Rajasthan: अनूपगढ़ में पराली जलाने पर लगा फुलस्टॉप, किसानों ने कमाया ₹1 लाख तक का अतिरिक्त मुनाफा

Parali Burning: अनूपगढ़ के किसानों ने पराली को जलाना अब बंद कर दिया है. वे अब पराली बेचकर प्रति 25 बीघा खेत पर ₹1 लाख तक का मुनाफा कमा रहे हैं. किसानों ने बताया कैसे काम करती है यह नई तकनीक.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
अनूपगढ़ के किसानों ने पराली को 'आग' नहीं, 'आय' का जरिया बनाया, हुई ₹1 लाख तक की कमाई
NDTV Reporter

Rajasthan News: एक तरफ जहां राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले में धान की फसल के अवशेष यानी पराली का धुआं प्रदूषण फैला रहा है, वहीं दूसरी ओर सीमावर्ती अनूपगढ़ के किसानों ने एक अभूतपूर्व बदलाव लाकर देश को नई राह दिखाई है. इन किसानों ने पराली जलाना पूरी तरह बंद कर दिया है और इसे आय के एक बड़े स्रोत में बदल दिया है. पराली की 'समस्या' को 'समाधान' में बदलने का यह मॉडल प्रदूषण पर लगाम लगाने के साथ ही किसानों की आय में ₹1 लाख तक की बढ़ोतरी कर रहा है और स्थानीय मजदूरों को बड़े पैमाने पर रोजगार दे रहा है.

पराली अब समस्या नहीं, आय का जरिया

अनूपगढ़ क्षेत्र, खासकर 28 ए और आसपास के गांवों के किसान अब पराली को जलाकर नष्ट नहीं करते. इसके बजाय, वे नई तकनीक का उपयोग कर पराली को काटकर उसकी गांठें (Bales) बना रहे हैं और उसे सीधे फैक्ट्रियों को बेच रहे हैं. किसान बताते हैं कि बेची गई इस पराली का उपयोग फैक्ट्रियों में इन्थेन ऑयल और बायो गैस बनाने के लिए किया जा रहा है, जिससे यह बेकार वस्तु अब एक मूल्यवान संसाधन बन गई है.

25 बीघे में ₹1 लाख का शुद्ध मुनाफा

गांव 27ए के किसान कश्मीर सिंह कम्बोज बताते हैं कि 2 साल पहले तक पराली जलाना एक बड़ी मजबूरी थी, जिससे न केवल प्रदूषण फैलता था, बल्कि प्रशासन की सख्ती के चलते किसानों को मानसिक तनाव भी झेलना पड़ता था. अब स्थिति पूरी तरह बदल गई है. किसान बताते हैं, '25 बीघे में बची पराली को बेचने पर करीब ₹1 लाख 80 हजार की आय होती है. मशीनों के खर्च (काटने, गांठें बनाने और फैक्ट्री तक पहुंचाने) में लगभग ₹70-80 हजार खर्च होते हैं. इस तरह, किसान को प्रति 25 बीघा खेत पर ₹1 लाख तक की अतिरिक्त आय हो रही है, जो पराली जलाने पर शून्य होती थी. यह नया तरीका पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सीधे किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर रहा है.

तीन मशीनों का कमाल, मजदूरों को भी रोजगार

किसान स्वर्ण सिंह ने बताया कि पराली को काटने और गांठें बनाने का काम तीन चरणों में होता है, जिसके लिए तीन महंगी मशीनों का उपयोग किया जाता है. पहली मशीन पराली को काटती है. दूसरी मशीन कटी हुई पराली को खेत में इकट्ठा करती है. तीसरी मशीन उसकी मजबूत गांठें बनाती है. गांठें बनने के बाद मजदूरों की मदद से ट्रैक्टर और ट्रक में लोड करके उन्हें छत्तरगढ़ स्थित फैक्ट्री तक पहुंचाया जाता है. इस पूरे काम में 50 से 60 मजदूरों की आवश्यकता होती है, जिससे स्थानीय लोगों को बड़ा रोजगार मिल रहा है.

Advertisement

सरपंच की मांग: सब्सिडी मिले तो बदलेगी तस्वीर

ग्राम पंचायत 27ए के सरपंच मनवीर सिंह ने सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती रखी है. उन्होंने बताया कि पराली काटने और गांठें बनाने वाली तीनों मशीनों की कुल कीमत करीब ₹19 लाख है. राजस्थान सरकार इन मशीनों पर सब्सिडी नहीं दे रही है. अगर सरकार पंजाब की तरह यहां भी सब्सिडी देना शुरू कर दे, तो अनूपगढ़ ही नहीं, पूरे राजस्थान के किसान इस तकनीक को अपनाएंगे और प्रदूषण की समस्या पूरी तरह खत्म हो जाएगी. उन्होंने धान की सरकारी खरीद शुरू करने की भी मांग की, जिससे किसानों को और राहत मिल सके. 

ये भी पढ़ें:- टोंक में 6 महीने पुरानी शादी... और फिर मौत! पुलिस में कार्यरत पति पर दहेज हत्या का गंभीर आरोप

Advertisement