एक तस्वीर की ज़ुबानी, राजस्थान कांग्रेस की कहानी

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Iqbal Khan

Rajasthan: तस्वीरों पर दुनिया के कितने ही शायरों, पोएट्स और कवियों ने कितना कुछ लिखा और पढ़ने वालों ने पढ़ा. कितनी ही तस्वीरों ने इतिहास की धारा बदल रख दी और कितनी तस्वीरों ने अपने भीतर इतिहास को समेट कर रख लिया। तस्वीरें, जिनमें अतीत के दुःख होते हैं, ख़ुशी और कभी-कभी पश्चाताप भी होता है. वो कभी वेदना से भर देती हैं तो कभी जैसे उनको देख कर आनंद की बयार सी चलने लगती हो. लेकिन, तस्वीरों में सिर्फ सन्देश ही नहीं होते उनमें उतने ही सबक़ भी होते हैं, और यह सब देखने के लिए शर्त है एक अदद 'नज़र' की ज़रुरत.

24 फ़रवरी 2025 को राजस्थान की राजधानी जयपुर की विधानसभा के ठीक सामने से आई इस तस्वीर ने एक लम्हे के लिए इतनी भावनाओं को हवा दी कि मैं समझ ही नहीं पाया कि आख़िर इसके भीतर ऐसा क्या है? जो राजस्थान कांग्रेस के, अतीत-वर्तमान और भविष्य, हिंदी व्याकरण के इन तीनों काल को परिभाषित कर देती है. 

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जब कांग्रेस की कश्ती को चाहिए था एक 'मल्लाह'

इस तस्वीर की भौगोलिकता को समझने के लिए साल 2013 से 2018 के बीच के काल की कांग्रेस को जानना बेहद ज़रूरी है. उस वक्त, अपने इतिहास के सबसे कमज़ोर दौर से गुज़र रही कांग्रेस को एक ऐसा 'मल्लाह' चाहिए था, जो मझधार में फंसी कांग्रेस की कश्ती को साहिल तक ले आये, जो युवा हो और जिसके बाज़ू मज़बूत हों. कांग्रेस ने सचिन पायलट को चुना. उस वक्त राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के पास महज़ 22 विधायक थे. उनमें गोविंद डोटासरा भी थे, उनकी ज़िम्मेदारी सदन में उपनेता विपक्ष की थी. 

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इस तस्वीर की कहानी में साल 2018 के शहीद स्मारक और सिविल लाइन्स फाटक पर डंडे खाते सचिन पायलट का अक्स नज़र आता है, तत्कालीन उपनेता गोविंद सिंह डोटासरा अब प्रदेशाध्यक्ष हैं, और पास में खड़े हैं नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली. साथ में 'ख़ुदाई मख्लूक़' हरीश चौधरी, जो मीडिया के हंगामे से दूर लेकिन पार्टी में पॉवर के सबसे पास हैं. 

राजस्थान की सियासत पर नज़र रखने वाले कहते हैं कि गोविंद सिंह डोटासरा 'कांग्रेस के क्राइसिस' से उभरने वाले नेता हैं. पार्टी के भीतर हुई घटनाओं ने ही उन्हें प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचाया है. खैर, जो भी हो सचिन पायलट के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस में पायलट-गहलोत गुट तो थे, लेकिन फिर भी अशोक गहलोत के दिल्ली जाने के बाद प्रदेश कांग्रेस का केंद्र कहीं न कहीं पायलट ही थे. 2018 का चुनाव कांग्रेस जीती लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे अशोक गहलोत. ये कैसे हुआ? ये कहानी फिर कभी, लेकिन यही दिन था जब से सचिन पायलट का जैसे राजस्थान की राजनीति से 'मोहभंग' हो गया. 2023 के चुनाव में वो 2018 के चुनाव वाले सचिन पायलट नहीं दिखे. सबने यही कहा 'वो बस टोंक में सिमट कर रह गए'. लगने लगा था, जैसे मल्लाह की ख़्वाहिश साहिल तक पहुंचना हो ही न, और ऐसे में कश्ती डूबी तो ऐसी कि कांग्रेस 70 सीटों पर सिमट गई. 

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इस तस्वीर में छिपा संदेश

आज इस तस्वीर की कहानी में साल 2018 के शहीद स्मारक और सिविल लाइन्स फाटक पर डंडे खाते सचिन पायलट का अक्स नज़र आता है, तत्कालीन उपनेता गोविंद सिंह डोटासरा अब प्रदेशाध्यक्ष हैं, और पास में खड़े हैं नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली. साथ में 'ख़ुदाई मख्लूक़' हरीश चौधरी, जो मीडिया के हंगामे से दूर लेकिन पार्टी में पॉवर के सबसे पास हैं. 

इस तस्वीर में राजस्थान कांग्रेस के भीतर सत्ता के 'विकेंद्रीकरण' का संदेश है, तो सबक है कि एक रहने में ही भलाई है. यह तस्वीर एक तरफ समय की अक्सर वीभत्स रहने वाली यात्रा को दिखाती है, तो दूसरी तरफ यह भी ज़ाहिर करती है कि सियासत कड़वाहट में और मिठास फर्क नहीं करती. जैसे पश्चिमी राजस्थान में काली घटाएं उम्मीद लेकर आती हैं कि मेघ बरसेंगे, लेकिन यह अक्सर ग़लत ही साबित होता है. यह तस्वीर भी राजस्थान कांग्रेस के लिए 'मरुप्रदेश के बादल' नहीं. हालांकि सच तो यह भी है कि राजनीति, फिजिक्स के भी नियम बदल देती है. 

गुलज़ार साहब ने लिखा था 'तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं, बस वो सब कह देती हैं जो हम कभी नहीं कह पाए'. गुलज़ार साहब ने लिखा था 'तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं' पर निदा फाज़ली ने भी कहा था 'जिस को भी देखना हो कई बार देखना'.

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इकबाल खान NDTV में पत्रकार हैं...

डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.