Rajasthan: राजस्थान में इन दिनों एक बीमारी का नाम सुर्खियों में आ रहा है. इसका नाम है सिकल सेल डिज़ीज़. राजस्थान सरकार के स्वास्थ्य विभाग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य के 9 ज़िलों में सिकल सेवा बीमारी का प्रकोप बढ़ रहा है. ये ज़िले हैं - बारां, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, पाली, सिरोही, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और उदयपुर. इन ज़िलों में लगभग 3 हज़ार (2980) लोगों में इस बीमारी की पुष्टि हुई है. लगभग 8 हज़ार (7,766) लोगों में इसके शुरुआती लक्षण पाए गए हैं. लेकिन यह बीमारी सिर्फ़ राजस्थान में ही नहीं हो रही है. भारत के इन राज्यों में भी सिकल सेल की बीमारी दर्ज की गई है - गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, असम, केरल, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड.
भारत में सबसे पहले इस बीमारी का पता 1950 के दशक में चला. जब शोध हुए तो पता चला कि ये बीमारी सबसे ज़्यादा आदिवासी समाज में होती है. इसकी मुख्य वजह यह है कि इन समुदायों में एंडोगैमी यानी आपस में ही विवाह करने का चलन रहा है. भारत में आदिवासियों की संख्या कुल आबादी का 8.6 फीसदी है.राजस्थान की 13.5 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति या आदिवासी है. एक अनुमान है कि आदिवासियों की लगभग 10 प्रतिशत आबादी में सिकल सेल बीमारी पाई जाती है. महिलाओं और बच्चों को ज्यादा खतरा होता है.
माता-पिता से होने वाली आनुवंशिक बीमारी
सिकल सेल डिज़ीज़ एक जेनेटिक यानी आनुवंशिक बीमारी है, यानी माता-पिता से होती है. इसमें सबसे सामान्य सिकल सेल एनीमिया है. ये बीमारी दो तरह की होती है. एक में लक्षण दिखाई देने लगते हैं. दूसरी में नहीं दिखाई देते, लेकिन बीमारी जीन में मौजूद होती है. ऐसे लोग बिल्कुल सामान्य लगते हैं. लेकिन बीमारी ऐसे ही लोगों से फैलने का ज़्यादा ख़तरा होता है. इन्हें करियर कहा जाता है. ऐसे महिला-पुरुष यदि शादी कर लेते हैं तो उनके बच्चे को सिकल सेल बीमारी होने का ख़तरा होता है.
सिकल सेल डिज़ीज़ में शरीर के रक्त में मौजूद लाल रक्त कोशिकाओं के अंदर हीमोग्लोबिन का आकार बदल जाता है. जेनेटिक कारणों से वह सिकल यानी हंसिया या आधे चांद जैसा हो जाता है. इससे रक्त के प्रवाह में रुकावट आने लगता है और जिससे शरीर में अलग हिस्सों में खून जमने लगता है और कई तरह की परेशानी होने लगती है.
समय पर इलाज ना हो तो इससे प्रभावित लोग सामान्य जीवन नहीं बिता पाते और गंभीर मामलों में इससे मौत हो जाती है. सिकल सेल बीमारी का मरीज़ 40 साल से ज़्यादा समय तक जीवित नहीं रह पाता.
सिकल सेल बीमारी में कोशिका का आकार सामान्य कोशिकाओं से अलग हो जाता है
सबसे ज़्यादा मरीज़ भारत में
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में सिकल सेल डिज़ीज़ से एक लाख से भी ज्यादा बच्चों की 5 साल से पहले ही मौत हो जाती है. ऐसे बच्चों में से लगभग 20 प्रतिशत 2 साल की उम्र से पहले, और 30 प्रतिशत 18 साल की उम्र से पहले दम तोड़ देते हैं. सिकल सेल के मामले पूरी दुनिया में पाए जाते हैं लेकिन इनमें लगभग आधी संख्या भारत से है.
भारत सरकार ने वर्ष 2023 में सिकल सेल एनीमिया के उन्मूलन के लिए एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया. इसका लक्ष्य वर्ष 2047 तक इस बीमारी को पूरी तरह से समाप्त कर देना है.
इस बीमारी को ख़त्म करने के लिए सबसे ज़रूरी टेस्टिंग या स्क्रीनिंग होती है जो एक आसान ब्लड टेस्ट होता है. अगर खास तौर पर ऐसे लोगों की पहचान हो जाए जिनके अंदर यह जीन है लेकिन उनमें बीमारी का कोई लक्षण नहीं दिखता तो इसे काफ़ी हद तक उनकी अगली पीढ़ी तक फैलने से रोका जा सकता है.
इसी लक्ष्य के तहत सिकल सेल बीमारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित आदिवासी इलाकों में बच्चों से लेकर 40 साल तक के लोगों की स्क्रीनिंग की व्यवस्था की गई है.
सिकल सेल एनीमिया के विरुद्ध अभियान के तहत एक आदिवासी बच्ची को जेनेटिक कार्ड देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (2021 की तस्वीर)
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टेस्टिंग के बाद ही शादी
स्क्रीनिंग के बाद ऐसे लोगों को एक खास कार्ड दिया जाता है जिसे जेनरेटिक काउंसलिंग आईडी कार्ड (GCID) कार्ड कहते हैं. ये कार्ड अलग-अलग रंग के होते हैं जो जीन में इस बीमारी के स्तर को दर्शाते हैं. सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित इलाकों में लोगों की शादियों में अब कुंडली तरह इस कार्ड का भी मिलान किया जाता है. अगर महिला-पुरुष दोनों में सिकल सेल एनीमिया का स्तर बराबर होता है तो उन्हें आपस में शादी नहीं करने की सलाह दी जाती है.
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अपूर्व कृष्ण NDTV में न्यूज़ एडिटर हैं.
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