Rajasthan Politics: भील प्रदेश का नक्शा जारी होने पर रार, राजेंद्र राठौड़ ने राजकुमार रोत से पूछा- 'आप कैसे स्वयंभू हो गए'

Bhil Pradesh Map: भारत आदिवासी पार्टी ने भील प्रदेश के लिए गुजरात के पूर्वोत्तर, दक्षिणी राजस्थान और मध्य प्रदेश के पश्चिमी हिस्से के जिलों को शामिल करने की मांग की है, जिसमें लगभग 20 पूरे जिले और 19 अन्य के हिस्से शामिल हैं.

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भील प्रदेश के नक्शे पर राजेंद्र राठौड़ और राजकुमार रोत आमने-सामने हो गए हैं. (फाइल फोटो)

Rajasthan News: राजस्थान की राजनीति में नया बवंडर उठ खड़ा हुआ है. बांसवाड़ा-डूंगरपुर से नव-निर्वाचित सांसद और भील आदिवासी समाज के प्रतिनिधि राजकुमार रोत (Rajkumar Roat) द्वारा भील प्रदेश का नक्शा (Bhil Pradesh Map) जारी करना एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम बन गया है. यह सिर्फ एक सामाजिक-सांस्कृतिक मांग नहीं रही, अब यह बहस राजनीतिक अस्मिता, संवैधानिक प्रक्रियाओं और राष्ट्रीय एकता के बीच जकड़ गई है.

15 जुलाई को जारी हुआ था नक्शा

15 जुलाई 2025 को सुबह 9:56 बजे, सांसद राजकुमार रोत ने अपने आधिकारिक एक्स (पूर्व ट्विटर) हैंडल से ‘भील प्रदेश' का नक्शा सार्वजनिक कर दिया. उनके मुताबिक, यह मांग आजादी से पहले से उठती रही है और इसका उद्देश्य आदिवासी संस्कृति, बोली, भाषा और रीति-रिवाजों का संरक्षण है. उनकी इस पोस्ट ने आदिवासी क्षेत्रों में एक नई उम्मीद की लौ जगाई, लेकिन इसके साथ ही राजनीतिक हलकों में विरोध की लपटें भी तेज हो गईं.

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सांसद राजकुमार रोत द्वारा जारी किया गया भील प्रदेश का नक्शा.
Photo Credit: X@roat_mla

राजेंद्र राठौड़ ने बताया 'प्रदेशद्रोह'

राजस्थान बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ (Rajendra Singh Rathore) ने इस कदम को शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक स्टंट करार देते हुए एक्स पर लिखा कि यह राजस्थान की एकता पर सीधा हमला है. उन्होंने कहा, 'आज कोई भील प्रदेश की बात करेगा, कल कोई मरू प्रदेश की मांग करेगा... क्या हम अपने गौरव को टुकड़ों में बांट देंगे?' उनके अनुसार, यह नक्शा प्रदेशद्रोह की श्रेणी में आता है और इसे जनता स्वीकार नहीं करेगी.

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रोत का जवाब: यह अधिकार है, अपराध नहीं

राजकुमार रोत ने राजेंद्र राठौड़ को विनम्र किन्तु तीखे लहजे में जवाब देते हुए एक्स पर लिखा, 'आपने जिन शब्दों का उपयोग किया, वे न केवल असंसदीय हैं, बल्कि झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड की ऐतिहासिक मांगों का भी अपमान है.' उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी और नंदलाल मीणा जैसे नेताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि भील प्रदेश की मांग कोई नई बात नहीं, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक आधार पर खड़ी एक पुरानी मांग है. साथ ही उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 3 और राज्य पुनर्गठन की प्रक्रिया का हवाला देते हुए इसे लोकतांत्रिक अधिकार बताया.

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आदिवासी पहचान बनाम राज्य की एकता पर राजनेता आमने-सामने हो गए हैं.
Photo Credit: Twitter

राठौड़ ने पूछा- 'आप कैसे स्वयंभू हो गए?'

रोत के जवाब पर पलटवार करते हुए राठौड़ ने दो टूक कहा, 'संविधान संसद को राज्यों के पुनर्गठन का अधिकार देता है, न कि किसी सांसद को नक्शा जारी करने का. आप कैसे स्वयंभू हो गए जो लोकसभा, राज्यसभा और संविधान को दरकिनार कर खुद ही नक्शा जारी कर रहे हो? राजस्थान की एकता अटूट है, और ऐसी मांगें देश की संविधानिक भावना और राष्ट्रीय एकता को चोट पहुंचाती हैं. हमारे मतभेद विचारों में हो सकते हैं, लेकिन बयानबाजी करते समय हमें उस संसदीय गरिमा का भी ध्यान रखना चाहिए जिसकी रक्षा करना हम सभी जनप्रतिनिधियों का नैतिक कर्तव्य है.'

संवैधानिक प्रावधान क्या कहते हैं?

भारत का संविधान अनुच्छेद 3 संसद को अधिकार देता है कि वह किसी राज्य का निर्माण, विभाजन या सीमाओं में फेरबदल कर सकती है. हालिया उदाहरण 2014 में तेलंगाना का है, जिसे संविधानिक प्रक्रिया और व्यापक विमर्श के बाद अलग राज्य का दर्जा मिला.

बहस जारी है, लेकिन हल काफी दूर

दरअसल, भील प्रदेश की मांग कोई नई नहीं, पर इस बार यह संसद से सड़क तक नहीं, बल्कि सोशल मीडिया से शुरू होकर सियासी गलियारों में गूंज रही है. रोत इसे संवैधानिक अधिकार और ऐतिहासिक कर्तव्य बताते हैं, वहीं राठौड़ इसे राजनीतिक उकसावे और सामाजिक विषवमन करार दे रहे हैं. इस पूरी बहस में एक बात साफ है—आदिवासी पहचान और राज्य की एकता के बीच  संविधान, राजनीति और जनभावना—तीनों की परीक्षा शुरू हो चुकी है.

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