कहानी ज्योति जोशी की, पति-बेटे की मौत के बाद कैंसर, फिर भी जिंदगी के सितम पर जज्बा भारी

जयपुर में पिछले 25 सालों से स्वतंत्रता दिवस पर एसएमएस स्टेडियम में एक उद्घोषिका की आवाज गूंजती है. मगर ज्योति जोशी के एनाउंसर बनने की कहानी बड़ी मार्मिक है.

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Rajasthan: राजस्थान की राजधानी जयपुर के सवाई मान सिंह स्टेडियम में इस वर्ष भी स्वाधीनता दिवस पर एक चिर-परिचित आवाज सुनाई दी. यह आवाज थी ज्योति जोशी की, जो लगातार 25 सालों ले इस कार्यक्रम का संचालन कर रही हैं. जयपुर में मुख्यमंत्री आवास से लेकर राजभवन या फिर विधानसभा कार्यक्रम के प्रारूप बदलते रहे हैं लेकिन संचालन कर्ता के रूप में कमान स्थायी तौर पर ज्योति जोशी के पास ही रहीं है.

हाल ही में राजपत्रित अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हुईं ज्योति जोशी ने देश के 5 राष्ट्रपतियों के मुख्य आतिथ्य में आयोजित कार्यक्रमों का भी संचालन किया है. इसके अलावा वर्ष 2010 के दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स के अलावा अनेक आयोजनों में उन्होंने बतौर संचालक अपना योगदान दिया है.

लेकिन अपनी खनकती आवाज से सरकारी आयोजनों में ऊर्जा बिखेरने वाली इस आवाज के पीछे दर्द की एक लंबी दास्तान छिपी है.

ज्योति जोशी

हादसों से होते हुए आवाज की दुनिया की यात्रा

मूलतः भीलवाड़ा की रहने वालीं डॉ ज्योति जोशी ने एनडीटीवी से बातचीत में अपनी संघर्ष यात्रा को साझा किया. उन्होंने बताया कि उनके पिता यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे और बचपन से ही उनका रेडियो और साहित्य से गहरा लगाव रहा है. मगर बाद में रेडियो और साहित्य कहीं पीछे छूट गया. बाद में रेडियो में कैजुअल अनाउंसर के तौर पर काम करने का मौका मिला मगर उन्होंने इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया. 

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विवाह के एक महीने बाद ही छोटे भाई की ब्रेन ट्यूमर से मौत हो गई. इसके बाद 1995 में शादी के कुछ समय बाद ही एक दुर्घटना में साइंटिस्ट पति की मौत से जीवन बिखर गया. पति के निधन के बाद  डिप्रेशन का एक लंबा दौर चला. इससे बाहर निकलने के लिए उन्होंने एक कार्यक्रम के संचालन की जिम्मेदारी ली और फिर इसे ही अपना जीवन बना लिया.

लेकिन फिर जीवन में कुछ ऐसे बड़े हादसे हुए जिनसे उनकी दुनिया बदल गई. विवाह के एक महीने बाद ही छोटे भाई की ब्रेन ट्यूमर से मौत हो गई. इसके बाद 1995 में शादी के कुछ समय बाद ही एक दुर्घटना में साइंटिस्ट पति की मौत से जीवन बिखर गया. पति के निधन के बाद  डिप्रेशन का एक लंबा दौर चला. इससे बाहर निकलने के लिए उन्होंने एक कार्यक्रम के संचालन की जिम्मेदारी ली और फिर इसे ही अपना जीवन बना लिया. मगर जीवन में अभी संघर्षों के और भी पड़ाव आने बाकी थे. 

मंच संचालन का सफर जारी था जब 2007 में एक सड़क दुर्घटना में 16 साल के बेटे को खोना पड़ा. मगर वह नहीं टूटीं और इस वज्रपात के एक महीने के बाद उन्होंने गणतंत्र दिवस का संचालन कर बता दिया कि जिंदगी के हर सितम पर उनका जज्बा भारी है. मगर इम्तिहानों का दौर खत्म नहीं हुआ था.

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कैंसर से जंग

ज्योति अपने परिजनों को खोने के दर्द से बाहर निकलने की जद्दोजहद में जुटी हुईं थी कि अचानक कैंसर की बीमारी ने उन्हें घेर लिया. मगर उन्होंने नियति की इस चुनौती को भी स्वीकार किया. और अपनी मजबूत इच्छा शक्ति से ना केवल कैंसर की गंभीर बीमारी से बाहर निकलीं बल्कि आज वह कैंसर मरीजों को प्रेरित करने का काम कर रही हैं.

साथ ही, जीवन ने जो गहरा दर्द दिया उसे ज्योति कागजों पर उकेरने लगीं. उनका कविता संग्रह “पिघला हुआ मन" प्रकाशित हो चुका है. जीवन के प्रति अपने नजरिए के बारे में ज्योति कहती हैं, "जब आपके हाथ में कुछ नहीं हो, तो केवल अपना कर्म करें और खुश रहें. किसे पता है कल क्या होगा."

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उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रहे बीएल जोशी के परिवार से आने वालीं ज्योति जोशी के मुश्किल दौर में उनकी बहन संध्या उनका सबसे बड़ा सहारा रही हैं. मध्यप्रदेश प्रशासनिक सेवा में अधिकारी संध्या ने अपनी बहन का सहारा बनने के लिए खुद विवाह नहीं किया.