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In Pics: मोलेला मिट्टी से बनी विश्वभर में मशहूर 'टेराकोटा आर्ट', दुनिया में बढ़ी राजस्थान की पहचान

Terracotta Art: राजस्थान के राजसमंद जिले के मोलेला गांव के कुशल कुम्हारों के जरिए बनाई गई टेराकोटा कला आज पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो रही है. अपनी बेजोड़ कला के कारण यह अब भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग बन गई है

  • मोलेला राजस्थान के राजसमंद जिले का एक गांव है, जो अपनी सदियों पुरानी टेराकोटा परंपरा के लिए फेमस है. यहां के कुशल कुम्हारों के जरिए बनाई गई टेराकोटा कला एक अनूठी कला है जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग बन गई है.
  • वास्तुकला में, "टेराकोटा" शब्द का इस्तेमाल अक्सर लाल रंग की मिट्टी की मूर्तियों या कार्यात्मक वस्तुओं जैसे कि फूलों के बर्तन, पानी और अपशिष्ट जल के पाइप, टेबलवेयर, छत की टाइलें और इमारतों की सतह की सजावट के लिए किया जाता है. इसमें प्रयोग में ली गई सामग्री को टेराकोटा भी कहा जाता है.
  • नाग देवता और स्थानीय लोक देवताओं की काल्पनिक चित्रकारी से शुरू हुई यह कला आधुनिक समय में कला के एक आदर्श के रूप में उभरी है. यह कई दूतावासों, हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों तथा पांच सितारा होटलों और रिसॉर्ट्स की शोभा बढ़ा रही है. हजारों मीटर की दीवार पर टाइलों के रूप में इसने अपनी जगह बना ली है.
  • अंधविश्वास से शुरू हुई यह आर्ट आज आधुनिक कलाकृति का अनोखा लैंडमार्क है, जिसे अपने घरों, दफ्तरों पर लगाकर इसकी ख्याति को बढ़ावा देने का काम भी किया गया है.
  • मोलेला मिट्टी से बनी इस कला का जीवंत प्रदर्शन देखने के लिए देशी-विदेशी पर्यटक नाथद्वारा से मात्र 14 किलोमीटर दूर मोलेला गांव आते हैं और यहां से कलाकृतियां खरीदते हैं.
  • अब तीसरी पीढ़ी ने मोलेला कला में कलाकृतियां बनाने के साथ-साथ आभूषण बनाने का काम भी शुरू कर दिया है. मिट्टी के आभूषण अब मेलों और बाजारों में भी अपनी जगह बना रहे हैं
  • मोलेला कला के संस्थापक मोहनलाल कुम्हार का 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया. सरकार ने 2021 में उनके नाम पर 5 रुपए का डाक टिकट भी जारी किया है. वे दृढ़ निश्चय और जुनून की सबसे बड़ी मिसाल हैं.मोहनलाल के भाई स्वर्गीय खेमराज को इस कला के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार मिल चुका है.