Rajasthan: दृष्टिहीन के खिलाफ पुलिस का झूठा मुकदमा, निर्दोष सलाखों के पीछे, हाईकोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

Churu Police: इसी साल मार्च में किडनैपिंग और मारपीट के मामले में मोतिया उर्फ अम्मीचंद (29) को पुलिस ने गिरफ्तार किया था.

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Churu police filed a fake case against a blind person: राजस्थान की चूरू पुलिस ने दृष्टिहीन व्यक्ति के खिलाफ पुलिस ने किडनैपिंग और मारपीट का झूठा मुकदमा दर्ज कर दिया. इसके चलते निर्दोष दिव्यांग अमीचंद करीब दो माह से जेल में बंद है, लेकिन अब हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. अदालत ने रिहाई का आदेश देते हुए याचिकाकर्ता को राजस्थान सरकार को 2 लाख रुपए मुआवजे के रूप में देने के लिए भी निर्देशित किया है. जस्टिस मनोज कुमार गर्ग ने सुनवाई करते हुए तारानगर एडीजे के आदेश को खारिज किया. वहीं, प्रथम जांच अधिकारी और एसएचओ तारानगर के खिलाफ कार्रवाई के भी आदेश दिए गए हैं. एसपी जय यादव ने हैड कांस्टेबल धर्मेंद्र को सस्पेंड कर दिया है.

एसपी की जांच में भी पाया निर्दोष

दरअसल, मार्च-2025 में किडनैपिंग और मारपीट के मामले में मोतिया उर्फ अम्मीचंद (29) को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. अम्मीचंद करीब 85 फीसदी तक दृष्टिबाधित है. चूरू एसपी ने केस की जांच करवाई तो अम्मीचंद को फंसाने की जानकारी सामने आई. हालांकि, तब तक केस में चार्जशीट सब्मिट हो चुकी थी. इसलिए एसपी के रिहाई के आदेश के बाद भी अम्मीचंद जेल से बाहर नहीं आ सका था.

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इस मामले में जस्टिस मनोज गर्ग ने तल्ख टिप्पणी की. उन्होंने कहा, "क़ानून-प्रवर्तन अधिकारियों ने जानबूझकर और द्वेषपूर्ण तरीके से एक निर्दोष व्यक्ति को फंसाया. यह न केवल आपराधिक न्याय प्रणाली की निष्पक्षता को चोट पहुंचाता है, बल्कि नागरिक स्वतंत्रता पर सीधा आघात है. स्टेशन हाउस ऑफिसर और जांच अधिकारी को अम्मीचंद को झूठे तौर पर फंसाने की जिम्मेदारी से बरी नहीं किया जा सकता." इस टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने चूरू के पुलिस अधीक्षक को गलत जांच करने वाले दोषी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई का निर्देश दिया है.

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जानिए क्या है पूरा मामला 

दरअसल, 14 मार्च 2025 चूरू ज़िले के झोथड़ा गांव में विनोद कुमार को 5 युवकों ने किडनैप कर लिया था. उसके साथ मारपीट की और पैसे भी छीन लिए. शिकायतकर्ता हरिसिंह के अनुसार, उसके भतीजे विनोद को किडनैप करने वाले रामनिवास, सोनू और प्रताप सहित दो अज्ञात लोग थे. पुलिस ने उसी शाम एफआईआर दर्ज कर जांच हेडकांस्टेबल धर्मेंद्र कुमार को सौंपी थी. रिपोर्ट में नामजद नहीं होने के बावजूद पुलिस ने मोतिया उर्फ़ अम्मीचन्द को सह-आरोपी बनाया. जबरन उसकी निशानदेही पर डंडा बरामद करना बताया और उसे गिरफ़्तार कर चूरू सेंट्रल जेल भेज दिया. इसके बाद पुलिस ने तारानगर कोर्ट में चार्जशीट भी दाखिल कर दी. इस मामले में पीड़ित मोतिया की तरफ से अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की कोर्ट में जमानत याचिका दायर की गई, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया.

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ट्रेनी आईपीएस की जांच में हुआ खुलासा

इसी बीच, मोतिया के भाई की अर्जी पर चूरू पुलिस अधीक्षक ने जांच एक ट्रेनी IPS अधिकारी को सौंपी. जांच में सामने आया कि दृष्टिबाधित मोतिया घटनास्थल पर नहीं था, बल्कि उसे फंसाया गया है. ट्रेनी आईपीएस की रिपोर्ट के बाद एसपी ने आरोपी जांच अधिकारी को निलंबित कर दिया.

हकीकत सामने आने के बाद पुलिस की ओर से BNS धारा 189 (पुरानी CrPC 169) के तहत "रिहाई आवेदन" दाखिल किया गया. लेकिन, तारानगर कोर्ट ने 27 जून को पुलिस का यह आवेदन खारिज कर दिया था. उनका तर्क था कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद पुनः जांच केवल अदालत की अनुमति से हो सकती है, जबकि यह काम पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर किया गया था.

याचिकाकर्ता ने दायर की थी रिव्यू पिटीशन

इसके बाद याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता कौशल गौतम ने राजस्थान हाईकोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर की. इसे स्वीकार करते हुए जस्टिस मनोज कुमार गर्ग ने 11 जुलाई को मोतिया की रिहाई के आदेश दिए. इतना ही नहीं, कोर्ट ने चूरू कलेक्टर को भी निर्देश दिया कि आदेश से 15 दिन के भीतर पीड़ित मोतिया की दृष्टिबाधिता की मेडिकल कराएं. जांच में दृष्टिबाधिता पुष्टि की पुष्टि होती है, तो राज्य सरकार उसे 2 लाख रुपए मुआवजा देना होगा.

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