Protest in barmer against Khejri Cutting: बाड़मेर जिले के शिव उपखंड क्षेत्र में खेजड़ी वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के खिलाफ आंदोलन जारी है. रात के अंधेरे में पेड़ों को काटकर उनके अवशेषों को जलाने की घटनाएं आम हो गई हैं, लेकिन प्रशासन और सरकार की चुप्पी ने स्थानीय लोगों में आक्रोश को जन्म दिया है. इस मुद्दे को लेकर शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी स्थानीय ग्रामीणों के साथ धरने पर बैठ गए हैं और प्रशासन को जमकर खरी-खोटी सुनाई है. स्थानीय लोगों के अनुसार, कटाई करने वाले न केवल पेड़ों को काट रहे हैं, बल्कि मोटे तनों को वाहनों के जरिए गायब कर रहे हैं. इसके बाद बचे हुए अवशेषों को रात के अंधेरे में जलाकर सबूत मिटाने की कोशिश की जा रही है.
4 महीने से हो रही है कार्रवाई की मांग
ग्रामीणों ने कई बार जिला प्रशासन, पुलिस और वन विभाग को इसकी सूचना दी, लेकिन 4 महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. इस उदासीनता से नाराज ग्रामीण पिछले चार महीनों से पर्यावरण संरक्षण के लिए धरने पर बैठे हैं, लेकिन उनकी आवाज अनसुनी रह रही है.
भाटी ने प्रशासन पर उठाए सवाल
भाटी ने प्रशासन की लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा, "पिछले कई महीनों से खेजड़ी वृक्षों की कटाई हो रही है, लेकिन पुलिस और प्रशासन का कहना है कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है. यह निंदनीय है कि एक तरफ सरकार 'एक पेड़ मां के नाम' जैसे अभियान चला रही है, वहीं दूसरी तरफ राजस्थान का राजकीय वृक्ष खेजड़ी बेरहमी से काटा जा रहा है." भाटी ने प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की और चेतावनी दी कि जब तक दोषियों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाए जाते, उनका आंदोलन जारी रहेगा.
पर्यावरण और आजीविका का आधार है खेजड़ी
खेजड़ी वृक्ष राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्रों में पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के लिए जीवन रेखा है. यह पेड़ न केवल मरुस्थल की कठोर जलवायु में हरा-भरा रहता है, बल्कि मिट्टी को उपजाऊ बनाने और भूजल स्तर को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. खेजड़ी की पत्तियां (लूख) पशुओं के लिए चारा हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों में पशुपालन पर निर्भर लोगों की आजीविका चलती है. इसके फल, जिन्हें सांगरी के नाम से जाना जाता है, न केवल स्थानीय भोजन का हिस्सा हैं, बल्कि बाजार में बेचकर ग्रामीण परिवार अपनी जीविका चलाते हैं.
"पुराने जमाने में जब अकाल पड़ता था, तब खेजड़ी के खोखे (फल) खाकर लोग जिंदा रहते थे. आज भी यहां के लोग सांगरी बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं. लेकिन अगर खेजड़ी की कटाई इसी तरह जारी रही, तो यह सांगरी हमारी रसोई और आजीविका से गायब हो जाएगी."
ग्रामीणों का कहना है कि खेजड़ी न केवल उनकी आजीविका, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है. इसकी कटाई रोकना न केवल पर्यावरण संरक्षण, बल्कि राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर को बचाने की जिम्मेदारी भी है.