Rajasthan News: रेगिस्तान के बीच बसे सरहदी जैसलमेर के लाठी, धोलिया, खेतोलाई के क्षेत्र में अक्सर देशी और विदेशी प्रजाति के पक्षी घूमते हुए दिख जाते हैं और यही वजह है कि जैसलमेर जैव विविधता (Biodiversity in Jaisalmer) की मिसाल बन गया है. पहली बार यहां विशेष प्रवासी पक्षी अमूर फाल्कन (Amur falcon) देखा गया है. अमूर बाज को दुनिया की सबसे लंबी यात्रा करने वाला पक्षी कहा भी जाता है, क्योंकि ये 20,000 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी तय कर सकता है.
जैसलमेर के धोलिया गांव के पास वन्यजीव प्रेमियों द्वारा बनाए वॉटर हॉल पर कई तरह के प्रवासी पक्षियों के आने का सिलसिला जारी है. यहां सीजन के हिसाब से हजारों पक्षी दुनियां भर के देशों से हजारों किलोमीटर की यात्रा करके पहुंचते हैं. जैसलमेर में पहली बार यह शिकारी पक्षी अमूर फाल्कन नजर आया है. वन्यजीव प्रेमी राधेश्याम विश्नोई ने बताया कि, अमूर फाल्कन छोटे आकार के शिकारी पक्षी हैं जो साइबेरिया, चीन और उत्तर कोरिया में अपनी गर्मियां बिताते हैं और शीतकालीन प्रवास के लिए भारत और श्रीलंका के रास्ते दक्षिण-पूर्वी अफ्रीका जाते हैं. इसलिए कुछ ही दिन ये भारत में बिताते हैं. ये करीब 11 हजार किमी की यात्रा कर जैसलमेर पहुंचा है.
राधेश्याम ने बताया कि अमूर फाल्कन बाज परिवार का छोटा शिकारी पक्षी है, इन्हें फाल्को एम्यूरेंसिस कहा जाता है. धोलिया गांव के पास बने वॉटर हॉल के पेड़ पर इससे पहले नॉर्दन शॉवलर, ब्लूथ्रॉट, रफ़, कॉमन सैंडपाइपर, वुड सैंडपाइपर, लिटल रिंगप्लोवर, कॉमन मूरहेन, लेसर ग्रेब, कॉमन पोचर्ड आदि कई पक्षी देखे जा चुके हैं. मगर पहली बार अमूर फाल्कन के नजर आने से पक्षियों की शोध कर रहे लोगों को इसके बारे में जानने में दिलचस्पी जाग गई है.
अमूर नदी के नाम पर है अमूर फाल्कन का नाम
अमूर फाल्कन नाम रूस और चीन की सीमा पर बहने वाली अमूर नदी से मिलता है.अमूर फाल्कन विश्व में सर्वाधिक लंबी यात्रा करने वाले शिकारी पक्षी है.ये उत्तरी चीन और साइबेरिया में प्रजनन करते है, तथा वहां सर्दी का मौसम आने पर भारत और अरब सागर तथा हिंद महासागरीय क्षेत्रों से गुजरते हुए दक्षिणी अफ्रीका तक की यात्रा तय करते हैं.
नागालैंड कहलाता है फाल्कन कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड
राधेश्याम विश्नोई ने बताया कि अमूर फाल्कन अपने वार्षिक प्रवास के दौरान अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड की दोयांग झील में ठहरते हैं.नागालैंड को फाल्कन कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड भी कहा जाता है.प्रवास के दौरान अवैध शिकार, कृषि पद्धतियों में बदलाव और भूमि सुधार से आवास के नुकसान की संभावना, इनके सामने प्रमुख संकट हैं.
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