पन्ना धाय: इतिहास की वो “वीरांगना मां” जिन्होंने फर्ज निभाते हुए अपने बेटे तक का बलिदान दे दिया

Panna Dhai: पन्ना धाय ने अपने जिगर के टुकड़े को मेवाड़ की आन बचाने के लिए हंसते-हंसते न्योछावर कर दिया. शौर्य और पराक्रम की भूमि राजस्थान की धरती शुरू से ही वीरों की धरती के रूप में जानी जाती है. यहां की सैंकड़ों वीरांगनाओं ने विश्वभर के लिए एक मिसाल कायम की है. इसी में से एक है पन्नाधाय.

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तू पुण्यमयी, तू धर्ममयी, तू त्याग­ तपस्या की देवी ...धरती के सब हीरे­पन्ने, तुझ पर वारें पन्ना देवी

तू भारत की सच्ची नारी, बलिदान चढ़ाना सिखा गयी...तू स्वामिधर्म पर, देशधर्म पर, हृदय लुटाना सिखा गयी

गीतकार सत्य नारायण गोयंका का यह गीत मेवाड़ ही नहीं पूरे विश्व में मां की महिमा को चरितार्थ करने वाली ममता मयी मां पन्नाधाय के बलिदान की याद दिलाता है. जिसने अपने जिगर के टुकड़े को मेवाड़ की आन बचाने के लिए हंसते-हंसते न्योछावर कर दिया. शौर्य और पराक्रम की भूमि राजस्थान की धरती शुरू से ही वीरों की धरती के रूप में जानी जाती है. यहां की सैंकड़ों वीरांगनाओं ने विश्वभर के लिए एक मिसाल कायम की है. इसी में से एक है पन्नाधाय. जब-जब भी मेवाड़ का जिक्र होता है तब-तब पन्नाधाय को भी याद किया जाता है. जिसने राष्ट्रधर्म के लिए ऐसी मिसाल कायम की जिसका विश्व में कोई उदाहरण ही नहीं है. 

उदय सिंह की धाय मां 'पन्ना' 

अपना सर्वस्व लुटाने वाली वीरांगना पन्नाधाय किसी राजपरिवार से नहीं बल्कि एक गुर्जर परिवार से थी. जिनका जन्म माताजी की पांडोली गांव में हरचंद हांकला के परिवार में 8 मार्च 1490 में हुआ था. अपने बेटे चंदन के साथ ही मेवाड़ के उत्तराधिकारी उदयसिंह को दूध पिलाने के कारण इन्हें धाय मां कहा गया. जिसके बाद यह पन्नाधाय कहलाईं. मेवाड़ के महाराजा विक्रमादित्य के बेटे उदयसिंह जिन्हें दूध पिलाने से लेकर पालने-पोसने का काम पन्नाधाय करती थीं.

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उसी समय उदय सिंह के घराने के ही बनवीर ने एक साजिश के तहत उदय सिंह के पिता महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करवा दी और उदय सिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा. इसी बीच उदय सिंह की माता ने अपनी खास दासी पन्नाधाय के हाथों में उदय सिंह को सौंप दिया और मेवाड़ के भावी राणा की रक्षा करते हुए कुम्भलगढ़ भिजवाने की बात कही.

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उदय सिंह की जगह अपने बेटे को सुला दिया था 

पन्नाधाय ने चतुराई से उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुला दिया और उसे झूठी पत्तलों से ढक दिया ताकि किसी को इस टोकरी में बच्चा होने का अहसास तक ना हो. इसके बाद एक खास सेवक के हाथों इस टोकरी को महल से बाहर भिजवा दिया. इसी बीच बनवीर के आने की सूचना पाकर उदय सिंह के स्थान पर पन्नाधाय ने अपने पुत्र चंदन को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया. जब बनवीर ने आकर उदय सिंह के बारे में पूछा तो पन्ना ने उदय सिंह के पलंग की ओर इशारा किया. जिस पलंग पर कोई ओर नहीं बल्कि पन्नाधाय का पुत्र सोया था. बनवीर ने पन्ना का इशारा मिलते ही उसी समय पन्ना के पुत्र को उदय सिंह समझकर मार डाला.

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उदय सिंह को पहुंचाया सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया 

पन्ना ने अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र की हत्या होते देखी और बनवीर को शक न हो इस कारण उसने अपनी आंखों में आसूं तक नहीं आने दिए. बनवीर के लौट जाने के बाद पन्ना अपने पुत्र के शरीर को चूमकर उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी. इसके बाद पन्ना उदय सिंह को लेकर कई राजाओं के पास शरण मांगने गई लेकिन किसी ने शरण नहीं दी.

बाद में मेवाड़ के महाराणा बने उदय सिंह 

इसके बाद पन्ना कुंभलगढ़ के जंगलों में भटकती रहीं और एक के बाद एक काफी संघर्षों का सामना किया. बाद में कुम्भलगढ़ में उसे शरण दे दी गई. लगभग तेरह साल की उम्र में मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को अपने राजा के रूप में स्वीकार किया. समय बीतने के साथ उदयसिंह 1542 में मेवाड़ के महाराणा बन गए. इसी बलिदान से पन्नाधाय का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया.

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