Blog: दीव - अनदेखा अनजाना द्वीप

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Sushant Pareek

पर्यटन के लिहाज़ से हिन्दुस्तान दुनिया के उन चंद देशों में से एक है जहाँ हर तरह की जगह, हर तरह के शहर हर तरह के रंग और हर तरह के मौसम मिल जाते हैं. पिछले कुछ सालों में हिन्दुस्तान में दुनिया से आने वाले पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ी है. इतना ही नहीं PM मोदी के आह्वान के बाद अब हिंदुस्तान के युवा देश की नई नई जगहों को एक्सप्लोर करने लगे हैं. इन सबके बावजूद बहुत सारी ऐसी जगह अभी भी है जो शायद इतनी शिद्दत से नहीं देखी जा सकी हैं जितना वे डिजर्व करती हैं. ऐसे ही एक जगह है केंद्र शासित प्रदेश जिसे हम “दीव” कहते हैं.

संस्कृत के द्वीप शब्द से दीव बना है. दीव ज़िले का लिखित इतिहास मौर्य काल के 322-220 ईसा पूर्व से प्रारंभ होता है. जब सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने पश्चिमी भारत में तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर जूनागढ़ के पास अपना मुख्यालय बनाया था. क़रीब 400 सालों तक पुर्तगालियों के शासन के चलते ही दीव के चप्पे-चप्पे पर आज भी पुर्तगाली शासन काल के निशान दिखाई देते हैं.

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दीव में पर्यटकों की कम संख्या की एक बड़ी वजह देश की राज्यों के साथ सीधी कनेक्टिविटी का कम होना है. यही वजह है कि यहाँ पर गुजरात राजस्थान महाराष्ट्र सहित देश के कुछ राज्यों की पर्यटक ही पहुँचते हैं.

लेकिन दीव का सौंदर्य यहाँ के ख़ूबसूरत समुद्र तटों से ही निखर कर आता है. देश दुनिया के समुद्री तटों से इतर दीव के समुद्री तट आपको साफ़ सुथरे स्वच्छ निर्मल और आँखों को सुकून देने वाले मिलेंगे. यहाँ का सूर्योदय और सनसेट आपको एक अलग तरह की मानसिक शांति का एहसास दिलाता है.

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यूँ तो दीव में कई बीच है लेकिन ख़ास तौर पर नागोआ बीच देखने लायक है. साफ़ नीला पानी और सफेद  रेत लहराते ताड़ के पेड़ के साथ एक ऐसा माहौल बनाते हैं जिसकी तुलना किसी अन्य जगह से नहीं की जा सकती. 

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दीव में पर्यटकों की कम संख्या की एक बड़ी वजह देश की राज्यों के साथ सीधी कनेक्टिविटी का कम होना है. यही वजह है कि यहाँ पर गुजरात राजस्थान महाराष्ट्र सहित देश के कुछ राज्यों की पर्यटक ही पहुँचते हैं. लेकिन देश में बढ़ते टूरिज़्म और नई जगह की खोज में तलाश युवा अब यहाँ बड़ी संख्या में आने लगे हैं. 

16वीं शताब्दी का पुर्तगालियों का क़िला

ऐसा नहीं है कि यहाँ आप केवल समुद्री किनारे पर शांत माहौल का ही आनंद ले सकते हैं बल्कि इतिहास से रूबरू होने का अवसर भी आपको यहाँ मिलता है. समुद्र किनारे बता दीव का प्राचीन क़िला अपने आप में वास्तुशिल्प का एक बड़ा चमत्कार है. सोलहवीं शताब्दी में अपने शासनकाल के दौरान पुर्तगालियों ने इसे बनाया था. दीव शहर से एक किलोमीटर दूर खंभात की खाड़ी के मुहाने पर बना ये  क़िला यहाँ का सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल है. इतने सालों बाद भी ज़िले की मज़बूती बताती है कि इसके इतिहास क्या रहा है. 

दरअसल दीव पर सबसे पहले सोमनाथ पाटन के वाज वंश के राजाओं का शासन था इसके बाद गुजरात के मुस्लिम सुल्तानों का शासन रहा. इसके  बाद पुर्तगाली गवर्नर नूनो डी कुन्हा दीव पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की लेकिन सुलतान ने उन्हें हरा दिया.

समुद्र के पानी के ठीक बीचों-बीच जो पानी कोटा क़िला या पुर्तगालियों के शासन के दौरान जेल रही थी. यहाँ पुर्तगाली शासन के दौरान कैदियों को रखा जाता था. दूर-दूर तक समुद्र के पानी के चलते यहाँ से भागना लगभग नामुमकिन था. उस दौर में इसे काले पानी की सज़ा भी कहा जाता था.

गुजरात के सुलतान बहादुर शाह ने  मुग़ल  सम्राट हुमायूँ से बचने के लिए पुर्तगालियों के साथ एक समझौता किया. इस समझौते के तहत भी 1535 में भी दीव पुर्तगालियों को दे दिया गया. समंदर के किनारे क़िला बनाया गया बाद में पुर्तगालियों ने पूरे दीव पर कब्ज़ा कर लिया और 1961 तक यहाँ शासन किया. 19 दिसंबर 1961 को भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय के तहत दीव को भारत में शामिल किया था. 

इसके किले से आपको एक दूसरी इमारत दिखाई देती है समुद्र के पानी के ठीक बीचों-बीच जो पानी कोटा क़िला या पुर्तगालियों के शासन के दौरान जेल रही थी. यहाँ पुर्तगाली शासन के दौरान कैदियों को रखा जाता था. दूर-दूर तक समुद्र के पानी के चलते यहाँ से भागना लगभग नामुमकिन था. उस दौर में इसे काले पानी की सजा भी कहा जाता था. फ़िलहाल इसे दीव प्रशासन टूरिस्ट स्पॉट के तौर पर विकसित करने की कोशिश कर रहा है यहाँ नया रेस्टोरेंट या कैफ़े बनाने की योजना चल रही है. 

सेंट पॉल चर्च

ऐतिहासिक धरोहरों के साथ साथ दीव में पुर्तगाली शासन के दौरान धार्मिक प्रभाव भी साफ़ दिखाई देता है. दीव में सेंट पॉल चर्च ऐसी ही एक जगह है जहाँ की स्थापत्य कला पर पुर्तगाली शासन का प्रभाव साफ़ तौर पर नज़र आता है. यह चर्च उस दौर में कला का अद्भूत नमूना है.

इतालवी बारोक वास्तुकला का इससे बेहतरीन उदाहरण हिन्दुस्तान में दूसरी जगह देखने को नहीं मिल सकता. पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के दौरान इस चर्च का यहाँ पर बहुत बड़ा प्रभाव था. हालाँकि अभी भी यहाँ पर कुछ कैथोलिक परिवार रहते हैं जो नियमित तौर पर शाम को प्रेयर करने आते हैं. 

दीव आने वाले व्यक्ति की यात्रा यहाँ पर बनी प्राकृतिक गुफाओं को देखे बिना अधूरी है. दीव की ये गुफाएं अपने प्राकृतिक सौंदर्य का अनुपम उदाहरण है दीव क़िले के पास बने ये गुफाएं भूलभुलैया की ऐसी संरचना है जहाँ आना आपको किसी एक अलग दुनिया में ले जाने का एहसास दिलाता है.

कहा जाता है कि दीव के क़िले के निर्माण के दौरान यहीं से पत्थरों को काटकर चट्टानें ले जाई गई थीं. उन्हीं चट्टानों को काटे जाने से इनको गुफाओं का निर्माण हुआ था. यही वजह है कि बाहर से आने से आने वाला प्रकाश हमेशा इन गुफाओं को रोशन रखता है. पिछले दिनों गुफ़ाओं का एक हिस्सा ढह जाने से गुफाओं की मरम्मत का काम चल रहा है. 

गंगेश्वर महादेव का मंदिर

दीव में केवल इतिहास और समुद्री किनारे नहीं बल्कि ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों का भी समागम है. दीव में समुद्र किनारे  गंगेश्वर महादेव का मंदिर है जो इस क्षेत्र में आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है.

समुद्र किनारे बने इस मंदिर में पाँच शिवलिंग हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वनवास के दौरान पांचों पांडवों ने पूजा के लिए यहाँ स्थापित किए थे. बड़ी बात यह कि समुद्र के तट पर बने इन पांचों शिवलिंग पर समुद्र की लहरों से जलाभिषेक होता है. 

कुल मिलाकर दीव की ये यात्रा आपको एक अलग दुनिया का एहसास करवाएगी. यहाँ आपको शांति सुकून मिलेगा जीवन का एक अलग ठहराव भी महसूस करने का अवसर आपको मिल पाएगा.

आप अलग-अलग जगहों को एक्सप्लोर कर पाएंगे साथ ही आपको प्रकृति को इतने क़रीब से देखने का अवसर भी मिलेगा तो अगर आप कहीं घूमने का मन बना रहे हैं तो दीव की यह यात्रा आपको निराश नहीं करेगी.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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