कड़ाके की ठंड में पाले से हो सकती है फसल बर्बाद, जानिये वो उपाय जिनको अपनाने से पाले से बचाई जा सकती है फसल

दो तीन दिनों से लगातार ठंडी हवाओं के चलने से तापमान में गिरावट होने लगती है, जिसके कारण फसलों एवं उद्यानिकी फसलों पर पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. एक बार पाला पड़ने के बाद आगे भी पाला पड़ने की संभावना बनी रहती है.

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Didwana News: बीते एक सप्ताह से क्षेत्र में कड़ाके की ठंड पड़ रही है. इस कड़ाके की ठंड के साथ शीतलहर का भी असर देखा जा रहा है. इसके कारण फसलों पर पाला पड़ने की आशंका जताई जा रही है. बताया जाता है कि पाले की वजह से खेतों में खड़ी फसलों और नर्सरी में पौध को नुकसान हो जाता है. पाले से होने वाले नुकसान और इससे बचाव को लेकर मौलासर के कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों ने इसके उपाय बताये, जिससे किसान अपनी फसल, सब्जियां और पौध का बचाव कर सकता है. विशेषज्ञ द्वारा दी जा रही जानकारी अपनाकर किसान काफी हद तक अपनी फसलों को सुरक्षित रख सकते हैं. 

ऐसे पड़ता है पाला

दो तीन दिनों से लगातार ठंडी हवाओं के चलने से तापमान में गिरावट होने लगती है, जिसके कारण फसलों एवं उद्यानिकी फसलों पर पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है. एक बार पाला पड़ने के बाद आगे भी पाला पड़ने की संभावना बनी रहती है.

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दो तरह का होता है पाला 

कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर अनोप कुमारी के अनुसार, पाला मुख्यत: दो तरह का होता है. पहला समानान्तर पाला और दूसरा विकिरण द्वारा पाला. विकिरण पाला तब पड़ता है, जब हवा शांत हो तथा आसमान बिल्कुल साफ हो, उस दिन पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है.  पाला तब पड़ता है, जब तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड से कम होते हुए शून्य डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुंच जाता है. ऐसी अवस्था में तापमान को शून्य डिग्री से ऊपर बनाए रखना जरूरी हो जाता है. पाले की अवस्था में पौधों के अंदर का पानी जम जाने से तथा उसका आयतन बढ़ने से पौधों की कोशिकाएं फट जाती हैं, जिसके कारण पत्तियां झुलस जाती हैं और प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होने से फसल में फल और फूल नहीं लगते तथा उपज बुरी तरह प्रभावित होती है.

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इसके अतिरिक्त तापमान कई बार शून्य डिग्री सेल्सियस या इससे भी कम हो जाता है, तो ऐसी अवस्था में ओस की बूंदें पौधों पर जम जाती हैं जिसके कारण पौधों तथा उनकी फलियों और फूलों और पत्तों पर बर्फ जमा होने से ज्यादा नुकसान होता है. यदि पाला की यह अवस्था अधिक देर तक बनी रहे तो पौधे मर भी सकते हैं. पाला विशेषकर दिसंबर तथा जनवरी के महीने में ज्यादा पड़ने की संभावना रहती है.

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ऐसे कर सकते हैं बचाव

जब पाला गिरने की संभावना ज्यादा रहती है, तो किसानो गंधक के तेजाब का 0.1% का घोल बनाकर अपनी फसल पर छिड़काव कर सकते हैं. इसके लिए हजार लीटर पानी में गंधक घोलकर प्रति लीटर के हिसाब से स्प्रे कर सकते हैं. इसके अलावा जो बागबानी फसलों में छोटे फलदार पौधे हैं, उनको ढंक भी सकते हैं. पौधों को ढकने के लिए बाजरे के पुले का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे तीन दिशाओं से ढंका जाए और एक दिशा से थोड़ा खुला रखा जाए, क्योंकि शीत लहर उत्तरी पश्चिमी दिशा से आती है. इसलिए उत्तरी पश्चिमी दिशा से पौधे को ढककर पूर्व पश्चिम दिशा से उसको थोड़ा सा खुला रखें, ताकि पूर्व पश्चिम दिशा से पोधे को सूर्य की रोशनी मिलती रहे. साथ ही पॉलिथीन की शीट से भी पौधे को ढक कर पाले से बचाव किया जा सकता है.

इसके अलावा खेत को सिंचित रखकर भी पाले से बचाव हो सकता है. इस प्रक्रिया में खेत सिंचित रखने से रात को तापमान 4 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ जाएगा. इससे फसलों को बचाया जा सकता है. इसके अलावा फसलों को बचाने के लिए मेढ़ पर उतरी और पश्चिम दिशा पर 15-20 फीट की दूरी पर कूड़ा कचरा जलाकर धुंआ कर सकते हैं. धुंआ करने से भी रात में खेत का तापमान बढ़ जाएगा. धुंआ रात को 2 से 3 के बीच करना चाहिए, क्योंकि पाले का असर इसी समय सबसे अधिक होता है.

इन फसलों पर होता है पाले का असर

पाले का सबसे अधिक असर सरसों और चना की फसलों और नर्सरी में छोटी पौध पर होता है. पाले से पौध लगभग पूरी खत्म हो जाती है.

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