मेवाड़: संघर्ष, साहस और 1000 सालों की दूरदर्शिता की मिसाल

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Dr. Lakshyaraj Singh Mewar

Mewar: मेवाड़ की अमूल्य निधि "जो दृढ़ राखे धर्म को, तिहि राखे करतार' है. मेवाड़ 1500 वर्षों से मातृभूमि की रक्षा और धर्म के संरक्षण-संवर्धन के लिए बेधड़क होकर कठिन राहों को पार करता आ रहा है. मेवाड़ का कतरा-कतरा सच्चाई के लिए हर वक्त न्योछावर होने के लिए प्रतिबद्ध रहा है. प्राचीनकाल से ही मेवाड़ के सच्चे मानबिंदु त्याग, बलिदान, शौर्य और पराक्रम रहे हैं. यह अटल सत्य दुनिया के समक्ष अंकित है कि मेवाड़ की सत्ता और वैभव प्रारंभ से ही परमेश्वर श्रीएकलिंगनाथजी के श्रीचरणों में समर्पित है. मेवाड़ के महाराजा एकलिंगनाथजी ही हैं और बप्पा रावल से लेकर आज तक उनके दीवान हैं, आगे भी रहेंगे. मेवाड़ को विदेशी आक्रांताओं से बेधड़क होकर लड़ने की अपार ताकत इसी सच रूपी महादेव से मिलती रही है. मैं यह बात इसलिए नहीं कह रहा हूं कि मैं इस गौरवशाली वंश का वंशज हूं, बल्कि इसलिए कह रहा हूं कि यह सब मेवाड़ के गौरवशाली इतिहास के पन्नों में दर्ज है.

विक्रम संवत 625 (568 ई.) में मेवाड़ में गुहिल (गुहादित्य) नाम के प्रतापी राजा हुए, जिसके नाम से यह वंश आगे गुहिलोत वंश कहलाया और नागदा नगर बसाया. बप्पा रावल ने राजऋषि महर्षि हारीत राशि से आशीर्वाद और प्रेरणा प्राप्त पर चित्तौड़गढ़ फतह किया और मेवाड़ का विकास-विस्तार किया. मेवाड़ ने अपने स्वाभिमान के लिए विदेशी आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी की हर शर्त को ठुकराया और युद्ध किया. महारानी पद्मिनी ने असंख्य महिलाओं के साथ जौहर कर अग्नि स्नान करना स्वीकार किया, लेकिन सच्चाई पर आंच नहीं आने दी. कुछ वर्षों बाद वीर हमीर ने चित्तौड़ जीता. राणा लाखा (लक्षसिंह) के काल में जावर गांव में चांदी-सीसे का खनन प्रारंभ किया. महाराणा कुम्भा के यश-कीर्ति जग जाहिर हैं. 

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महाराणा सांगा उर्फ संग्राम सिंह ने बाबर जैसे विदेशी आक्रांता को भी पराजित कर दिया. सन् 1527 में खानवा के युद्ध में सांगा का त्याग, बलिदान और पराक्रम अद्वितीय रहा. महाराणा उदयसिंह ने कठिन संघर्षों के बीच सुंदर नगर उदयपुर को 1000 साल से भी ज्यादा समय की दूरदर्शी कार्ययोजना के साथ बसाया. हर संघर्ष के बीच झीलों का निर्माण भी कराते रहे. पेयजल और सिंचाई जल के बिना आजीविका चला पाना संभव नहीं हो सकता, जिसका लाभ आज की वर्तमान में लाखों की आबादी को सीधा प्राप्त हो रहा है.

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अकबर ने दिए कई प्रलोभन, लेकिन अड़िग रहे महाराणा प्रताप

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को विदेशी आक्रांता अकबर ने संधि करने के लिए तरह-तरह के जतन किए और प्रलोभन भी दिए, लेकिन प्रतापी प्रताप सच्चाई की राह पर चट्टान की भांति अडिग रहे. प्रताप ने जून 1576 में हल्दीघाटी में मुगल आक्रांता अकबर की विशाल सेना से भीषण युद्ध किया, जिसमें प्रतापी सत्य जीता. विक्रम संवत 1709 में महाराणा राजसिंह प्रथम ने विदेशी आक्रांता औरंगजेब के जजिया का विरोध किया और श्रीनाथजी व द्वारकाधीशजी की रक्षा के लिए कर्तव्यनिष्ठा के साथ मैदान में डटे रहे. 

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महाराणा उदयसिंह ने कठिन संघर्षों के बीच सुंदर नगर उदयपुर को 1000 साल से भी ज्यादा समय की दूरदर्शी कार्ययोजना के साथ बसाया. हर संघर्ष के बीच झीलों का निर्माण भी कराते रहे. पेयजल और सिंचाई जल के बिना आजीविका चला पाना संभव नहीं हो सकता, जिसका लाभ आज की वर्तमान में लाखों की आबादी को सीधा प्राप्त हो रहा है.

महाराणा भूपाल सिंह ने आजाद भारत में शामिल कराई मेवाड़ समेत कई रियासत 

महाराणा भूपाल सिंह ने मेवाड़ रियासत ना सिर्फ भारत में विलय कर आजाद हिंदुस्तान की परिकल्पना को साकार किया, बल्कि पाकिस्तान में शामिल होने की इच्छा रखने वाली कुछ रियासतों को भारत में शामिल कराया. महाराणा भगवत सिंह ने लेक पैलेस को होटल में तब्दील कर बदलते परिप्रेक्ष्य में उदयपुर में पर्यटन को जन्म दिया. पिता अरविंद सिंह मेवाड़ ने उदयपुर को विश्व पटल पर पर्यटन के केंद्र के रूप में स्थापित किया. बढ़ते पर्यटन के साथ मेवाड़ के हजारों कामगारों-हुनरमंदों को रोजगार के नए-नए अवसर उपलब्ध होते जा रहे हैं. मेवाड़ कला-संस्कृति, शिक्षा-चिकित्सा, महिला स्वच्छता प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण से लेकर समाज सेवा के हर क्षेत्र में नए-नए विश्व कीर्तिमान स्थापित कर रहा है, जो अनवरत जारी रहेंगे. मेवाड़ अपने डीएनए में समाहित सच्ची निधि "जो दृढ़ राखे धर्म को, तिहि राखे करतार' के संरक्षण-संवर्धन के लिए आगे भी संघर्षरत रहेगा.

लेखक का परिचयः डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ पूर्व राजपरिवार के सदस्य हैं. महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन के ट्रस्टी हैं. इनके नाम 8 गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज हैं. साथ ही महाराणा प्रताप स्मारक समिति, मोती मगरी के अध्यक्ष हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.