Rajasthan News: राजस्थान के डीडवाना में एक चौंकाने वाला फैसला सामने आया है, जिसने प्रशासन में हड़कंप मचा दिया है. यहां के अपर जिला न्यायाधीश ने एक अहम मामले में जिला कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार की गाड़ियों को जब्त करने का आदेश दिया है. यह फैसला इन तीनों अधिकारियों द्वारा पिछले 8 सालों से बार-बार जारी किए गए अदालत के आदेशों की अनदेखी करने पर सुनाया गया है. कोर्ट ने इसे सीधे तौर पर 'न्यायालय की अवमानना' माना है. यह पूरा मामला एक वक्फ कमेटी से जुड़ा है, जिसमें जमीन को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करने का आदेश दिया गया था. अधिकारियों की लापरवाही से तंग आकर कोर्ट ने यह सख्त कदम उठाया है, जिसे पूरे प्रदेश में एक मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है.
वक्फ से जुड़े मामले में फैसला
यह मामला वक्फ कमेटी डीडवाना बनाम राज्य सरकार का है. इसकी शुरुआत साल 2003 में हुई थी. इस मामले में राजस्थान वक्फ न्यायाधिकरण जयपुर ने 21 दिसंबर 2015 को एक बड़ा फैसला सुनाया. ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में यह माना कि डीडवाना में गजट नोटिफिकेशन में वर्णित कब्रिस्तान की जमीन वक्फ की संपत्ति है. इसके साथ ही, जिला कलेक्टर, एसडीएम और तहसीलदार को आदेश दिया गया था कि वे इस जमीन को राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज करें और यह भी सुनिश्चित करें कि भविष्य में इस पर कोई बदलाव या ट्रांसफर न हो. लेकिन इस फैसले की पालना नहीं हुई. इसलिए, वक्फ कमेटी ने 2016 में अपर जिला न्यायाधीश की अदालत में एक 'इजराय याचिका' दायर की. 'इजराय' का मतलब होता है किसी कोर्ट के फैसले को लागू कराना.
'खुली छूट नहीं दी जा सकती'
न्यायालय ने अपने फैसले में तीनों अधिकारियों को 'लापरवाह' बताया है. कोर्ट ने कहा कि 8 सालों से लंबित इस मामले में बार-बार आदेश जारी करने के बावजूद प्रशासनिक अधिकारी केवल औपचारिकता पूरी कर रहे थे और अगली तारीख लेकर मामले को टालने की कोशिश कर रहे थे. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि यह अधिकारी जानबूझकर आदेश का पालन नहीं कर रहे थे. न्यायाधीश ने कहा, "प्रशासन के इन लापरवाह अधिकारियों को न्यायालय के आदेश न मानने की खुली छूट नहीं दी जा सकती." कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश दिया है कि इजराय के मामलों का निपटारा 6 महीने के भीतर किया जाना चाहिए, लेकिन यह मामला 8 सालों से लटका हुआ है. न्यायालय ने कहा कि बार-बार आदेश जारी होने के बाद भी जब प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो यह साफ हो गया कि अधिकारी इस निर्णय को लागू करना ही नहीं चाहते.
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