Rajasthan School Closed: राज्य सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा 449 स्कूलों को बंद कर निकटवर्ती विद्यालयों में विलय करने के फैसले के बाद अब अगले शैक्षणिक सत्र में भी कई स्कूलों पर गाज गिरने की संभावना है. शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के ताजा बयान से यह संकेत साफ हो गया है कि 25 से कम नामांकन वाले उच्च माध्यमिक विद्यालयों और 5 या उससे कम, यहां तक कि शून्य नामांकन वाले विद्यालयों को भी आगामी सत्र में नजदीकी स्कूलों में मर्ज किया जाएगा.
इस नीति के तहत पूरे प्रदेश में करीब 312 स्कूलों के विलय की तैयारी है. एनडीटीवी की टीम ने चितलवाना ब्लॉक का ग्राउंड सर्वे किया, तो तस्वीर और भी चिंताजनक नजर आई.
5 स्कूलों में नामांकन ‘शून्य'
पड़ताल में सामने आया कि चितलवाना ब्लॉक की 5 सरकारी प्राथमिक स्कूलों में एक भी विद्यार्थी नामांकित नहीं है. इन स्कूलों में महीनों से ताला लटका हुआ है या शिक्षक बिना पढ़ाई के नियमित उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं.
शून्य नामांकन वाले विद्यालय
1. प्राथमिक विद्यालय नयावास सांगवाड़ा, चितलवाना
2. जी.पी.एस. निंबाथान रामपुरा, चितलवाना
3. प्राथमिक विद्यालय निंबड़ा स्टेशन सांगङवा, चितलवाना
4. प्राथमिक विद्यालय जोधाणियों की ढाणी रणोदर, चितलवाना
5. प्राथमिक विद्यालय सारणों की ढाणी, चितलवाना
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इन इलाकों में पहले विद्यार्थियों की संख्या ठीक-ठाक थी, लेकिन लगातार शिक्षकों की कमी, दूरदराज की ढाणियों से बच्चों की आवागमन समस्या और निजी स्कूलों की ओर रुझान ने सरकारी स्कूलों को लगभग वीरान कर दिया है.
7 स्कूलों में नामांकन 10 से भी कम
इतना ही नहीं ब्लॉक की 7 अन्य स्कूलों में नामांकन 10 या उससे भी कम रह गया है. इनमें से कई विद्यालय ऐसे हैं जो कभी बच्चों की चहल-पहल से गूंजते थे.
कम नामांकन वाले विद्यालय
1. प्राथमिक विद्यालय रोहिड़ा नाडी जाटो गोलिया - नामांकन 7
2. प्राथमिक विद्यालय विशनपुरा- नामांकन 8
3. प्राथमिक विद्यालय बेनीवालों व जाणीओं की ढाणी हालीवाव- नामांकन 8
4. प्राथमिक विद्यालय सेवरो की ढाणी खमराई- नामांकन 9
5. प्राथमिक विद्यालय विश्नोइयों का गोलिया काछेला- नामांकन 9
6. जी.पी.एस. कांजी कोली का गोलिया- नामांकन 10
7. प्राथमिक विद्यालय विश्नोई की ढाणी बागली- नामांकन 10
चितलवाना ब्लॉक का यह हाल उस हकीकत की झलक देता है जो राजस्थान के कई ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल रही है जहां शिक्षा व्यवस्था बच्चों के स्कूल जाने की बजाय स्कूल बचाने की जद्दोजहद में उलझी है. अगर हालात नहीं सुधरे, तो आने वाले वर्षों में ग्रामीण शिक्षा का ढांचा और कमजोर हो सकता है.
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