया जब देश को आजाद हवा में सांस लेना नसीब हुआ. शौकत उस्मानी ने अपने मुल्क की शान-ओ-शौकत का जो ख्वाब देखा था, वो पूरा हुआ. लेकिन इस शान-ओ-शौकत में रहने वालों ने उस शौकत को भुला दिया, जिसने इसके लिए अपना सब-कुछ देश के लिए न्योछावर कर दिया था.
आजादी के बाद शौकत उस्मानी की उनके अपने देश में कोई पूछ नहीं हुई. इसी कारण वे भारत में रहे भी नहीं. उनके परिवार में उनका पोता और उनके बेटे आज भी बीकानेर में बदहाली में जी रहे हैं.
वायसरॉय के सामने लगाए नारे
बीकानेर के मोहल्ला उस्तान में पैदा हुए शौकत उस्मानी के बारे में प्रसिद्ध उस्ता कलाकार मुहम्मद हनीफ उस्ता बताते हैं कि शौकत साहब रिश्ते में उनके दादा लगते थे. उनके स्कूली दिनों में अंग्रेज वायसरॉय के बीकानेर आगमन पर उन्हें उनका स्वागत करने की जब जिम्मेदारी दी गई, तो वह अपने साथ एक चाकू लेकर स्कूल गए और वायसरॉय के सामने इन्कलाब जिंदाबाद का नारा लगा दिया. उस्ता कहते हैं कि उन्होंने कई मामलों में सुभाष चंद्र बोस की मदद की और आजाद हिन्द फौज को हथियार उपलब्ध करवाए.
जर्मनी में समझ लिया गया जासूस
वहीं शौकत उस्मानी की यादों और विरासत को अपने ज़ेहन में रखने वाले कॉमरेड अविनाश व्यास बताते हैं कि शौकत उस्मानी ने भारत से बाहर जाकर देश की आजादी की जंग लड़ी. यहां तक कि हिटलर से भी उनकी मुलाकात तय हुई, लेकिन जर्मनी में उन्हें अंग्रेजों का जासूस समझ लिया गया जिससे वह हिटलर से नहीं मिल सके. रूस में उन्होंने स्टालिन के साथ काम किया, लेकिन इसी शर्त पर कि भारत की जंगे आजादी में रूस का सहयोग रहेगा.
आजादी के बाद दिल टूटा
मगर देश के आजाद होने के बाद उस्मानी को आजाद हिंद फौज के कई सिपाहियों की तरह देश के खिलाफ जंग लड़ने के आरोप का सामना करना पड़ा. इस वजह से उन्हें भारत से बाहर रहने पर मजबूर होना पड़ा. आजादी के बाद मिले सुलूक से उनका दिल खट्टा हो गया और वह मिस्र में रहने लगे. जबकि उनके परिवार के लोग बीकानेर में थे. बड़ी मुश्किल से 1976 में उन्हें मना कर बीकानेर बुलाया गया. लेकिन कुछ दिनों बाद वह वापस मिस्र चले गए और वहीं उन्होंने आखिरी सांसें लीं.