डीडवाना जिले के गांव खरेश के एक परिवार के 3 सदस्य लाचारी का जीवन जीने को मजबूर हैं. इस परिवार के तीन भाई - बहन पिछले कई सालों से ऐसी बीमारी से जूझ रहे हैं, जिसने इन्हें न केवल लाचार बना दिया, बल्कि उनकी जिदंगी को भी बदरंग बना दिया. इस बीमारी ने ना केवल उन्हें जिदंगी भर के लिए मोहताज बना दिया, बल्कि अपने मां बाप के लिए भी उन्हें बोझ बना दिया. हालात यह है कि जिन जवान बेटों के कंधों पर परिवार की जिम्मेदारी आनी थी, अब उनकी ही जिम्मेदारी बूढ़े मां-बाप के कंधों पर आ पड़ी है. बीमारी भी ऐसी कि आज तक कोई भी डॉक्टर इस बीमारी का इलाज नहीं कर सके हैं.
कई सालों से तीनों भाई-बहन चारपाई पर ही रहते हैं. बड़ा भाई मुकेश है जबकि छोटा भाई का नाम पुखराज है. जबकि इनकी बहन का नाम प्रिया है. लेकिन विडंबना देखिए कि मुकेश ने 18 साल और पुखराज ने 13 साल चारपाई पर ही गुज़ार दिए. जबकि प्रिया भी 14 सालों से चारपाई पर जीवन व्यतीत कर रही है.अब इनके पैरों में दौड़ने की हिम्मत तो दूर, चलने और खड़ा होने तक की ताकत भी नहीं है. यह पैर इतने लाचार हो चुके हैं, कि अब अपने खुद के जिस्म का वजन तक सहन नहीं कर सकते.
लाल इलाज है बीमारी
दरअसल, डीडवाना के ग्राम खरेश के रहने वाले भंवरलाल बेहद गरीब है. उनकी तीन संतान हैं. सबसे बड़ा उनका लडक़ा मुकेश है. जिसकी उम्र अब 39 साल हो चुकी है. उनकी इकलौती बेटी प्रिया भी 35 साल की हैं . वहीं सबसे छोटा बेटा पुखराज 33 का साल का हो चुका है. इन तीनों को ही एक अजीब बीमारी ने घेर रखा है. लंबे समय तक तो इस बीमारी का कोई पता नहीं चल पाया है, और जब बीमारी का पता चला, तो उसका कोई इलाज ही अब तक नहीं मिला है.
21 साल की उम्र में तीनों को बीमारी ने जकड़ा
उस समय अचानक उसके पैरों में कंपन होने लगा. धीरे-धीरे बढ़ता हुआ यह रोग इतना फैल गया कि उसके पैरों ने जवाब देना बंद कर दिया और मुकेश खड़ा होने में भी असमर्थ हो गया. अंतत: लाचार होकर उसे खटिया पकड़नी पड़ी.
बेटी की शादी की पर बीमारी के बाद ससुराल वालों ने छोड़ दिया
भंवरलाल प्रजापत का कहना है कि उन्हें अपने बेटे मुकेश से काफी उम्मीदें थीं कि वो मां-बाप के बुढापे का सहारा बनेगा, लेकिन तकदीर का खेल देखिए कि जिस उम्र में मां-बाप को सहारा चाहिए वो खुद जवान बेटा मां-बाप का सहारा बना है.
समय बीतता गया और कुछ सालों पहले
ससुराल में वो भी उसी हालातों में चली गई, जिसका दंश उसका भाई मुकेश झेल रहा था. दिक्कतें यहीं नहीं थमी, उसकी बीमारी और बढ़ती लाचारी देखकर प्रिया के पति और ससुराल वाले प्रिया को उसके पिता के घर छोड़ गए, तब से प्रिया अपने पिता के घर पर खटिया पर बैठी अपनी नन्ही बेटी के बारे में सोचती रहती है.
इलाज के लिए ज़मीन तक बेच दी, लेकिन बीमारी का पता तक नहीं चला
पिता भंवरलाल ने बताया कि उन्होंने अपने संतानों के इलाज के दूर -दूर तक के इलाकों से इलाज करवाया, लेकिन कहीं भी ना तो बीमारी समझ में आई और ना ही किसी भी तरह के इलाज से फायदा हुआ. उन्होंने जयपुर, अहदाबाद, अजमेर, मुम्बई समेत कई जगहों पर अपने बच्चों का इलाज करवाया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
बल्कि रोग अपने पैर पसारता गया. या यूं कहें कि विकराल रूप धारण करता गया. बीते 15 सालों में इस परिवार पर क्या-क्या बीती, वो बयां नहीं हो सकता. भंवरलाल ने अपने बच्चों के इलाज के लिए जगह जगह ठोकरे खाई. खूब पैसा बहाया, जमीन तक बिक गई. धार्मिक अनुष्ठानों के भी चक्कर लगाए. इलाज के लिए दर-दर भटकने के बावजूद कोई सुधार नहीं होने से अब भंवरलाल भी मायूस होकर बैठ गए है.
सरकार से कोई मदद नहीं मिली
हालांकि पंचायत स्तर पर पिछले दिनों उन्हें पेंशन, बीपीएल जैसी सुविधाएं मिली है, लेकिन इलाज के नाम पर उन्हें अब तक कुछ नहीं मिला है. ऐसे में उन्हें अपने बच्चों के साथ ही अपनी और अपनी पत्नी के भविष्य को लेकर चिंता सताने लगी है.