Nakoda Ji Jain Mandir: रंग बिरंगी रोशनी से नहाया प्राचीन जैन तीर्थ, भव्य वरघोड़े के साथ हुई तीन दिवसीय मेले की शुरुआत

बालोतरा जिले के जैन तीर्थ नाकोड़ा में शनिवार को तीन दिवसीय वार्षिक मेले का आगाज हुआ. मन्दिर द्वारा भगवान पार्श्वनाथ के जन्मकल्याणक महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित पौष दशमी मेले में देश-विदेश से श्रद्धालु नाकोड़ा पहुंचे. मंदिर प्रशासन द्वारा बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रबन्ध किए गए हैं. वहीं पूरे मंदिर प्रांगण को आकर्षक रंग बिरंगी रोशनी से सजाया गया. मेले में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के न्यायधीश दलबीर भंडारी सहित जानी मानी सख्सियतों ने भी भगवान पार्श्वनाथ व भैरव देव की पूजा अर्चना कर विश्व शांति की कामना की. तीर्थ पर देर रात विभिन्न कलाकारों द्वारा भक्ति सन्ध्या का भी आयोजन हो रहा है.

  • मेले में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के न्यायधीश दलबीर भंडारी सहित जानी मानी सख्सियतों ने भी भगवान पार्श्वनाथ व भैरव देव की पूजा अर्चना कर विश्व शांति की कामना की. तीर्थ पर देर रात विभिन्न कलाकारों द्वारा भक्ति सन्ध्या का भी आयोजन हो रहा है.
    मेले में अंतरराष्ट्रीय कोर्ट के न्यायधीश दलबीर भंडारी सहित जानी मानी सख्सियतों ने भी भगवान पार्श्वनाथ व भैरव देव की पूजा अर्चना कर विश्व शांति की कामना की. तीर्थ पर देर रात विभिन्न कलाकारों द्वारा भक्ति सन्ध्या का भी आयोजन हो रहा है.
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  • नाकोड़ा जैन मंदिर बालोतरा के पास मेवानगर गांव की पहाड़ियों के बीच तीसरी शताब्दी में निर्मित एक प्राचीन मंदिर है जिसका कई बार जीर्णोद्धार किया गया. मंदिर में जैन स्वेताम्बर धर्म के 23 वे तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की 58 सेमी ऊंची कमल की स्थिति में विराजमान है. वहीं द्वार पर भैरव देव की मूर्ति स्थापित है. माना जाता है कि तीसरी शताब्दी में वीरसेन व नार्कोसन नामक व्यक्तियों ने इस मंदिर का निर्माण किया था जो जैन समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है. मंदिर में पार्श्वनाथ के अलावा शांतिनाथ, ऋषभदेव जी के भी मन्दिर आस्था के केंद्र हैं.
    नाकोड़ा जैन मंदिर बालोतरा के पास मेवानगर गांव की पहाड़ियों के बीच तीसरी शताब्दी में निर्मित एक प्राचीन मंदिर है जिसका कई बार जीर्णोद्धार किया गया. मंदिर में जैन स्वेताम्बर धर्म के 23 वे तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की 58 सेमी ऊंची कमल की स्थिति में विराजमान है. वहीं द्वार पर भैरव देव की मूर्ति स्थापित है. माना जाता है कि तीसरी शताब्दी में वीरसेन व नार्कोसन नामक व्यक्तियों ने इस मंदिर का निर्माण किया था जो जैन समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है. मंदिर में पार्श्वनाथ के अलावा शांतिनाथ, ऋषभदेव जी के भी मन्दिर आस्था के केंद्र हैं.
  • इस तीर्थ का प्राचीन नाम वीरमपुर बताया गया है. तीसरी शताब्दी में वीरम सेन व नार्कोसन ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. मंदिर जैनाचार्य स्थूलिभद्रसूरी ने मन्दिर में पार्श्वनाथ भगवान की प्राचीन मूर्ति की स्थापना की. विक्रम 1224 ईस्वी में जब मुगल आक्रांता आलमशाह ने यहां आक्रमण किया तो जैन संघ ने मूर्ति को कालीद्रह गांव में छिपा दिया ओर दूसरी जगह बस गए. 1373 ईस्वी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया. वहीं जैन आचार्य कीर्तिरत्न सूरी जी ने हिन्दू देवता भैरव की मूर्ति की स्थापना की.
    इस तीर्थ का प्राचीन नाम वीरमपुर बताया गया है. तीसरी शताब्दी में वीरम सेन व नार्कोसन ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. मंदिर जैनाचार्य स्थूलिभद्रसूरी ने मन्दिर में पार्श्वनाथ भगवान की प्राचीन मूर्ति की स्थापना की. विक्रम 1224 ईस्वी में जब मुगल आक्रांता आलमशाह ने यहां आक्रमण किया तो जैन संघ ने मूर्ति को कालीद्रह गांव में छिपा दिया ओर दूसरी जगह बस गए. 1373 ईस्वी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया. वहीं जैन आचार्य कीर्तिरत्न सूरी जी ने हिन्दू देवता भैरव की मूर्ति की स्थापना की.
  • भैरव देव भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं. मां काली क्रोध को रोकने के लिए भैरव ने बालक के रूप में अवतार लिया था. नाकोड़ा में भैरव की स्थापना के पीछे भी एक किवदंती है कि जैन आचार्य हिमाचल सूरी जो मंदिर की देखरेख कर रहे थे तो मन्दिर में घूम रहे बालक को देखकर पूछा तो उसने कहा कि मैं इस क्षेत्र का भैरव हूं. आप मुझे भी इस मंदिर में जगह दें. वार्तालाप कर बालक वहां से गायब हो गया. जैनाचार्य भी सोच में पड़ गए कि जैन मंदिर में भैरव को कैसे स्थापित किया जाए. भैरव को सिंदूर, शराब व बलि चढ़ाई जाती है.
    भैरव देव भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं. मां काली क्रोध को रोकने के लिए भैरव ने बालक के रूप में अवतार लिया था. नाकोड़ा में भैरव की स्थापना के पीछे भी एक किवदंती है कि जैन आचार्य हिमाचल सूरी जो मंदिर की देखरेख कर रहे थे तो मन्दिर में घूम रहे बालक को देखकर पूछा तो उसने कहा कि मैं इस क्षेत्र का भैरव हूं. आप मुझे भी इस मंदिर में जगह दें. वार्तालाप कर बालक वहां से गायब हो गया. जैनाचार्य भी सोच में पड़ गए कि जैन मंदिर में भैरव को कैसे स्थापित किया जाए. भैरव को सिंदूर, शराब व बलि चढ़ाई जाती है.
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  • जैन आचार्य ने ध्यान लगाकर बालक रूपी भैरव को फिर से याद किया. जकीन आचार्य ने भैरव से कहा कि आपको जनेऊ धारण कर ब्राह्मण रूप में विराजित किया जा सकता है. भैरव देव भी इस बात से सहमत हो गए. जैनाचार्य ने जैसलमेर के पत्थर से बालरूप भैरव की मूर्ति बनवा उसे जनेऊ धारण करवाकर विधिविधान से मंदिर के बाहर स्थापित किया.
    जैन आचार्य ने ध्यान लगाकर बालक रूपी भैरव को फिर से याद किया. जकीन आचार्य ने भैरव से कहा कि आपको जनेऊ धारण कर ब्राह्मण रूप में विराजित किया जा सकता है. भैरव देव भी इस बात से सहमत हो गए. जैनाचार्य ने जैसलमेर के पत्थर से बालरूप भैरव की मूर्ति बनवा उसे जनेऊ धारण करवाकर विधिविधान से मंदिर के बाहर स्थापित किया.
  • तब से मंदिर में जैन धर्मावलम्बियों के साथ हिन्दू भी भैरव देव की पूजा के लिए नाकोड़ा मंदिर में आते है. हर वर्ष पौष दशमी को भव्य मेले का आयोजन होता है. जहां देश विदेश से हजारों श्रद्धालु दर्शन कर खुशहाली की कामना करते हैं. इस प्राचीन मंदिर में कई मंदिर स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने है. संगमरमर,जैसलमेर के पीले पत्थर व जोधपुर के पत्थर से यंहा कई जैन तीर्थंकरों के मंदिर बने हुए हैं. 
(अनिल वैष्णव की रिपोर्ट)
    तब से मंदिर में जैन धर्मावलम्बियों के साथ हिन्दू भी भैरव देव की पूजा के लिए नाकोड़ा मंदिर में आते है. हर वर्ष पौष दशमी को भव्य मेले का आयोजन होता है. जहां देश विदेश से हजारों श्रद्धालु दर्शन कर खुशहाली की कामना करते हैं. इस प्राचीन मंदिर में कई मंदिर स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने है. संगमरमर,जैसलमेर के पीले पत्थर व जोधपुर के पत्थर से यंहा कई जैन तीर्थंकरों के मंदिर बने हुए हैं. (अनिल वैष्णव की रिपोर्ट)