महाराणा प्रताप राजस्थान के अन्य राजाओं से अलग क्यों हैं?

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Dr S Inayat Ali Zaidi

Maharana Pratap Birth Anniversary: इतिहास के कुछ नियम होते हैं. इतिहासकार को इन नियमों को ध्यान में रखते हुए इतिहास लिखना चाहिए, इतिहास के बारे में बोलना चाहिए और इतिहास को समझाना चाहिए. इतिहासकार की ये एक बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है कि इन तीन नियमों को ध्यान में रखे. ये तीन नियम हैं - टाइम, स्पेस और कॉन्टेक्स्ट. यानी कोई बात किस समय हो रही है, किस जगह हो रही है और उसका संदर्भ क्या है. इसके बाद देखा जाना चाहिए कि पहले के हुए लोग किस तरह के थे. इसके बाद एक लंबी अवधि के दौरान, एक विस्तृत संदर्भ में किसी घटना को देखा जाना चाहिए.

इस आधार पर आप अगर इतिहास को परखेंगे तो पाएँगे कि महाराणा प्रताप एक स्थानीय शासक थे. ठीक उसी प्रकार जैसे उनके समकालीन राजा मानसिंह थे, या बीकानेर के राजा राय सिंह थे या जोधपुर के मोटा राजा थे. वैसे ही मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप थे.

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उस काल में सभी राजाओं ने मुग़ल शासकों का विरोध किया, और कई ने सोच समझकर अकबर के साथ संधि कर ली. और यह एक तथ्य है कि अकबर से हाथ मिलाने के बाद राजस्थान में संपन्नता आई क्योंकि अकबर ने सबको साथ लेकर चलने की नीति अपनाई.

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अकबर के लिए राजस्थान में शासन मज़बूत करना ही सबसे अहम बात नहीं थी. इससे भी अहम बात ये थी कि उसने ताक़त और दौलत को भी साझा किया. अकबर की अपनी सेना में स्थानीय लोग भी थे. उसनेअपनी सेना में अलग कोटा तय कर दिया था जिसमें राजपूत भी थे.

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अगर इतिहास को परखेंगे तो पाएँगे कि महाराणा प्रताप एक स्थानीय शासक थे. ठीक उसी प्रकार जैसे उनके समकालीन राजा मानसिंह थे, या बीकानेर के राजा राय सिंह थे या जोधपुर के मोटा राजा थे.

महाराणा प्रताप अकबर से ही नहीं राजपूतों से भी लड़े

महाराणा प्रताप का नाम बड़ा इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने अकबर की अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया और विरोध करते रहे. दरअसल, कोई भी राजा कभी भी किसी बड़े राजा के हुक्म को मानकर अपनी ताक़त नहीं खोना चाहेगा. प्रताप विरोध करने में सफल रहे, और वो जंगल में जाकर भी रहने लगे. लेकिन तब राणा प्रताप केवल अकबर की मुग़ल सेना से ही नहीं राजपूत सेनाओं से भी लड़ रहे थे क्योंकि वो अकबर के वफ़ादार हो चुके थे.

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महाराणा प्रताप ने तब अकबर का विरोध उसी तरह से किया जिस तरह से कई अन्य स्थानीय शासकों ने किया. इनमें बिहार, सिंध, कश्मीर तथा दक्षिण के कुछ स्थानीय शासक शामिल थे. महाराणा प्रताप का विरोध बड़ा इसलिए बन गया क्योंकि वो मेवाड़ के जिस भौगोलिक क्षेत्र में रहते थे वो पहाड़ी इलाक़ा था जो उनके लिए मददगार साबित हुआ. शुरू में मुग़लों को वहाँ काफ़ी परेशानी हुई.

मुश्किल ये है कि महाराणा प्रताप को हमेशा से एक अलग तरह का नायक बनाने का प्रयास किया जाता रहा है. मैंने भी बचपन में राणा प्रताप की एक तस्वीर बनाई थी जो कई बरसों तक मैंने सहेजकर रखी थी. दरअसल राणा प्रताप की छवि अलग-अलग समय पर अलग तरह से गढ़ी जाती रही.

महाराणा प्रताप का विरोध बड़ा इसलिए बन गया क्योंकि वो मेवाड़ के जिस भौगोलिक क्षेत्र में रहते थे वो पहाड़ी इलाक़ा था जो उनके लिए मददगार साबित हुआ.

अंग्रेज़ों के दौर में महाराणा प्रताप की छवि

अंग्रेज़ों के दौर में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ऐसे शासकों के बारे में बताना ज़रूरी हो गया जिन्होंने आज़ादी के लिए विरोध किया था. लेकिन, महाराणा प्रताप के दौर में भारत या राष्ट्र जैसी कोई सोच नहीं थी, तब रियासत होते थे. उस समय के शासकों ने अपने क्षेत्र या रियासत की रक्षा के लिए विरोध किया था.

राणा प्रताप के विरोध को राष्ट्रवाद का रूप देने की कोशिश में कोई समस्या नहीं है. लेकिन महाराणा प्रताप के विरोध को सांप्रदायिकता का रंग देना ग़लत है. ना तो अकबर के लिए राणा प्रताप हिंदू थे, और ना राणा प्रताप के लिए अकबर मुसलमान थे. जैसे अकबर की सेना में राजपूत शामिल थे, वैसे ही महाराणा प्रताप की सेना में भी मुस्लिम सैनिक थे. अगर लंबे दौर को देखा जाए तो तब ऐसी लड़ाइयाँ होती रहती थीं.

ना तो अकबर के लिए राणा प्रताप हिंदू थे, और ना राणा प्रताप के लिए अकबर मुसलमान थे. जैसे अकबर की सेना में राजपूत शामिल थे, वैसे ही महाराणा प्रताप की सेना में भी मुस्लिम सैनिक थे.

सांप्रदायिक छवि बनाना ग़लत

महाराणा प्रताप के जीवन को अगर सांप्रदायिक रंग दिया जाता है तो इससे देश की भलाई नहीं होती क्योंकि अगर सबका विकास नहीं होगा तो देश का विकास नहीं होगा. अक्सर ये जताने की कोशिश होती है कि महाराणा प्रताप मुस्लिम विरोधी थे, जबकि तब इस तरह की कोई बात ही नहीं होती थी.

लेकिन, अगर कुछ देर के लिए ये मान लिया जाए कि वो मुस्लिम विरोधी थे, तो ऐसे में राजस्थान के आमेर, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर और जैसलमेर के शासकों के बारे में क्या समझा जाए जिन्होंने मुग़लों से संधि कर ली थी? इस आधार पर तो कहना पड़ेगा कि वो देशभक्त नहीं थे और ग़द्दार थे?

अगर एक व्यापक संदर्भ में देखा जाए, तो यह ज़रूर है कि महाराणा प्रताप ने मुग़लों का विरोध किया था, लेकिन इसे अपने स्वार्थ के लिए नाहक तूल देना सही नहीं है. महाराणा के नाम पर अगर राजनीति की जाती है तो इससे समाज पर, देश की अर्थव्यवस्था पर और विदेश नीति पर भी असर पड़ता है.

परिचय: डॉ. सैयद इनायत अली ज़ैदी दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्ववविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर और विभागाध्यक्ष रह चुके हैं. बीकानेर के मूल निवासी डॉ. ज़ैदी इतिहास के विद्वान हैं और मध्यकालीन इतिहास और राजस्थान के इतिहास के विशेषज्ञ माने जाते हैं. इतिहास की गहरी जानकारी रखने वाले डॉ. सैयद इनायत अली ज़ैदी के अनेक लेख देशी और विदेशी पत्र-पत्रिकाओं, जर्नल्स और किताबों में प्रकाशित हो चुके हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

(अपूर्व कृष्ण के साथ बातचीत पर आधारित लेख)

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