31 तोपों की गूंज और 897 किलो अभिषेक: जयपुर की छोटी काशी में जन्माष्टमी की धूम, गोविंद देव जी का पीतांबर श्रृंगार

Janmashtami 2025: भगवान श्री कृष्ण की तीन मूर्तियों में से गोविंद देव जी की प्रतिमा में मुखारविंद से दर्शन होते हैं.

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Rajasthan News: राजस्थान की राजधानी जयपुर के गोविंद देव जी मंदिर (Govind Dev Ji Temple Jaipur) में जन्माष्टमी (Janmashtami 2025) को लेकर तैयारियां अब चरम पर हैं. यहां की गलियां, मंदिर परिसर और उत्सव की रंगत देखते ही बनती है- जैसे जयपुर की अपनी एक 'छोटी काशी' को कृष्ण जन्मोत्सव की भव्यता ने सजाया हो.

मन्दिर में विशेष श्रृंगार की तैयारी

गोविंद देव जी, जो भगवान श्री कृष्ण की तीन मूर्तियों में से एक स्वरूप हैं, का जन्मोत्सव बेहद भव्यता और श्रद्धा से मनाया जा रहा है. ठाकुर जी और राधे रानी का श्रृंगार उनकी परंपरागत पीतांबर व वस्त्रों व आभूषणों के साथ सजाया गया है. मिठास में लिपटी गोविंद लीला का माहौल भक्तों को आत्मिक आनंद से भर देता है.

रात्रि 12 बजे 31 तोपों की गूंज

मध्यरात्रि के क्षण—उसी समय जब ज्योत कमल के साथ श्री कृष्ण का अवतरण माना जाता है—31 तोपों की गूंज मंदिर प्रांगण को हिलाकर रख देगी. भक्तों के मन में भक्ति की लहर दौड़ जाएगी, जो केवल अनुभव से ही समझी जा सकती है.

भक्ति की पंक्तियां और सेवाभाव

दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की कतारें हमेशा व्यस्त रहती हैं. कई वृद्धजन व्हीलचेयर पर आते हैं, उन्हें व्यवस्थित सेवक हाथोंहाथ मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचाते हैं. 90 साल की मोहिनी देवी, जो पिछले 60 वर्षों से रोज दर्शन हेतु आती हैं, प्रभु को “गोपी” कहकर पुकारती हैं और कहती हैं—'प्रभु, मेरे लिए भी घर बना लेना—जहां एक दिन उनका स्थान सदा के लिए बन जाए—वो प्रभु के चरणों के धाम में.

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अभिषेक की दिव्यता: 897 किलो पूरब

अभिषेक में इस वर्ष 897 किलो दूध, दही, घी, बूरा और शहद का प्रयोग होगा. देव सेवकों और प्रशासन ने मिलकर पुख्ता व्यवस्था कर रखी है—श्रद्धालुओं की लाईन बनती जाए, भक्तों का सुकून बना रहे, सभी को समय पर दर्शन मिले, यही मंत्र है.

वज्रनाभ की लीला: प्रतिमाओं की गाथा

भगवान श्री कृष्ण की तीन मूर्तियों में गोविंद देव जी प्रतिमा में मुखारविंद से दर्शन होते हैं. दूसरी—गोवीनाथ जी—कंधे से कमर तक, और तीसरी—मदनमोहन जी—पदकमल तक। यह कहावत भक्तों में लोकप्रिय है कि वज्रनाभ ने अपनी दादी से पूछा था, किस में होता है साक्षात दर्शन? दादी ने तीनों का वर्णन किया, और आज ये प्रतिमाएं अलग-अलग मंदिरों में विराजित हैं.

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