बदल रहा है कोटा का कोचिंग कल्चर

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Dev Sharma

Rajasthan Kota Coaching : कोचिंग के दम पर अपनी अलग पहचान कायम करने वाले राजस्थान के शहर कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री की सफलता का एक मूल कारण शहर की 'संघर्ष-क्षमता' रहा है. संघर्षशील-शिक्षक एवं संघर्षशील-विद्यार्थी. शिक्षक पढ़ाते हुए नहीं थके, तो विद्यार्थी पढ़ते हुए. थकान नहीं होने का कारण शिक्षक एवं विद्यार्थियों की शिक्षा के प्रति सकारात्मक मनोदशा रही और नारा रहा- जितना बड़ा संघर्ष उतनी बड़ी सफलता. 90 के दशक में शिक्षक विद्यार्थियों एवं अभिभावकों को यह समझाने में सफल रहे कि संघर्ष,पीड़ा नहीं है, दुख नहीं है, व्यथा नहीं है!

पढ़ाई के दौरान की जाने वाली कड़ी मेहनत को शिक्षकों के अथक प्रयासों ने एक सामान्य प्रक्रिया बनाकर रख दिया. क्लासरूम-स्टडी, सेल्फ-स्टडी, डाउट-रिमूवल, माइनर-मेजर टेस्ट, टेस्ट पेपर डिस्कशन और फिर बैच-रीशफलिंग! संघर्ष एवं प्रतिस्पर्धा की इस प्रक्रिया में विषय-वस्तु पर खूब तार्किक-संवाद हुआ, हजारों-हजार प्रश्न हल किए गए, प्रश्नों को हल करने के एक से अधिक तरीकों पर चर्चा की गई, कम समय में प्रश्नों को कैसे हल किया जाए- इस हेतु शिक्षकों ने अपने प्रयासों को विद्यार्थियों से निरंतर साझा किया. 

मौज-मस्ती की नहीं, संघर्ष की जगह

वह समय था जब कोटा-कोचिंग सिस्टम में प्रवेश मिलना ही सौभाग्य था, कई विद्यार्थी इस सौभाग्य से वंचित रहे और उन्हें घर लौटना पड़ा. सभी को यह समझ थी कि कोटा की आबोहवा एक संघर्षशील शिक्षा-प्रणाली की है, यह स्वप्न, संघर्ष और सफलता का शहर है, मौज-मस्ती का नहीं!

किंतु इस चर्चा के दौरान, सुविधा की चर्चा ना तो विद्यार्थियों ने की, ना अभिभावकों ने और ना ही शिक्षकों ने. शिकायतों का नामों-निशां था ही नहीं. वह समय था जब कोटा-कोचिंग सिस्टम में प्रवेश मिलना ही सौभाग्य था, कई विद्यार्थी इस सौभाग्य से वंचित रहे और उन्हें घर लौटना पड़ा. सभी को यह समझ थी कि कोटा की आबोहवा एक संघर्षशील शिक्षा-प्रणाली की है, यह स्वप्न, संघर्ष और सफलता का शहर है, मौज-मस्ती का नहीं!

वर्षों तक 'संघर्ष से सफलता' का यह सफर अनवरत रहा, सतत रहा. इस दौरान खास बात यह रही कि कोटा कोचिंग-संस्थानों के मालिक जो कि स्वयं उच्च कोटि के अत्यंत ऊर्जावान एवं समर्पित शिक्षक थे, लगातार प्रतिदिन में 4-5 बैच पढ़ाते थे. विद्यार्थियों से उनका सीधा संवाद था और संवाद में सिर्फ शिक्षा थी, कुछ और नहीं!

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इस कालखंड के दौरान कोचिंग शिक्षा में व्यावसायिकता का प्रवेश नहीं हुआ था. 

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कोटा कोचिंग पर एनडीटीवी की विशेष रिपोर्ट पढ़िए-:

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व्यावसायिकता का प्रवेश

समय बीतने के साथ कोटा में एक बड़ा बदलाव आया. सुविधा-भोगी मानसिकता ने संघर्ष-क्षमता को समाप्त किया तो सफलता ने किनारा कर लिया और फिर प्रारंभ हुआ खरीद फरोख्त का दौर!

इंजीनियरिंग तथा मेडिकल प्रवेश परीक्षा में क्लासरूम स्टूडेंट्स की सफलता ने कोटा को शिक्षा की काशी बना दिया. विद्यार्थियों की संख्या में अचानक से बेतहाशा बढ़ोतरी हुई और फिर शिक्षा में व्यावसायिकता प्रवेश कर गई! अधिक से अधिक विद्यार्थियों का प्रवेश ही एकमात्र उद्देश्य बनता गया. अब शिक्षा में गुणवत्ता गौण होती जा रही थी और एकमात्र उद्देश्य था, विद्यार्थियों एवं अभिभावकों को येन-केन-प्रकारेण प्रभावित करना, अधिक सुविधाएं देकर आकर्षित करना. 

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विद्यार्थी-हितैषी होने के इस आडंबर से विद्यार्थी में विद्यार्थियों के गुण ही समाप्त होने लगे. काक-चेष्टा,वको-ध्यानम, श्वान-निद्रा,अल्पाहारी ये सभी गुण विद्यार्थियों के लिए अब दूर की कौड़ी हो चुके थे. विद्यार्थी सिर्फ अब गृह-त्यागी थे और शैक्षणिक सफलता हेतु आवश्यक संघर्ष से कोसों दूर थे. 

आकर्षण के इस दौर में विद्यार्थी एवं अभिभावक शैक्षणिक-वास्तविकता से दूर होकर सुविधाओं एवं मनोरंजन  की आभासी दुनिया की ओर बढ़ने लगे. इस आभासी दुनिया ने विद्यार्थी के स्टडी-रूम को होटल रूम में परिवर्तित कर दिया. अब चर्चाओं में शैक्षणिक-गुणवत्ता समाप्त हो चुकी थी और भौतिक-संसाधन अपनी कुंडली मारकर बैठ चुके थे. शैक्षणिक-संघर्ष रूपी अमृत, शैक्षणिक तनाव रूपी विष में परिवर्तित होना प्रारंभ हो गया. 

विद्यार्थी भी अब शैक्षणिक-तनाव के नाम पर भांति-भांति के बहाने बनाने की कला में पारंगत हो चुके थे. कोचिंग कर्मियों, हॉस्टल कर्मियों एवं तथाकथित शिक्षकों में अब आभासी विद्यार्थी-हितेषी बनने की प्रवृत्ति जागने लगी.

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विद्यार्थी-हितैषी होने के इस आडंबर से विद्यार्थी में विद्यार्थियों के गुण ही समाप्त होने लगे. काक-चेष्टा,वको-ध्यानम, श्वान-निद्रा,अल्पाहारी ये सभी गुण विद्यार्थियों के लिए अब दूर की कौड़ी हो चुके थे. विद्यार्थी सिर्फ अब गृह-त्यागी थे और शैक्षणिक सफलता हेतु आवश्यक संघर्ष से कोसों दूर थे. 

वर्तमान में फिर से आवश्यकता है कि विद्यार्थी शैक्षणिक संघर्ष की राह पकड़ें, संघर्ष को पीड़ा समझने की मानसिकता को त्यागें क्योंकि संघर्ष के बिना सफलता संभव नहीं और हां-संघर्ष जितना अधिक होगा सफलता उतनी बड़ी होगी.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

लेखक परिचयः देव शर्मा  कोटा  स्थित इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और फ़िज़िक्स के शिक्षक हैं.  उन्होंने 90 के दशक के आरंभ में कोचिंग का चलन शुरू करने में अग्रणी भूमिका निभाई. वह शिक्षा संबंधी विषयों पर नियमित रूप से लिखते हैं.