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In pics: मुहर्रम महीने के 10वें दिन इमाम हुसैन की शहादत में निकाला ताजिया, गम के साथ दी विदाई

Muharram 2025: इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत मुहर्रम महीने से होती है, जिसे सबसे पाक महीनों में गिना जाता है. इस माह की खास बात यह है कि इसे सब्र, कुर्बानी और सच्चाई की मिसाल के रूप में याद किया जाता है.मुहर्रम की 10वीं तारीख को यौमे-ए-अशूरा कहा जाता है, जो बेहद अहम दिन होता है. इसी दिन हज़रत इमाम हुसैन ने हक और इंसाफ के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी थी. उनकी यह कुर्बानी आज भी इंसानियत, सब्र और ईमानदारी की मिसाल बनी हुई है.

  • मुहर्रम महीने की 10वीं तारीख को 'आशूरा' कहा जाता है.आशूरा के दिन ही हजरत रसूल के नवासे हजरत इमाम हुसैन अपने बेटों, परिवार के सदस्यों और अपने साथियों (परिवार के सदस्यों) के साथ कर्बला के मैदान में शहीद हुए थे.
  • यह इस्लामी कैलेंडर के पहले दिन यानी मुहर्रम की शुरुआत में हज़रत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है. इस महीने की कई खासियतें और महत्व हैं.
  • इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों की शहादत को याद करते हुए ताजिया बनाते हैं. यह उनके रोजे (निर्वाण स्थल) के रूप में होता है.
  • राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में भी मुहर्रम की दसवीं तारीख यानी आशूरा का दिन दिल में गम और आंखों में आंसू लेकर मनाया गया. बीकानेर में मुहर्रम की नौवीं तारीख को सबसे दुखद मानी जाने वाली आशूरा की रात को मातम, मातम और दुआओं का सिलसिला चला.। जिसमें कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रोजे (निर्वाण स्थल) की हूबहू प्रतिकृति बनाकर शहादत को याद किया गया.
  • सीकर में मुस्लिम समुदाय की ओर से मोहर्रम से एक दिन पूर्व शहादत को याद किया गया. इमाम बाड़े में मुस्लिम समाज के लोगों ने मातमी धुनों के साथ हजरत इमाम हुसैन की शहादत को किया याद किया साथ ही उनके रोजे को दफनाया.
  • दौसा में भी इमाम हुसैन की शहादत के मौके पर ताजिया निकाले गए। शहर के शेखान और नागोरी मोहल्ले में दो ताजिया निकाले गए, जो सामाजिक सौहार्द की मिसाल पेश करते हैं, क्योंकि यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग मिलकर जुलूस निकालते हैं।