बाड़मेर में शिकार हुए हिरणों का स्मारक बनवाएंगे ग्रामीण, साधु-संतों की तरह दी समाधि, लगाया हलवे-चने का भोग  

Barmer Deer Hunting: राजस्थान के गांव में बहुचर्चित हिरण शिकार में मृत हिरणों को साधु संत की तरह हिरणों की विधि-विधान से समाधि दी गई. शिकार हुए घटनास्थल पर ग्रामीणों द्वारा हिरण का स्मारक भी बनाया जाएगा. 

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Deer Hunting Case: राजस्थान के पश्चिमी इलाके के वासिंदो में वन्यजीवों, पर्यावरण और प्रकृति को लेकर विशेष लगाव देखने को मिलता है. यह लोग इनके संरक्षण के लिए हमेशा ही आगे रहते हैं. इन इलाकों में कई ऐसे समुदाय निवास करते हैं जो इन्हें बचाने के लिए अपनी जान की बाजी तक लगा देते हैं. इसका ताजा उदाहरण सोमवार को बाड़मेर जिले के चौहटन इलाके में लीलसर के पास शेरपुरा गांव की सरहद पर हुई एक साथ दर्जनभर से अधिक हिरणों के शिकार की वारदात के बाद देखने को मिला. यहां के ग्रामीणों ने बेजुबानों के शिकार के विरोध में हिरणों के शवों को उठाने से इंकार कर दिया. इसी वजह से वन विभाग को दो दिन तक शव डी फ्रिज में सुरक्षित रखने पड़े और इन दो दिन ग्रामीण धरने पर बैठे रहें.

बनाया जाएगा हिरण स्मारक

अंत में आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद धरना खत्म करने पर सहमत हुए और धरना समाप्त होने के बाद हिरण के शव को साधु संतों की तरह समाधी दी गई. मौके पर ही हवा और चना बनाकर भोग लगाया गया और प्रसाद ग्रामीणों में भी बांटी गई. ग्रामीणों का कहना है कि जिस जगह इन बेजुबानों की हत्या की गई, उस जगह बड़ा हिरण स्मारक बनाया जाएगा.

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'हिरण की हत्या साधु-संत की हत्या करने के बराबर' 

पश्चिमी राजस्थान में हिरण हमेशा ही पूजनीय रहा है. यहां पर कई समुदाय इसकी पूजा करते हैं और अपने घर में बच्चों की तरह पाल-पोश कर बड़ा करते हैं. हिरण बेहद ही शर्मीला जीव है, वह ज्यादातर जंगलों और खेतो में विचरण करता है. यहां मान्यता है कि साधु संत अपना शरीर त्यागने के बाद हिरण योनि में जन्म लेते हैं, इसलिए कई साधु संत हिरण की हत्या साधु की हत्या के बराबर बताते हैं. 

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बिश्नोई समाज हिरण को मानते हैं भगवान का अवतार  

विष्णु समाज का संस्थापक गुरु जंभेश्वर भगवान को माना जाता है. गुरु जंभेश्वर भगवान ने बिश्नोई समाज को 29 धर्म पालने का उपदेश दिया था. इसी के चलते इस समाज का नाम ही दो अलग-अलग संख्याओं को जोड़कर बना है. बीस और नोई मतलब नौ बिश्नोई बना हैं. गुरु जंभेश्वर भगवान ने 29 धर्म में पेड़ पौधे और हिरण को बचाने का उपदेश दिया, जिसके बाद से समाज हिरण के संरक्षण में हमेशा आगे रहता है.

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हिरण संरक्षण में सबसे आगे विश्नोई समाज

विष्णु समाज ने पर्यावरण संरक्षण के लिए कई कुर्बानियां भी दी है. पश्चिमी राजस्थान में बिश्नोई समाज की महिलाएं हिरण के बच्चे को अपने बच्चों की तरह अपना दूध पिलाकर पालती हैं. बिश्नोई समाज के अलावा भी यहां कई ऐसे समाज है जो हिरण के संरक्षण को लेकर हमेशा आगे रहते हैं.

कई बार यहां श्वानों के हमले और वाहन की टक्कर से हिरणों के घायल होने की घटनाएं सामने आती है. ऐसे में यहां के लोग अपने निजी स्तर पर इनका रेस्क्यू इलाज करवाते हैं. इसी तरह शेरपुरा गांव की सरहद में बहुचर्चित हिरण शिकार मामले में ग्रामीणों में हिरण के प्रति करुणा और प्रेम के धरने पर बैठने पर मजबूर किया.

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