जी20 समिट में दिखी आकोला की दाबू प्रिंट की झलक, PM मोदी समेत दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों ने सराहा

दाबू प्रिंट में माहिर योगेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल डिपार्टमेंट दिल्ली के अंतर्गत आकोला की आर्टिजन महिलाओं को आकोला की दाबू प्रिंट का प्रशिक्षण दे चुके हैं.

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दाबू प्रिंट की स्टॉल पर PM मोदी

जी-20 शिखर सम्मलेन में छिपो के आकोला की दाबू प्रिंट का लाइव प्रदर्शन किया गया. चित्तौड़गढ़ जिले के छिपो का आकोला में दाबू प्रिंट का काम खूब होता हैं. यहां की रंगाई-छपाई के बाद तैयार वस्त्रों की बानगी देखते ही बनती है.आकोला के रहने वाले योगेश छीपा दाबु प्रिंट में महारत रखते है. योगेश ने आकोला की दाबू प्रिंट की रंगाई-छपाई के बारे में विश्व भर के राष्ट्राध्यक्षों और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अपनी कला का प्रदर्शन किया.

गौरतलब है योगेश इस प्राचीन कला के पुश्तैनी काम के बारे में आज दुनियां को रुबरू रहे हैं. योगेश ने इससे पहले इस दाबू प्रिंट की रंगाई-छपाई से तैयार वस्त्रों को उदयपुर, जयपुर और जी-20 कनेक्टिंग 2022, एमएलएसयू में जी-20 2022 के कार्यक्रम में भी बखूबी दाबू कला का प्रदर्शन कर चुके हैं . 

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दाबू प्रिंट में माहिर योगेश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल डिपार्टमेंट दिल्ली के अंतर्गत आकोला की आर्टिजन महिलाओं को आकोला की दाबू प्रिंट का प्रशिक्षण दे चुके हैं. रंगाई-छपाई की दाबू प्रिंट से आकोला क्षेत्र में कई लोगों को रोज़गार मिल रहा हैं.

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दाबु प्रिन्ट से तैयार आकोला का फेंटिया बहुत प्रसिद्ध है. फेंटिया,जिससे लहंगा बनता हैं. इसके अलावा चुनरी, बेड शीट, टेबल कवर, कम्बल, जाजम, शर्ट, कुर्ता, कुर्ती, लोंग ड्रेस समेत कई वस्त्र तैयार किया जाते हैं. इस कपड़े को तैयार करने में 7 दिन का समय लगता है.

दाबु प्रिंट से तैयार यहां का फेंटिया बहुत प्रसिद्ध हैं. फेंटिया जिससे लहंगा बनता हैं. इसके अलावा चुनरी, बेड शीट, टेबल कवर, कंबल, जाजम, शर्ट, कुर्ता-कुर्ती, लॉन्ग ड्रेस सहित कई वस्त्र तैयार किया जाता हैं. इस कपड़े को तैयार करने में 7 दिन का समय लगता है.

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दाबू प्रिंट की जानकारी लेते विदेशी मेहमान

क्या होती है दाबू प्रिंट कला 

दाबू प्रिंट दरअसल कपड़े पर एक मोहरनुमा ब्लॉक से अलग-अलग तरह की कलाकृतियों को छापने को कहते हैं. अलग-अलग तरह के प्राकृतिक रंगों का घोल बना कर कपड़ों साड़ियों और कुर्तों पर क़रीने से उकेरा जाता है. यानी रंगों में ब्लॉक को डूबा कर कपड़ों पर दाब के लगाना, इसलिए इसे “ दाबू प्रिंट “ कहा जाता है. दाबू प्रिंट करने की प्रक्रिया को “दबन्ना” कहते हैं. हालांकि इस कला पर कपड़े प्रिंट के कारोबार में मशीनों का प्रयोग बढ़ने से अब प्रभाव पड़ा है. लेकिन आकोला में आज भी यहां लोग इस कला को ज़िंदा रखने के लिए अभ्यास करते हैं.

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