Rajasthan: ब्रह्माकुमारी की प्रमुख रसजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का निधन, 101 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

Brahma Kumaris' Chief Dadi Ratan Mohini dies at 101: उनका पार्थिव शरीर मंगलवार सुबह राजस्थान के आबू रोड में स्थित ब्रह्माकुमारीज के मुख्यालय शांतिवन में रखा जाएगा, जहां उनके अंतिम दर्शन किए जा सकेंगे.

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ब्रह्माकुमारी की प्रमुख रसजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का 101 साल की उम्र में निधन हो गया.
NDTV Reporter

Rajasthan News: ब्रह्माकुमारी की प्रमुख रसजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का सोमवार देर रात 1 बजकर 20 मिनट पर निधन हो गया. उन्होंने 101 साल की उम्र में अंतिम सांस ली. वे पिछले काफी समय से अस्वस्थ थीं और अहमदाबाद के जाइडिस अस्पताल में अपना इलाज करवा रही थीं. उनका पार्थिव शरीर मंगलवार सुबह राजस्थान के आबू रोड में स्थित ब्रह्माकुमारीज के मुख्यालय शांतिवन में रखा जाएगा, जहां उनके अंतिम दर्शन किए जा सकेंगे. 10 अप्रैल की सुबह 10 बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. ब्रह्माकुमारीज के आधिकारिक फेसुबक अकाउंट से एक पोस्ट के जरिए इसकी पुष्टि की गई है.

वर्ष 2021 से थीं प्रशासनिक प्रमुख

फेसबुक पर लिखा है- 'हमारी परम आदरणीय, ममतामयी मां समान राजयोगिनी दादी रतन मोहिनी ने अथक आध्यात्मिक सेवा के जीवन के बाद 101 वर्ष की आयु में धीरे-धीरे सूक्ष्म लोक में प्रवेश किया है. उनकी दिव्य उपस्थिति और शुद्ध कंपन आध्यात्मिक पथ को रोशन करते रहेंगे और लाखों लोगों का मार्गदर्शन करते रहेंगे. प्रेम, सादगी और उच्च दृष्टि की उनकी विरासत हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेगी. दादी जी 2021 से ब्रह्माकुमारीज की प्रशासनिक प्रमुख थीं.'

13 साल की उम्र में ब्रह्माकुमारीज से जुड़ी

25 मार्च 1925 को सिंध हैदराबाद के एक साधारण परिवार में उनका जन्म हुआ था. माता-पिता ने उनका नाम लक्ष्मी रखा था. लेकिन उस वक्त किसी ने भी नहीं सोचा था कि कल यही बेटी अध्यात्म और नारी शक्ति का जगमग सितारा बनकर सारे जग को रोशन करेगी. बचपन से अध्यात्म के प्रति लगन और परमात्मा को पाने की चाह में मात्र 13 वर्ष की उम्र में लक्ष्मी ने विश्व शांति और नारी सशक्तिकरण की मुहिम में खुद को झोंक दिया. वे 13 साल की उम्र में ब्रह्माकुमारीज से जुड़ गईं और उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज कल्याण में समर्पित कर दिया. 101 साल की उम्र में भी दादी की दिनचर्या अलसुबह ब्रह्ममुहूर्त में 3.30 बजे से शुरू हो जाती थी. सबसे पहले वह परमात्मा का ध्यान करती थीं. राजयोग मेडिटेशन उनकी दिनचर्या में शामिल रहा. 

87 वर्ष की यात्रा की रहीं साक्षी

दादी वर्ष 1937 में ब्रह्माकुमारीज की स्थापना से लेकर आज तक 87 वर्ष की यात्रा की साक्षी रही हैं. पिछले 40 से अधिक वर्ष से वे संगठन के ही युवा प्रभाग की अध्यक्षा की जिम्मेदारी संभाल रही थीं. उनके नेतृत्व में युवा प्रभाग ने देशभर में अनेक राष्ट्रीय युवा पदयात्रा, साइकिल यात्रा और अन्य अभियान चलाए.

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ब्रह्मा बाबा के साथ 32 साल का लंबा सफर

दादी रतनमोहिनी में बचपन से ही भक्तिभाव के संस्कार रहे. छोटी सी उम्र होने के बाद भी आप अन्य बच्चों की तरह खेलने-कूदने के स्थान पर ईश्वर की आराधना में अपना ज्यादा वक्त गुजारती थीं. स्वभाव धीर-गंभीर था. पढ़ाई में भी होशियार होने के साथ प्रतिभा संपन्न रहीं हैं. दादीजी ने वर्ष 1937 से लेकर ब्रह्मा बाबा के अ‌व्यक्त होने (वर्ष 1969) तक साए की तरह साथ रहीं. इन 32 साल में आप बाबा के हर पल साथ रहीं. बाबा का कहना और दादी का करना यह विशेषता शुरू से ही थी.

बहनों की ट्रेनिंग और नियुक्ति की कमान

वर्ष 1996 में ब्रह्माकुमारीज की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तय हुआ कि अब विधिवत बेटियों को ब्रह्माकुमारी बनने की ट्रेनिंग दी जाएगी. इसके लिए एक ट्रेनिंग सेंटर बनाया गया और तत्कालीन मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी प्रकाशमणि ने आपको ट्रेनिंग प्रोग्राम की हेड नियुक्त किया. तब से लेकर आज तक बहनों की नियुक्ति और ट्रेनिंग की जिम्मेदारी दादीजी के हाथों में रही. दादी के नेतृत्व में अब तक 6000 सेवाकेंद्रों की नींव रखी गई है.

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40 साल से युवा प्रभाग की संभाल रही थीं कमान

युवा प्रभाग द्वारा दादीजी के नेतृत्व में 2006 में निकाली गई स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा ने ब्रह्माकुमारीज के इतिहास में एक नया अध्याय लिख दिया. 20 अगस्त 2006 को मुंबई से यात्रा का शुभारंभ किया गया और 29 अगस्त 2006 का तीनसुकिया असम में समापन किया गया. स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा द्वारा पूरे देश में 30 हजार किमी का सफर तय किया गया. इसमें 5 लाख ब्रह्माकुमार भाई-बहनों ने भाग लिया. सवा करोड़ लोगों को शांति, प्रेम, एकता, सौहार्द्र, विश्व बंधुत्व, अध्यात्म, व्यसनमुक्ति और राजयोग ध्यान का संदेश दिया गया.

देश में बनाए कई रिकार्ड

दादी के ही नेतृत्व में 1985 में भारत एकता युवा पदयात्रा निकाली गई. इससे 12550 किमी की दूरी तय की गई. यात्रा का शुभारंभ तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने किया था. कन्याकुमारी से दिल्ली (3300 किमी) की सबसे लंबी यात्रा रही. भारी बारिश और तूफार के दौरान भी राजयोगी भाई-बहनों के कदम नहीं रुके और रेगिस्तान, जल, जंगल, पर्वत का लांघते हुए मिशन पूरा किया. 24 अक्टूबर 1985 को दिल्ली में भव्य समापन समारोह आयोजित किया गया. दादी के निर्देशन में करीब 70 हजार किलोमीटर से अधिक की पैदल यात्राएं निकाली गईं.

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1985 में दादी ने की 13 पैदल यात्राएं

वर्ष 2006 में निकाली गई युवा पदयात्रा ने लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में जहां नाम दर्ज कराया, वहीं सभी यात्रियों ने 30 हजार किमी की पैदल यात्रा तय की. दादी ने 13 मेगा पैदल यात्राएं की हैं. अगस्त 1989 में देश के 67 स्थानों पर एकसाथ अखिल भारतीय नैतिक जागृति अभियान चलाया गया. अभियान में सैकड़ों स्कूल-कॉलेजों, युवा क्लब और सामाजिक सेवा संस्थानों में प्रदर्शनियां, व्याख्यान, सेमिनार और रचनात्मक कार्यशालाएं आयोजित की गईं. इनमें कई राज्यों के राज्यपाल, मुख्यमंत्रियों ने भाग लिया.

दादीजी को डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा

20 फरवरी 2014 को गुलबर्गा विश्वविद्यालय के 32वें दीक्षांत समारोह में कुलपति प्रोफेसर ईटी पुट्टैया और रजिस्ट्रार प्रोफेसर चंद्रकांत यतनूर ने राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा था. उन्हें यह उपाधि विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं के आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक सशक्तिकरण में उनके योगदान के लिए प्रदान की गई. इसके अलावा देश-विदेश में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से समय प्रति समय दादी को सम्मानित किया गया है.

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