Kargil Vijay Diwas: 24 दिन तक सहा पाकिस्तानी सैनिकों का टॉर्चर, पर नहीं खोली जुबान, रूह कंपा देगी शेखावाटी के लाल की कहानी

NDTV Ground Report: आज कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ पर एनडीटीवी की टीम दोनों शहीदों के पैतृक गांव पहुंची और वीर सैनिकों की वीरता की कहानी जानी, जिसे सुनकर आपकी भी गर्व महसूस होगा.

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कारगिल युद्ध में शहीद बनवारी लाल बगड़िया और विनोद कुमार नागा.

Rajasthan News: भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम का प्रतीक कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) की 25वीं वर्षगांठ आज पूरे देश में रजत जयंती (Silver Jubilee) के रूप में मनाई जा रही है. इसी के तहत पूरे देश में जगह-जगह सरकार व आमजन शहीदों को नमन कर रहे हैं. ज्ञात रहे कि साल 1999 में करीब 60 दिनों तक चले कारगिल युद्ध में भारत के बहादुर वीर जवानों ने पाकिस्तानी सेना को धूल चटा दी थी. भारतीय सेना के जवानों ने आज ही के दिन 26 जुलाई को पाकिस्तान द्वारा कब्जा की गई चौकियों पर भारत का तिरंगा फहराया था. मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक चले इस कारगिल युद्ध में 527 भारतीय सैनिक शहीद हुए तो वहीं करीब 1363 जवान घायल हुए थे.

शूरवीरों की धरती शेखावाटी की बात करें तो यहां के कई जवानों ने भी कारगिल युद्ध में अपनी अहम भूमिका निभाई थी.

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साल 1999 के कारगिल युद्ध में सीकर जिले के 7 सैनिक भी पाकिस्तानी दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए थे. इनमें से 2 बहादुर सैनिक थे जाट रेजीमेंट के बनवारी लाल बगड़िया (Banwari Lal Bagadia) और विनोद कुमार नागा (Vinod Kumar Naga).

आज कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ पर एनडीटीवी की टीम दोनों शहीदों के पैतृक गांव पहुंची और वीर सैनिकों की वीरता की कहानी जानी, जिसे सुनकर आपकी भी गर्व महसूस होगा.

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24 दिन तक पाकिस्तान में सहीं यातनाएं

सबसे पहले बात करते हैं सीकर जिले की लक्ष्मणगढ़ तहसील के नेछवा पंचायत समिति के छोटे से गांव सिंगडोला छोटा के शहीद बनवारी लाल बगड़िया की. बनवारी लाल बगड़िया 6 भाई बहनों के बीच चौथे नंबर के थे. उन्होंने 28 अप्रैल 1996 में भारतीय सेना की जाट रेजीमेंट में ड्यूटी ज्वाइन की थी. 1999 में बनवारी लाल बगड़िया की पोस्टिंग काकसर में थी. कारगिल की लड़ाई शुरू हुई, उस समय वह 15 मई 1999 को बजरंग पोस्ट पर कैप्टन सौरभ कालिया और अन्य चार साथियों के साथ सीमा पर पेट्रोलिंग पर थे. इस दौरान सीमा के नजदीक भेड़ बकरी चराने वाले लोगों ने उन्हें आकर जानकारी दी की बॉर्डर के नजदीक कुछ हलचल दिखाई दे रही है. जिस पर कैप्टन सौरभ कालिया, बनवारी लाल बगड़िया सहित पेट्रोलिंग कर रहे 6 जवान वहां पहुंचे तो वहां पाकिस्तानी सैनिक छिपकर बैठे थे. भारतीय सैनिकों के पहुंचने पर पाकिस्तान सेना की ओर से फायरिंग शुरू कर दी गई, जिसका भारतीय सैनिकों ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया.

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इधर भारत की ओर से 6 जवान मोर्चा संभाले हुए थे तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान की ओर से करीब 200 सैनिक थे. करीब 24 घंटे तक दोनों ओर से जबरदस्त गोलाबारी होती रही. करीब 24 घंटे तक सिर्फ 6 भारतीय जांबाज आखिरी गोली खत्म होने तक करीब 200 दुश्मनों का डटकर मुकाबला करते रहे. लेकिन भारतीय सैनिकों के पास सीमित मात्रा में गोला बारूद होने के कारण जब गोला बारूद खत्म हुआ तो पाकिस्तानी दुश्मनों ने उन्हें चारों ओर से घेरकर पकड़ लिया और अपनी सीमा में ले गए. दुश्मनों ने उनके साथ 24-25 दिन तक बर्बरता पूर्वक व्यवहार किया और कई यातनाएं दी.

भारतीय सेना की खुफिया जानकारी जुटाने के लिए दुश्मनों ने उनके हाथ पैर की उंगलियां काट डाली. गरम सलाखें शरीर में गोदी गई और आंख-कान भेद कर शव क्षत विक्षत हालत में भारतीय सीमा में पटक दिया.

दुश्मनों से यातनाएं सहने के बाद भी भारतीय जवानों ने अंतिम सांस तक अपनी जुबान दुश्मनों के सामने नहीं खोली. शहीद बनवारी लाल बगड़िया का शव भारतीय सेना को 9 जून को क्षत विक्षत हालत में पडा मिला था. सैनिकों के शव मिलने के बाद कारगिल युद्ध बड़े स्तर पर शुरू हो गया और करीब 60 दिन युद्ध चलने के बाद 26 जुलाई 1999 को भारतीय सैनिकों ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान सेना को खदेड़ते हुए जीत हासिल की.

शहीद पति को अमर मानकर आज भी करती हैं हर व्रत-त्योहार

शहीद बनवारी लाल बगड़िया की वीरांगना संतोष ने बताया कि परिवार आज भी वह दर्द भरा मंजर याद करता है तो सहम उठता है. शहीद वीरांगना ने बताया कि मेरे पति बनवारी लाल बगड़िया 15 मई 1999 में कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. वह 28 अप्रैल 1996 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे. उनकी 4 जून 1993 में मेरे साथ शादी हुई थी. 15 मई 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हो गए. शहीद बनवारी लाल बागड़िया का पार्थिव देह 15 जुलाई को पैतृक गांव सिंगडोला छोटा पहुंचा था, जहां उनका सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ. शहादत के 8 महीने पहले बनवारी लाल बगड़िया दादी की मौत पर आखरी बार अपने गांव आए थे. उन्होंने 15 मार्च 1999 को एक खत भी घर भेजा था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि छुट्टी मंजूर होते ही मई मैं घर लौटूंगा. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. इसलिए उनका आखिरी खत परिवार के लिए जीवन भर की यादगार बनकर रह गया.

शहीद वीरांगना संतोष कहती हैं कि वह आज भी वह अपने सुहाग को अमर मानती हैं और हर व्रत त्यौहार भी करती हैं.

गांव में भी शादी समारोह होने पर भगवान के बाद पहला निमंत्रण शहीद बनवारी लाल बगड़िया के स्मारक स्थल पर बनी उनकी प्रतिमा के सामने ही चढ़ते हैं. शादी विवाह के बाद विवाहित जोड़ों को भी शहीद की प्रतिमा पर लाकर धोक लगवाई जाती है. हर साल 15 अगस्त, 26 जनवरी, कारगिल विजय दिवस एवं शहीद दिवस पर भी स्मारक स्थल पर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. शहीद के नाम से ही गांव की स्कूल का नामकरण भी किया गया है. शहीद वीरांगना ने युवाओं को भी सेना में जाकर देश सेवा करने की अपील की. इसके साथ ही सरकार से भी आतंकवाद को खत्म करते हुए सैनिकों की हर समस्या का समाधान कर जरूरी सुविधा मुहैया करवाने की मांग उठाई.

शहीद बनवारी लाल बागड़िया के छोटे भाई ने भी अपने बड़े भाई के शौर्य और पराक्रम की गाथा बताते हुए कहा कि कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी घुसपैठियों के दांत खट्टे कर दिए और दुश्मनों को भारत की सीमा खदेड़ दिया. भारतीय जांबाज जवानों ने 26 जुलाई को कारगिल युद्ध में विजय पताका फहराते हुए भारत का तिरंगा झंडा वहां लहरा दिया. उन्होंने कहा हमें गर्व है कि हमारे भाई ने भी देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है. आज देश के सैनिकों की बदौलत ही देश सुरक्षित है. हमें अपने बच्चों को भी देश सेवा में भेजना चाहिए ताकि वह भी देश के लिए कुछ करके दिखाएं.

रामपुरा के जाबांज विनोद कुमार नागा भी कारगिल में हुए थे शहीद

वहीं सीकर शहर के नजदीकी छोटे से गांव रामपुरा के रहने वाले जाबांज सैनिक विनोद कुमार नागा ने भी कारगिल युद्ध में अपनी महती भूमिका निभाते हुए देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. शहीद विनोद कुमार नागा की वीरता के किस्से आज भी इलाके के लोग अपने बच्चों को बताते हैं. एनडीटीवी की टीम जब शहीद विनोद कुमार नागा के पैतृक गांव रामपुरा पहुंची तो ग्रामीणों और शहीद के परिजनों ने उनकी शहादत के किस्से बताते हुए कहा कि शहीद विनोद कुमार नागा 1994 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे. सेना में भर्ती होने के 2 साल बाद 1996 में विनोद कुमार की शादी सुभीता के साथ हुई. साल 1999 में कारगिल युद्ध में जाट रेजीमेंट की टुकड़ी में शामिल विनोद कुमार 30 मई को देश की हिफाजत करते हुए शहीद हो गए. 

शहीद विनोद कुमार नागा की पार्थिव देह 15 जुलाई को सीकर जिले के रामपुर गांव पहुंची, जहां सैनिक सम्मान के साथ शहीद विनोद कुमार का अंतिम संस्कार किया गया. कारगिल शहीद विनोद कुमार नागा के पैतृक गांव की सरकारी स्कूल का नामकरण भी शहीद के नाम से ही किया गया है. सरकारी विद्यालय के मुख्य द्वार पर शहीद की प्रतिमा भी लगाई गई है, जो स्कूल में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं और आमजन को देश की रक्षा व सेवा का संदेश देती है.

शहीद विनोद कुमार नागा की शहीद वीरांगना सुभीता ने अपने पति की वीरता और शौर्य की गाथा बताते हुए कहा उनके पति विनोद कुमार 1994 में सेना में भर्ती हुए थे. 1996 में उनकी शादी हुई और 1999 के कारगिल युद्ध में 30 जून को वह देश की सीमा की रक्षा करते हुए शहीद हो गए. शहीद वीरांगना ने कहा भले ही आज वह शहीद हो गए, लेकिन आज भी वह हमारे लिए अजर अमर हैं. हर शहीद वीरांगना अपने आपको सुहागन मानती है और हर व्रत-त्यौहार सुहागिन की तरह ही करती है.

शादी के 3 साल बाद ही पति को खोने का दर्द तो हमेशा रहेगा, लेकिन साथ ही इस बात की खुशी और गर्व भी है कि पति विनोद कुमार नागा देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं.

शहीद विनोद कुमार नागा के छोटे भाई की बेटी आकांक्षा ने भी अपने ताऊ की शहादत पर गर्व महसूस करते हुए कहा मेरे ताऊजी विनोद कुमार नागा कारगिल युद्ध में शामिल थे, जिन्होंने पाकिस्तान दुश्मनों से लोहा लेते हुए अपनी शहादत दी और देश सेवा में वीरगति को प्राप्त हुए. पूरे परिवार और गांव को उनकी शहादत पर बड़ा ही गर्व है. मेरी युवाओं से भी अपील है कि देश की रक्षा और सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहें. वहीं भारत सरकार और देश सेवा में सीमा पर तैनात सैनिकों से भी अपील है कि देश में बढ़ते आतंकवाद को जल्द से जल्द खत्म किया जाए, ताकि देश की आम आवाम सुख शांति और सुकून से रह सके.

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