Kota: कोचिंग नगरी कोटा में 50 फीसदी तक कम हुई स्टूडेंट्स की संख्या, हॉस्टल संचालक बैंक डिफॉल्टर, कई मेस बंद

Rajasthan News: संचालकों का कहना है कि कोटा में हजारों करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट कर सुनहरे सपने देखे थे, जो अब चकनाचूर हो गए.

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Decrease in the number of students in Kota: इस साल भी जेईई और नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में उपलब्धि कोचिंग सिटी कोटा के नाम रही. बावजूद इसके देशभर से आने वाले स्टूडेंट्स की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है. इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रतियोगी परीक्षा के लिए फेमस कोटा को हजारों करोड़ रुपए की इंडस्ट्री को बड़ा झटका लगा है. स्टूडेंट्स में आत्महत्या के लगातार बढ़ते मामलों का असर यह है कि सत्र शुरू होने के बाद भी सैकड़ों हॉस्टल खाली पड़े हैं. इसका असर यह है कि हॉस्टल फीस 12 हजार रुपए की बजाय 1500 रुपए रह गई है. किराए में जबरदस्त कमी के बाद भी हॉस्टल के कमरे खाली है और हॉस्टल मालिक डिफॉल्टर हो चले हैं. कुछ हॉस्टल को तो बैंक सीज करने की तैयारी कर रहा है.

कोटा के लिए रोजी-रोटी का संकट

स्टूडेंट्स की घटती संख्या का असर पूरे इंडस्ट्री पर देखने को मिल रहा है. इसके चलते हजारों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. जानकारों का कहना है कि जहां साल 2022 में संख्या 2 लाख से भी ज्यादा थी, वहीं इस बार करीब 80 हजार बच्चे ही यहां पढ़ने आए हैं.

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आंकड़ों में समझिए इंडस्ट्री का पूरा गणित

  • कोटा में 4000 हॉस्टल और 2.30 लाख सिंगल रुम है
  • पीजी में करीब 50 हजार रुम
  • कोरोना काल के बाद स्टूडेंट्स का आंकड़ा 2 लाख के पार हो गया था
  • 2024 में कोटा आए थे करीब 1.22 लाख स्टूडेंट्स
  • इस साल करीब 80 हजार स्टूडेंट्स
  • इस साल हॉस्टल-पीजी करीब 60 फीसदी खाली

मेस की संख्या में भारी गिरावट

हरियाणा निवासी हर्षवर्धन पिछले कई सालों से कोटा में मैस चला रहे हैं, लेकिन बीते 2 सालों ने हर्षवर्धन के मेस संचालन को मानो ऐसे ब्रेक लगा दिया है कि अब खर्च निकालना भी मुश्किल हो रहा है. कोरल पार्क जैसे इलाकों में जहां मैस में बच्चों की संख्या 250 से अधिक हुआ करती थी, वह अब सिमटकर 100 रह गई है. खाने के दाम कम करने के बावजूद स्टूडेंट की कमी ने कोटा के सैकड़ों संचालकों की भी कमर तोड़ना शुरू कर दिया है.

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हॉस्टल एसोसिएशन अध्यक्ष भगवान सिंह का कहना है कि सैकड़ों लोगों ने हजारों करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट कर सुनहरे सपने देखे थे, जो अब चकनाचूर हो गए. हालत यह हो गए हैं कि कई सारे हॉस्टल के ताले लग गए और जो खुले हैं, उनके आधे से ज्यादा कमरा खाली हैं. स्टाफ का खर्च निकालना और बिजली का बिल जमा करना तक भारी पड़ रहा है. मेडिकल और इंजीनियरिंग की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने आने वाले स्टूडेंट्स के लिए तैयार हॉस्टल में अब नर्सिंग सहित अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने आने वाले छात्र-छात्रा रह रहे हैं.

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