Rajasthan: बैंकों के 3.50 करोड़ एक गलती से हो गए रद्दी, जानें पूरा मामला

राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आरबीआई के प्रतिबंध को वैध ठहराते हुए इससे जुड़ी सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया.

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बैंकों नै मिलर हाईकोर्ट में अपील की थी लेकिन राहत नहीं मिली
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राजस्थान में केंद्रीय सहकारी बैंकों (DCCB) और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (PACS) को बड़ा झटका लगा है. इन बैंकों के पास नोटबंदी के समय के बहुत सारे 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट जमा थे. लेकिन भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने इन्हें बदलने से मना कर दिया था. इसके बाद इन बैंकों ने अदालत का रुख किया और वहां गुहार लगाई. लेकिन उन्हें अदालत से राहत नहीं मिली. है. हाईकोर्ट ने नोटबंदी के नौ साल बाद साढ़े तीन करोड़ रुपये के पुराने नोटों को बदलने की मांग को स्वीकार नहीं किया.

याचिकाकर्ताओं की अपील

जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस अनुरूप सिंघी की खंडपीठ ने भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 14 राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट स्वीकार करने पर लगाए गए आरबीआई के प्रतिबंध को वैध ठहराया. अदालत ने इसके साथ ही इससे जुड़ी सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया और कहा कि 17 नवंबर 2016 को जारी किए गए परिपत्र पूरी तरह वैधानिक, तर्कसंगत और सार्वजनिक हित में थे.

इस मामले में मुख्य याचिका दुधू ग्राम सेवा सहकारी समिति लिमिटेड सहित सात सहकारी समितियों की ओर से दायर की गई थी. याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि 8 नवंबर 2016 को केंद्र सरकार ने आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 26(2) के तहत अधिसूचना जारी कर पुराने नोटों को बैंकिंग चैनलों से जमा करने की अनुमति दी थी. उनका कहना था कि जिला केंद्रीय सहकारी बैंक भी लाइसेंस प्राप्त बैंक हैं, इसलिए उन्हें पुराने नोट स्वीकार करने से रोका नहीं जाना चाहिए था।.

याचिका के अनुसार, उनके पास नोटबंदी के समय करीब 16.17 लाख रुपये के पुराने नोट थे, जिन्हें जमा न कर पाने से उनकी कार्यशील पूंजी प्रभावित हुई. साथ ही यह भी दलील दी गई कि आरबीआई के परिपत्र, 8 नवंबर की अधिसूचना के विपरीत हैं और कुछ सहकारी संस्थाओं को प्रारंभिक दिनों में अनुमति मिलना, जबकि अन्य को नहीं मिलना, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.

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आरबीआई की दलील और हाईकोर्ट का पक्ष

वहीं केंद्र सरकार और आरबीआई की ओर से कहा गया कि नोटबंदी एक असाधारण आर्थिक निर्णय था, जिसमें संचालन संबंधी निर्देश जारी करने का अधिकार आरबीआई को है. सहकारी बैंकों की ऑडिट व्यवस्था, तकनीकी तैयारी और निगरानी ढांचे को देखते हुए उनमें पुराने नोटों के दुरुपयोग का जोखिम अधिक था, इसलिए अस्थायी प्रतिबंध लगाया गया.

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह नोटबंदी की नीति की संवैधानिक वैधता पर विचार नहीं कर रहा है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ पहले ही इसे सही ठहरा चुकी है.

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अदालत ने कहा कि 8 नवंबर की अधिसूचना ने किसी संस्था को पुराने नोट स्वीकार करने का अपरिवर्तनीय अधिकार नहीं दिया था, बल्कि यह आरबीआई के निर्देशों के अधीन थी. अलग-अलग प्रभाव पड़ना भेदभाव नहीं माना जा सकता, यदि वर्गीकरण तार्किक और उद्देश्य से जुड़ा हो.

अदालत ने आरोपों को खारिज करते हुए सभी याचिकाएं निरस्त कर दीं और कहा कि ऐसे असाधारण आर्थिक निर्णयों में न्यायिक हस्तक्षेप सीमित होना चाहिए.

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