Lok Sabha Elections 2024: पश्चिमी राजस्थान में भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटी बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा (Barmer Jaisalmer Lok Sabha Seat) देश की दूसरी सबसे बड़ी लोकसभा सीट है. इस सीट पर करीब 22 लाख 5 हजार मतदाता हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में बाड़मेर जिले की बाड़मेर, चौहटन, शिव, गुड़ामालानी, बालोतरा जिले की बायतु पचपदरा सिवाना और जैसलमेर जिले की जैसलमेर मुख्यालय सीट आती हैं. इन आठ विधानसभा सीटों में से 5 पर बीजेपी का कब्जा है. जबकि 2 पर निर्दलीय और 1 पर कांग्रेस का विधायक है. इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा माना जाता था, लेकिन 2004, 2014 और 2019 में भाजपा ने रिकार्ड तोड़ जीत दर्ज की थी.
बाड़मेर लोकसभा सीट का इतिहास
बाड़मेर लोकसभा सीट के इतिहास की बात करें तो 1952 में पहली बार भवानी सिंह और 1957 में दूसरी बार रघुनाथ सिंह ने यहां से निर्दलीय जीत दर्ज की थी. 1962 में तनसिंह ने राम राज्य परिषद से जीत दर्ज की थी. उसके बाद 1967 से लगातार दो बार कांग्रेस के अमृत नाहटा ने जीते. 1977 साल के चुनाव में जनता पार्टी से चुनाव लड़ रहे तन सिंह ने एक बार जीत दर्ज की थी. 1980 से लगातार कांग्रेस के वृद्धि चंद्र जैन सांसद रहें. 1989 में प्रदेश के दिग्गज राजपूत नेता कल्याण सिंह कालवी ने जनता पार्टी से लड़ा और जीतकर केंद्रीय कृषि बनाए गए. साल 1991 के चुनाव में दिग्गज जाट नेता रामनिवास मिर्धा ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते उनके बाद साल 1996, 98, 99 में तीन चुनावों में लगातार कांग्रेस के कर्नल सोनाराम चौधरी ने जीत दर्ज की. साल 2004 में पहली बार केंद्रीय वित्त विदेश और रक्षा मंत्री रहे जसवंत सिंह जसोल के पुत्र मानवेंद्र सिंह जसोल ने पहली बार इस सीट से भाजपा का खाता खोला. साल 2014 के आम चुनाव जसवंत सिंह जसोल खुद इस सीट टिकट की मांग कर रहे थे, लेकिन टिकट नहीं मिलने के उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था. लेकिन भाजपा कर्नल सोनाराम चौधरी ने 80 हजार वोट से चुनाव जीत लिया. 2019 लोकसभा चुनाव में जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेंद्र सिंह ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस से चुनाव लड़ा, लेकिन भाजपा से चुनाव लड़ रहे कैलाश चौधरी से 3.30 लाख रिकॉर्ड वोटो से चुनाव हार गए.
बाड़मेर लोकसभा सीट का जातीय समीकरण
इस सीट पर कुल मतदाता करीब 22 लाख 5 हजार हैं. इनमें सबसे ज्यादा मूल ओबीसी के करीब 7 लाख मतदाता हैं. इनके अलावा जाट समाज के करीब चार लाख 50 मतदाता हैं. अल्पसंख्यक करीब 2.80 लाख और राजपूत करीब 3 लाख वोट हैं.
बाड़मेर लोकसभा सीट के बड़े मुद्दे
बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट राजस्थान के पश्चिमी इलाके में स्थित है. इन इलाकों में पेयजल, सड़क, शिक्षा, चिकित्सा सहित मूलभूत सुविधाओं का टोटा है. ऐसे में हर चुनाव में मूलभूत सुविधाएं ही बड़ा मुद्दा बनती रही हैं. इस बार मूलभूत सुविधाओं के साथ जिले में स्थापित हो रही रिफायनरी विंड एवं सोलर पावर सेक्टर सहित मल्टीनेशनल कंपनियों में स्थानीय लोगों को रोजगार देने का मुद्दा हावी है.
बाड़मेर लोकसभा सीट से प्रत्याशी
बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट से भाजपा ने केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी को एक बार फिर प्रत्याशी बनाया है. कैलाश चौधरी 2019 में इसी लोकसभा सीट से कांग्रेस के कर्नल मानवेंद्र सिंह जसोल से करीब 350000 के रिकॉर्ड तोड़ वोट से जीते थे. उन्हें केंद्र में राज्य मंत्री बनाया गया था. वहीं कांग्रेस ने हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी छोड़कर पार्टी में शामिल हुए उम्मेदा राम बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया है. दोनों ही राजनीतिक पार्टी द्वारा जाट समाज के वोट बैंक को साधने के लिए जाट समाज के व्यक्ति को ही प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में बाड़मेर जिले की शिव विधानसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी ने भी निर्दलीय ही लोकसभा चुनाव में उतरे हैं. रविंद्र सिंह भाटी स्थानीय को रोजगार मूलभूत सुविधाओं के विस्तार सहित कई मुद्दों पर जनता के बीच जा रहे हैं तो भाजपा के कैलाश चौधरी राम मंदिर हिंदू राष्ट्र और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनावी मैदान में हैं. वहीं कांग्रेस के प्रत्याशी उम्मेदा राम बेनीवाल के प्रति लोगों में बायतु विधानसभा सीट से लगातार दो चुनाव हारने के चलते जबरदस्त सहानुभूति की लहर देखने को मिल रही है. इसी लहर के चलते जाट समाज एकजुट होकर कांग्रेस प्रत्याशी के साथ दिख रहा है.
भाजपा प्रत्याशी कैलाश चौधरी का प्रोफाइल
भाजपा से प्रत्याशी कैलाश चौधरी बालोतरा की रहने वाले हैं. वे जाट समाज से आते हैं. कैलाश चौधरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं. उन्होंने 2008 में बायतु से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन कांग्रेस के कर्नल सोनाराम चौधरी से चुनाव हार गए. दूसरी बार 2013 में फिर बायतु विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बने. 2018 में भी कैलाश चौधरी ने बायतु विधानसभा सीट से तीसरी बार चुनाव लड़ा, लेकिन तीसरे नंबर पर रहे. 2019 के आम चुनाव में आरएसएस की पैरवी के बाद उन्हें भाजपा ने बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट से टिकट देकर मैदान में उतारा और भाजपा से ही बागी होकर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे पूर्व केंद्रीय वित्त विदेश एवं रक्षा मंत्री और भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे जसवंत सिंह जसोल के बेटे मानवेंद्र सिंह जसोल को करीब 3.50 लाख रिकॉर्ड तोड़ वोटो से चुनाव जीतकर केंद्र में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री बनाए गए.
कांग्रेस प्रत्याशी उम्मेदाराम बेनीवाल का प्रोफाइल
बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी उम्मेदाराम बेनीवाल भी जाट समाज से आते हैं. बेनीवाल बालोतरा जिले की बायतु विधानसभा क्षेत्र के गिड़ा के रहने वाले हैं. बेनीवाल दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल की 10 साल की नौकरी के बाद 2018 में राजनीति में उतरे थे. उन्होंने हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की टिकट पर बायतु विधानसभा सीट से पहले चुनाव लड़ा था. लेकिन कांग्रेस के हरीश चौधरी से करीब 13000 वोट से चुनाव हार गए. दूसरी बार 2023 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की टिकट पर बायतु से ही चुनाव लड़ा, लेकिन इस बार भी कांग्रेस के हरीश चौधरी से कांटे की टक्कर में महज 910 वोट से चुनाव हार गए. लगातार दो विधानसभा चुनाव में मिली हार उम्मेदा राम बेनीवाल का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट माना जा रहा है.
निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी का प्रोफाइल
बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट से निर्दलीय ताल ठोक रहे रविंद्र सिंह भाटी ने राजनीति की शुरुआत छात्र राजनीति से की है. भाटी 2019 में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर से छात्र संघ के चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी टिकट मांगी थी, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिली. जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और विश्वविद्यालय के 57 साल के इतिहास में पहली बार निर्दलीय छात्र संघ अध्यक्ष बने. छात्रसंघ अध्यक्ष रहने के दौरान छात्रों के मुद्दों को लेकर कई बार प्रदर्शन किया और पेपर लीक और युवाओं को रोजगार के मुद्दे पर प्रदेश की तत्कालीन गहलोत सरकार के विरुद्ध विधानसभा का घेराव किया. 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले रविंद्र सिंह भाटी भाजपा में शामिल हुए थे और इसी विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट मांग रहे थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला जिसके बाद महज 9 दिन में पार्टी से बगावत करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीतकर विधायक बने. विधानसभा चुनाव के बाद रविंद्र सिंह भाटी भाजपा के साथ जाना चाहते थे, लेकिन भाजपा के कई स्थानीय नेता उनके राह बेरिकेट लगाए हुए थे. और शिव विधानसभा सीट में राज्य सरकार द्वारा हेड पंप स्वीकृति की लिस्ट में रविंद्र सिंह भाटी की अनुशंसा पर दो हेड पंप और भाजपा से चुनाव लड़े प्रत्याशी की अनुशंसा पर 20 हेड पंप स्वीकृत होने के मामले पर उन्होंने लोकसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान किया. इसके बाद प्रदेश से लेकर केंद्रीय स्तर के भाजपा नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी. रविंद्र सिंह भाटी युवाओं में खासे चर्चित हैं. सोशल मीडिया पर उनके प्रति लोगों में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है और खासकर मूल ओबीसी में उनके प्रति क्रेज इस चुनाव में रविंद्र सिंह भाटी के लिए उपयोगी साबित हो सकता है.
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