117 Years Old Library Will Be Auctioned: नीलाम होगी 117 साल पुरानी लाइब्रेरी, मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति समेत कई हस्तियां कर चुकी हैं यहां पढ़ाई

कोर्ट के आदेश अनुसार दोनों कर्मचारियों को सिर्फ 1995 से 1998 तक के 3 साल के वेतन के भुगतान के आदेश जारी किए गए हैं. कोर्ट ने दोनों कर्मचारियों के बकाया वेतन के लिए पुस्तकालय को नीलाम करने के आदेश दिए हैं. महावीर पुस्तकालय की नीलामी अब 13, 14 और 15 मई को होगी. जिसमें भवन के बाहर नीलामी के पोस्टर बैनर भी चस्पा कर दिए गए हैं.

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117 साल पुराना पुस्तकालय

Sikar News: सीकर का ऐतिहासिक 117 साल पुराना महावीर पुस्तकालय अब नीलाम की कागार पर जा पहुंचा है. शहर की विरासत के रूप में अपनी पहचान रखने वाला जाट बाजार में मौजूद माधव सेवा समिति के ऊपर 1907 से संचालित हो रहे महावीर पुस्तकालय की नीलामी सिर्फ दो कर्मचारियों का 3 साल का वेतन नहीं देने के कारण होगी. पुस्तकालय अध्यक्ष लालचंद शर्मा और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी सुरेश टेलर को करीब 29 साल से वेतन नहीं दिए जाने के कारण उन्होंने कोर्ट में अवममना याचिका दायर की थी.

कर्मचारियों का वेतन बकाया, कोर्ट के आदेश पर नीलामी 

कोर्ट के आदेश अनुसार दोनों कर्मचारियों को सिर्फ 1995 से 1998 तक के 3 साल के वेतन के भुगतान के आदेश जारी किए गए हैं. कोर्ट ने दोनों कर्मचारियों के बकाया वेतन के लिए पुस्तकालय को नीलाम करने के आदेश दिए हैं. महावीर पुस्तकालय की नीलामी अब 13, 14 और 15 मई को होगी. महावीर पुस्तकालय भवन के बाहर नीलामी के पोस्टर बैनर भी चस्पा कर दिए गए हैं. दो कर्मचारियों के सिर्फ 5.49 लाख के लिए नीलाम हो रहे पुस्तकालय की शुरुआती बोली 1 करोड़ 56 लाख 8 हजार 682 रुपए तय की गई है. हालांकि इस विरासत की नीलामी से शहर के लोगों में आक्रोश भी है तो वहीं भामाशाह भी अब मामले को सुलझाने के लिए आगे आए हैं.

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यहां हैं कई ऐतिहासिक ग्रंथ 

आपको बता दें कि सीकर शहर के जाट बाजार में स्थिति ऐतिहासिक धरोहर महावीर पुस्तकालय में हजारों पुस्तकें और सैंकड़ों हस्तलिखित ग्रंथ आज भी रखे हुए हैं. जो अब पुस्तकालय की अलमारी में बंद पड़े हैं. पुस्तकालय में पुस्तकें और  हस्तलिखित ग्रंथ पढ़ने के लिए अब कोई नहीं पहुंचता. पुस्तकालय अध्यक्ष व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही सुबह शाम प्रतिदिन अपनी ड्यूटी देते हैं. वही ट्रस्ट के मौजूद सदस्यों की उदासीनता के चलते पुस्तकालय जर्जर हालत में पड़ा है. 

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पुस्तकालय अध्यक्ष लालचंद शर्मा ने बताया कि वह 1987 से और कर्मचारी सुरेश टेलर 1993 से यहां कार्यरत है. दोनों कर्मचारियों को 1995 तक वेतन मिला. इसके बाद दोनों बिना वेतन के ही लगातार काम करते आ रहे हैं. महावीर पुस्तकालय का संचालन 1907 से किया जा रहा है. पहले राजा महाराजाओं की ओर से पुस्तकालय को संचालित करने के लिए राशि निर्धारित की गई थी. उसके बाद शिक्षा निदेशालय को भी ट्रस्ट से अनुदान मिल मिलने लगा.

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अदालत की अवमानना का केस भी लगा 

महावीर पुस्तकालय को 1995-96 तक सरकारी अनुदान मिला. इसके बाद अनुदान नहीं मिलने और कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलने के कारण लगातार विवाद बढ़ता गया. उसके बाद मामला कोर्ट तक पहुंच गया. पुस्तकालय अध्यक्ष लालचंद शर्मा ने बताया कि ट्रिब्यूनल कोर्ट ने 17 जनवरी 1998 को पुस्तकालय सचिव को 2 महीने में वेतन देने व ऐसा नहीं करने पर भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत ब्याज देने के आदेश भी दिए थे. इसके साथ ही माध्यमिक शिक्षा निदेशालय को भी ट्रस्ट की बजाय अनुदान राशि सीधे कर्मचारियों को देने के निर्देश दिए थे. इसकी पालना नहीं होने पर कर्मचारियों ने हाई कोर्ट में अवममना याचिका का दायर की.

इसी दौरान गहलोत सरकार के समय शिक्षा अधिनियम में संशोधन होने पर मामला 2004 में सिविल कोर्ट में आ गया. 2015 में देवस्थान विभाग व माधव सेवा समिति ने भी पुस्तकालय पर अपना दावा पेश किया. लेकिन कोर्ट ने इन याचिकाओंको दरकिनार करते हुए अक्टूबर 2023 में पुस्तकालय सचिव को 3 महीने में दोनों कर्मचारियों का बकाया वेतन देने व ऐसा नहीं करने पर पुस्तकालय की नीलामी के आदेश दिए. अब निर्धारित समय में वेतन नहीं देने पर महावीर पुस्तकालय की नीलामी की जा रही है.

पुस्तकालय में पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व मुख्यमंत्री ने भी पढ़ी थी किताबें 

सीकर का महावीर पुस्तकालय विरासत्कालीन एवं ऐतिहासिक धरोहर है. यहां करीब 13 हजार से ज्यादा पुरानी पुस्तकों का भंडार है तो वही सैकड़ो हस्तलिखित ग्रंथ आज भी पुस्तकालय भवन में रखी अलमारी में पड़े हैं. जानकारी के अनुसार वर्ष 1996 में अपने उपचार के लिए सीकर आए पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भी महावीर पुस्तकालय की किताबें पड़ी थी. आज भी पुस्तकालय भवन में उनकी तस्वीर लगी हुई है.

इसी तरह राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया व सांसद सेठ गोविंद दास सहित कई ऐसी बड़ी हस्तियां है जिन्होंने भी इस पुस्तकालय में किताबें पढ़ने का लाभ उठाया था. लेकिन आज दो कर्मचारियों को वेतन नहीं देने के कारण यह विरासत खत्म होने की कगार पर जा पहुंची है. हालांकि अब सीकर के कई भामाशाह इस विरासत को बचाने की जुगत में लगे हुए हैं. अब देखना यह है कि सीकर के भामाशाह इस 117 साल पुरानी विरासत को नीलम होने से बचा पाते हैं या नहीं.

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