Jnanpith Award: विनोद कुमार शुक्ल को मिलेगा ज्ञानपीठ पुरस्कार, सम्मान पाने वाले हिंदी के 12वें साहित्यकार

विनोद कुमार शुक्ल के प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज’, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ और ‘खिलेगा तो देखेंगे’ शामिल हैं. शुक्ल के उपन्यास ‘नौकर की कमीज’ पर इसी नाम से फिल्म बनी थी.

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विनोद कुमार शुक्ल छत्तीसगढ़ के पहले साहित्यकार हैं जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है

Vinod Kumar Shukla: प्रख्यात साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को वर्ष 2024 के लिए 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा की गई है. भारतीय ज्ञानपीठ ने शनिवार को एक बयान में यह जानकारी दी. बयान के मुताबिक, शुक्ल को हिंदी साहित्य में उनके अद्वितीय योगदान, सृजनात्मकता और विशिष्ट लेखन शैली के लिए पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया है. वह हिंदी के 12वें साहित्यकार हैं, जिन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है. शुक्ल छत्तीसगढ़ के ऐसे पहले लेखक हैं, जिन्हें यह सम्मान मिलेगा.

प्रसिद्ध कथाकार एवं ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित प्रतिभा राय की अध्यक्षता में हुई बैठक में शुक्ल को पुरस्कार देने का निर्णय लिया गया. बैठक में चयन समिति के अन्य सदस्य के रूप में माधव कौशिक, दामोदर मावजो, प्रभा वर्मा और डॉ. अनामिका, डॉ ए. कृष्णा राव, प्रफुल्ल शिलेदार, जानकी प्रसाद शर्मा और ज्ञानपीठ के निदेशक मधुसूदन आनंद शामिल थे.

विनोद कुमार शुक्ल हिंदी साहित्य जगत के एक प्रतिष्ठित कवि और लेखक हैं
Photo Credit: PTI

विनोद कुमार शुक्ल की साहित्य यात्रा

लेखक, कवि और उपन्यासकार शुक्ल (88 वर्ष) की पहली कविता 1971 में ‘लगभग जयहिंद' शीर्षक से प्रकाशित हुई थी. उनके प्रमुख उपन्यासों में ‘नौकर की कमीज', ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी' और ‘खिलेगा तो देखेंगे' शामिल हैं. शुक्ल के उपन्यास ‘नौकर की कमीज' पर प्रसिद्ध फिल्मकार मणि कौल ने 1999 में इसी नाम से एक फिल्म बनाई थी.

उनका लेखन सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता और अद्वितीय शैली के लिये जाना जाता है. वह मुख्य रूप से हिंदी साहित्य में अपने प्रयोगधर्मी लेखन के लिये प्रसिद्ध हैं.

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सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है ज्ञानपीठ

शुक्ल को इससे पहले साहित्य अकादमी पुरस्कार के अलावा कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं.  ज्ञानपीठ पुरस्कार देश का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान है, जिसे भारतीय भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य रचने वाले रचनाकारों को प्रदान किया जाता है.

इस पुरस्कार के तहत 11 लाख रुपये की राशि, वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है. वर्ष 1961 में स्थापित ज्ञानपीठ पुरस्कार सबसे पहले मलयालम कवि जी. शंकर कुरुप को 1965 में उनके काव्य संग्रह ‘ओडक्कुझल' के लिए दिया गया था.

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