Gangaur 2024: आज भी अपने ईशर के बिना अकेली है जैसाण की गवर, बिना पलक झपकाए कर रही है इंतजार

Gangaur Festival: गणगौर का पर्व हर कुंवारी लड़की व सुहागन महिला के लिए सबसे खास होता है. इस त्यौहार पर कुंवारी लड़कियां अच्छे जीवनसाथी पाने की कामना करती हैं, और सुहागन महिलाएं अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र व स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद पाती हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जैसलमेर की शाही गवर आज भी अपने ईशर के इंतजार में अकेली है.

  • पश्चिमी राजस्थान में रेतीले धोरों के बीच स्थित जैसलमेर वैभव, कला और संस्कृति का बेहतरीन संगम है. प्राचीन काल में 'माडधरा' अथवा 'वल्लभमण्डल' के नाम से प्रसिद्ध रहा यह शहर आज विश्वभर में गोल्डन सिटी के नाम से प्रसिद्ध है. जैसलमेर का इतिहास यहां के हर पत्थर में हर कण में विराजमान है. उसी इतिहास में एक कहानी है गवर की, जो आज भी बिना पलक झपकाए अपने ईशर का इंतजार कर रही है. आज गणगौर तीज का त्यौहार है. हर सुहागन ईशर और गवर के आगे पूजा कर अपने पति की स्वस्थ और लंबी उम्र की कामना करती है. लेकिन जैसलमेर के गवर माता को आज भी अपने ईशर का इंतजार है.
    पश्चिमी राजस्थान में रेतीले धोरों के बीच स्थित जैसलमेर वैभव, कला और संस्कृति का बेहतरीन संगम है. प्राचीन काल में 'माडधरा' अथवा 'वल्लभमण्डल' के नाम से प्रसिद्ध रहा यह शहर आज विश्वभर में गोल्डन सिटी के नाम से प्रसिद्ध है. जैसलमेर का इतिहास यहां के हर पत्थर में हर कण में विराजमान है. उसी इतिहास में एक कहानी है गवर की, जो आज भी बिना पलक झपकाए अपने ईशर का इंतजार कर रही है. आज गणगौर तीज का त्यौहार है. हर सुहागन ईशर और गवर के आगे पूजा कर अपने पति की स्वस्थ और लंबी उम्र की कामना करती है. लेकिन जैसलमेर के गवर माता को आज भी अपने ईशर का इंतजार है.
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  • मरूप्रदेश की जैसलमेर रियासत प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक वैभव एवं बेजोड रीति-रिवाजों के लिये खास पहचान रखती है. जैसलमेर की गणगौर (गवर) के शाही नजारे की बात निराली है. मरू क्षेत्र की अनूठी आन, मान और शान की मनभावन झलक गणगौर के लवाजमे में देखने को मिलती है. इस मेले में राजा से लेकर आम आदमी शामिल होकर अपनी भागीदारी निभाता था. लेकिन वक्त के साथ जैसलमेर की शाही गणगौर को नजर लग गई, जिससे आज भी वह अकेली है. यानी इस मूर्ति के साथ ईसर की मूर्ति नहीं है. रियासतकाल में बीकानेर के महाराजा ने आपसी दुश्मनी के कारण ईशर की प्रतिमा को उठा ले गए थे. उसके बाद आज तक नई मूर्ति नहीं बनी.
    मरूप्रदेश की जैसलमेर रियासत प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक वैभव एवं बेजोड रीति-रिवाजों के लिये खास पहचान रखती है. जैसलमेर की गणगौर (गवर) के शाही नजारे की बात निराली है. मरू क्षेत्र की अनूठी आन, मान और शान की मनभावन झलक गणगौर के लवाजमे में देखने को मिलती है. इस मेले में राजा से लेकर आम आदमी शामिल होकर अपनी भागीदारी निभाता था. लेकिन वक्त के साथ जैसलमेर की शाही गणगौर को नजर लग गई, जिससे आज भी वह अकेली है. यानी इस मूर्ति के साथ ईसर की मूर्ति नहीं है. रियासतकाल में बीकानेर के महाराजा ने आपसी दुश्मनी के कारण ईशर की प्रतिमा को उठा ले गए थे. उसके बाद आज तक नई मूर्ति नहीं बनी.
  • कई वर्षो पूर्व रियासत कालीन समय से ही जैसलमेर में गणगौर की सवारी बड़े धूमधाम दुर्ग से निकलती थी. इतिहासकारों का कहना है कि रियासतकाल में राजपूताना कई रजवाड़ों में बंटा हुआ था. लोग परस्पर अहम ईर्ष्या भाव भी रखते थे. इसी भाव के चलते एक दूसरे के राज्यों में लूटपाट करते थे. इसी बीच इतिहास की कुछ घटनाओं के अनुसार बीकानेर के शासकों ने जैसलमेर पर धावा बोलने की फिराक में रहे ओर जैसलमेर क्षेत्र को लूटने लगे. जैसलमेर के लोग भी बीकानेर के पशुओं का चुराकर लाने की लूटपाट होती रहती थी. एक बार जैसलमेर के राज परिवार में विवाह के अवसर पर शादी के बाद दूल्हे पर स्वर्ण मुद्राओं की घोल कर उसे चंवरी में उछाला गया था. यह बीकानेर के शासकों को अच्छा नहीं लगा. उस समय तो वह कुछ नहीं बोले. परन्तु जब बीकानेर के लोगों को पता चला कि जैसलमेर की गणगौर की सवारी सबसे बेहरतीन है तो उन्होंने ईश्वर व गवर की विशाल प्रतिमा को लूटने का प्रयास किया. बीकानेर के लोगों ने गणगौर मेले के अवसर पर गड़ीसर जाती गवर ईसर की सवारी पर अचानक धावा बोल दिया. जैसलमेर के लोग लड़े उन्होंने गवर को तो बचा लिया लेकिन ईसर की प्रतिमा को ले जाने में बीकानेर के लोग सफल हो गए. तब से जैसलमेर की गवर आज तक बिना ईसर के अकेली है और गणगौर पर शोभायात्रा में गवर की सवारी बिना ईसर के ही निकलती है.
    कई वर्षो पूर्व रियासत कालीन समय से ही जैसलमेर में गणगौर की सवारी बड़े धूमधाम दुर्ग से निकलती थी. इतिहासकारों का कहना है कि रियासतकाल में राजपूताना कई रजवाड़ों में बंटा हुआ था. लोग परस्पर अहम ईर्ष्या भाव भी रखते थे. इसी भाव के चलते एक दूसरे के राज्यों में लूटपाट करते थे. इसी बीच इतिहास की कुछ घटनाओं के अनुसार बीकानेर के शासकों ने जैसलमेर पर धावा बोलने की फिराक में रहे ओर जैसलमेर क्षेत्र को लूटने लगे. जैसलमेर के लोग भी बीकानेर के पशुओं का चुराकर लाने की लूटपाट होती रहती थी. एक बार जैसलमेर के राज परिवार में विवाह के अवसर पर शादी के बाद दूल्हे पर स्वर्ण मुद्राओं की घोल कर उसे चंवरी में उछाला गया था. यह बीकानेर के शासकों को अच्छा नहीं लगा. उस समय तो वह कुछ नहीं बोले. परन्तु जब बीकानेर के लोगों को पता चला कि जैसलमेर की गणगौर की सवारी सबसे बेहरतीन है तो उन्होंने ईश्वर व गवर की विशाल प्रतिमा को लूटने का प्रयास किया. बीकानेर के लोगों ने गणगौर मेले के अवसर पर गड़ीसर जाती गवर ईसर की सवारी पर अचानक धावा बोल दिया. जैसलमेर के लोग लड़े उन्होंने गवर को तो बचा लिया लेकिन ईसर की प्रतिमा को ले जाने में बीकानेर के लोग सफल हो गए. तब से जैसलमेर की गवर आज तक बिना ईसर के अकेली है और गणगौर पर शोभायात्रा में गवर की सवारी बिना ईसर के ही निकलती है.
  • किले से ही सांय को शोभा यात्रा निकलती है. गवर की मूर्ति को एक औरत सिर पर उठाए होती है. शोभा यात्रा में सबसे आगे घोडों पर बैठे सवार नगाडे बजाते है. इनके पीछे श्रृंगारित ऊंट और इनके पीछे जैसलमेर के लोक गायक मंगणियार अपने वाद्य-पत्रों को बजाते हुए मंगल गायन करते हैं. साथ ही बैंड-बाजों वाले व नृत्यांगनाएं भी नृत्य मुद्राओं में होती हैं. राजपरिवार के निकटवर्ती सदस्य भी इसमें शाही वस्त्र पहन कर शामिल होते हैं. महारावल स्वयं एक घोडे पर विराजमान होते है तथा आम जनता का अभिवादन स्वीकार करते है. आम लोग महारावल के जयकारे करते है. गांवों के पूर्व जागीरदार, जमींदार, ठाकुर भी शामिल होते है. वें रंग-बिरंगी पगडयां बांधे कुर्ता टेवटा पहने मूंछों को बट दिए बडे मस्ताने दिखते है.अनेक भाटी राजपूतों के हाथों में अस्त्र-शस्त्र होते है. इस लवाजमे की शोभा देखते ही बनती है.
    किले से ही सांय को शोभा यात्रा निकलती है. गवर की मूर्ति को एक औरत सिर पर उठाए होती है. शोभा यात्रा में सबसे आगे घोडों पर बैठे सवार नगाडे बजाते है. इनके पीछे श्रृंगारित ऊंट और इनके पीछे जैसलमेर के लोक गायक मंगणियार अपने वाद्य-पत्रों को बजाते हुए मंगल गायन करते हैं. साथ ही बैंड-बाजों वाले व नृत्यांगनाएं भी नृत्य मुद्राओं में होती हैं. राजपरिवार के निकटवर्ती सदस्य भी इसमें शाही वस्त्र पहन कर शामिल होते हैं. महारावल स्वयं एक घोडे पर विराजमान होते है तथा आम जनता का अभिवादन स्वीकार करते है. आम लोग महारावल के जयकारे करते है. गांवों के पूर्व जागीरदार, जमींदार, ठाकुर भी शामिल होते है. वें रंग-बिरंगी पगडयां बांधे कुर्ता टेवटा पहने मूंछों को बट दिए बडे मस्ताने दिखते है.अनेक भाटी राजपूतों के हाथों में अस्त्र-शस्त्र होते है. इस लवाजमे की शोभा देखते ही बनती है.
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  • नगर की सड़कें दर्शकों से भर जाती है. लोग अपनी छतों पर चढकर पुष्प वर्ष करते हैं. ठुमक-ठुमक करती यह शोभा-यात्रा प्राचीन जल स्त्रोत गडीसर पहुंचती है. जहां गवर की विधिवत पूजा होती है. फिर वह लवाजमा पुनः दुर्ग में पहुंचता है. हालांकि पिछले कुछ सालों से राजपरिवार में शोक संताप इंत्यादि के चलते स्वारी न निकालकर केवल राज महल के बाहर गवर माता के दर्शन ही करवाए जाते है.
    नगर की सड़कें दर्शकों से भर जाती है. लोग अपनी छतों पर चढकर पुष्प वर्ष करते हैं. ठुमक-ठुमक करती यह शोभा-यात्रा प्राचीन जल स्त्रोत गडीसर पहुंचती है. जहां गवर की विधिवत पूजा होती है. फिर वह लवाजमा पुनः दुर्ग में पहुंचता है. हालांकि पिछले कुछ सालों से राजपरिवार में शोक संताप इंत्यादि के चलते स्वारी न निकालकर केवल राज महल के बाहर गवर माता के दर्शन ही करवाए जाते है.