सोशल मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठने से यूजर्स की बढ़ेगी जिम्मेदारी 

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Dr. Prabhat Dixit

पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया ने दुनियाभर के लोगों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह कहना गलत नहीं होगा कि हर व्यक्ति को मीडिया और उसके प्रभाव का एहसास भी सोशल मीडिया से हुआ. यह संवाद और विचार-विमर्श का सशक्त माध्यम बना, जो हमारी सोच और समाज के ढांचे को बदलने में योगदान भी दे रहा है. लेकिन हाल के समय में इसकी विश्वसनीयता को लेकर गंभीर सवाल उठने लगे हैं. यह मुद्दा एक बार फिर से चर्चा में है.

2024 के अमेरिकी चुनावों में 'एक्स' (पूर्व में ट्विटर) और इसके मालिक एलन मस्क द्वारा ट्रंप के लिए खुले समर्थन ने एक्स की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मस्क ने चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन में सक्रिय भूमिका निभाई और इस मंच पर अपने राजनीतिक रुख को भी स्पष्ट किया.

एक खबर में बताया गया कि मस्क के स्वामित्व वाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) मॉडल ने यह स्वीकार किया है कि मस्क ने ट्रंप को फायदा पहुंचाने के लिए फेक न्यूज फैलाई. इस घटनाक्रम के बाद कई यूजर्स ने एक्स से दूरी बनाना शुरू कर दिया और कुछ ने इस मंच छोड़ने का अभियान भी शुरू किया है. पिछले दिनों ब्रिटेन का अख़बार 'द गार्डियन' ने तो इस पर ख़बरें पोस्ट न करने की भी घोषणा कर दी है.  

जब एलन मस्क ने ट्विटर को खरीदने की घोषणा की थी, तभी से इसे लेकर कई सवाल उठे थे. मस्क ने एक्स पर 'फ्री स्पीच' को बढ़ावा देने की नई नीतियां लागू कीं और कुछ प्रतिबंध अकाउंट्स को दोबारा से सक्रिय किया. इनमें डोनाल्ड ट्रंप का भी अकाउंट शामिल था.

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कई आलोचकों का मानना है कि एक्स की नई नीतियां 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' के नाम पर कट्टरपंथ को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं.

पिछले वर्ष, मंच पर हेट-स्पीच और विवादास्पद पोस्ट्स की संख्या में भारी वृद्धि हुई, जिससे इसकी साख और विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे हैं. यह केवल कंटेंट का मसला नहीं है, यूजर्स की संख्या बढ़ाने और घटाने के भी आरोप लगे हैं. हाल ही में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी कहा है कि पिछले चार सालों से उनके फॉलोअर्स की संख्या नहीं बढ़ रही है.

विश्वसनीयता का सवाल सिर्फ 'एक्स' तक ही सीमित नहीं है. हाल में चल रहे महाराष्ट्र चुनाव में भी मेटा के प्लैटफॉर्म्स (फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप) पर कुछ संगठनों ने चुनावी हस्तक्षेप के आरोप लगाए हैं. 'दलित सॉलिडेरिटी फोरम', 'ईकेओ', 'हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स', 'इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल' और 'इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल' की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के प्रचार में 'मेटा' के विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है.

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सोशल मीडिया का उद्देश्य भी समाज में खुला संवाद और विचार-विमर्श को बढ़ावा देना है, लेकिन वर्तमान में इस पर राजनीतिक और व्यावसायिक हितों का गहरा प्रभाव दिखता है. ऐसे में यह जरूरी है कि प्लेटफॉर्म्स अपनी पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करें.

इससे कुछ विशेष लोगों को लाभ पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, एक मीडिया रिपोर्ट में मेटा ने कहा है कि 'हम नियमों का उल्लंघन करने वाले विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं.' सोशल मीडिया की विश्वसनीयता पर उठ रहे सवाल बेवजह ही नहीं हैं. कनाडा की सोशल एक्टिविस्ट कारेन रोडमैन की इसी साल अक्टूबर में प्रकाशित हुई किताब 'द रोल ऑफ़ सोशल मीडिया इन 2024 इलेक्शन' में इसके बारे में विस्तार से लिखा गया है. 

अभी हाल में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और खोजी पत्रकार मारिया रेसा की पोलिटिको की यह टिप्पणी कि 2024 के अंत तक पता चल जाएगा कि लोकतंत्र जिंदा रहेगा या मर जाएगा, 2024 में दुनिया भर में चुनावों के पीछे के दांव को रेखांकित करती है.

सोशल मीडिया की इस विश्वसनीयता के संकट में कई यूजर्स नए विकल्प तलाश रहे हैं. थ्रेड्स, ब्लूस्काई और मास्टोडॉन जैसे प्लेटफॉर्म्स के बारे में दावा किया जा रहा है कि वे अधिक लोकतांत्रिक और पारदर्शी हैं और यूजर्स की भागीदारी को प्राथमिकता देते हैं. इन मंचों का उद्देश्य खुला और निष्पक्ष संवाद को प्रोत्साहित करना है, ताकि यूजर्स अपनी राय बिना किसी भय या पूर्वाग्रह के साझा कर सकें.

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सोशल मीडिया का उद्देश्य भी समाज में खुला संवाद और विचार-विमर्श को बढ़ावा देना है, लेकिन वर्तमान में इस पर राजनीतिक और व्यावसायिक हितों का गहरा प्रभाव दिखता है. ऐसे में यह जरूरी है कि प्लेटफॉर्म्स अपनी पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करें. साथ ही, यूजर्स को भी जिम्मेदारी बढ़ेगी, विवेकपूर्ण तरीके से इनका इस्तेमाल करना होगा. जब सभी पक्ष एक अच्छा संवाद सुनिश्चित करने में अपनी भूमिका निभाएंगे, तभी सोशल मीडिया सही मायने में लोकतांत्रिक माध्यम बन पाएगा.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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