Rajasthan: राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट (9-11 दिसंबर) के तीन दिन के सम्मेलन में राजस्थान में पर्यटन के क्षेत्र में अवसरों का लाभ उठाने को लेकर काफी चर्चाएं हुईं. दरअसल ऊँचे किलों, महलों, शांत झीलों और अद्भुत वास्तुशिल्प का प्रदेश राजस्थान भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का जीता-जागता प्रमाण है. लेकिन इस भव्यता के पीछे एक मौन संकट छिपा है. प्राचीन बावड़ियां, घाट, औधियां, हवेलियां, मंदिर और छतरियां जैसे अनगिनत ऐतिहासिक धरोहर धीरे-धीरे जर्जर हो रही हैं. यहां तक कि राजस्थान की जीवनरेखा मानी जाने वाली झीलें और जलाशय भी उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं. इस क्षरण को रोकने के लिए साहसिक और परिवर्तनकारी प्रयासों की ज़रूरत है.
पर्यटन विकास बांड (Tourism Development Bonds) ऐसा ही एक उपाय हो सकता है. ये बांड केवल वित्तीय साधन नहीं, बल्कि राजस्थान की उपेक्षित धरोहरों को पुनर्जीवित करने का एक दूरदर्शी उपाय साबित होंगे. यह पहल न केवल राजस्थान के पर्यटन परिदृश्य को बदल सकती है, बल्कि पूरे भारत में विरासत संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय मॉडल बन सकती है.
पर्यटन विकास बांड औद्योगिक घरानों को राजस्थान की सांस्कृतिक पुनर्जागरण में साझेदार बनाने के लिए डिज़ाइन किए जा सकते हैं. इन बांडों में निवेश कर उद्योगपति राज्य की उपेक्षित धरोहरों के संरक्षण और पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. इन बांडों से प्राप्त धनराशि का उपयोग स्मारकों के पुनरुद्धार, रखरखाव और आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप उन्नयन में किया जा सकता है.
इन बांडों की विशिष्टता उनकी “विन-विन” स्थिति में है. जैसे-जैसे पुनर्जीवित स्मारक अधिक पर्यटकों को आकर्षित करेंगे, वैसे-वैसे बांडों का मूल्य भी बढ़ेगा, जिससे निवेशकों को आकर्षक वित्तीय लाभ प्राप्त होंगे. वित्तीय लाभों से परे, उद्योगपतियों को राजस्थान के इतिहास के संरक्षण में योगदान देने की संतुष्टि मिलेगी, जिससे उनकी कॉर्पोरेट प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी.
अडॉप्ट ए मॉन्युमेंट- उद्देश्यपूर्ण CSR की पहल
उद्योगपतियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार “अडॉप्ट ए मॉन्युमेंट” योजना शुरू कर सकती है. इस पहल के तहत जो कंपनियां और उद्योगपति राइजिंग राजस्थान समिट में समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर करते हैं, उन्हें अपनी CSR योजनाओं के तहत विरासत स्थलों को गोद लेने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है.
प्रत्येक गोद लिए गए स्थल को - चाहे वह कोई प्राचीन बावड़ी हो, जीर्ण-शीर्ण हवेली हो, या भूली हुई छत्री - इन्हें किसी औद्योगिक घराने को एक निश्चित अवधि के लिए सौंपा जा सकता है. इस अवधि में, संबंधित कंपनी उस स्मारक के पुनरुद्धार, रखरखाव और संरक्षण के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करेगी. बदले में, उन्हें अपने ब्रांड को सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त और सौंदर्यपूर्ण ढंग से प्रदर्शित करने का अवसर मिलेगा.
पुनरुद्धार कार्य की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सरकार सेवानिवृत्त नौकरशाहों, विरासत विशेषज्ञों और पर्यटन हितधारकों की सहायता लेकर एक विशेष समिति बना सकती है. यह समिति प्रत्येक परियोजना की निगरानी करेगी और यह सुनिश्चित करेगी कि सभी कार्य सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से संवेदनशीलता के साथ पूरे किए जाएं.
राष्ट्रीय विरासत पुनरुद्धार के लिए एक ब्लूप्रिंट
एक बार सफल होने के बाद, राजस्थान का यह मॉडल पूरे भारत में लागू किया जा सकता है. यदि उद्योगपति अपने कुल निवेश का केवल 1% भी इस पहल में लगाते हैं, तो इसका प्रभाव परिवर्तनकारी होगा. यह पहल न केवल हजारों रोजगार पैदा करेगी, बल्कि पर्यटन को बढ़ावा देकर सतत राजस्व के नए स्रोत भी बनाएगी.
‘पर्यटन विकास बांड' और ‘अडॉप्ट ए मॉन्युमेंट' जैसी पहल केवल वित्तीय योजनाएं नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए राजस्थान की विरासत को जीवित रखने का एक ऐतिहासिक अवसर सिद्ध हो सकता है. यह पहल भारत और दुनिया के लिए एक आदर्श बन सकती है.
लेखक परिचय: यशवर्धन राणावत ‘जैवाणा' होटल एसोसिएशन, उदयपुर के उपाध्यक्ष हैं. वह बीसीआई टूरिज्म (बिज़नेस सर्कल इंडिया) के चार्टर अध्यक्ष के अलावा मेवाड़ क्षत्रिय महासभा संस्थान के संगठन सचिव हैं.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.