Diwali 2024: देशभर में दीपावली का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. सनातन धर्म में दीपावली को कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है. इस पांच दिवसीय महापर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है और समापन भाई दूज पर होता है. दीपावली पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. इसके साथ ही इस पर्व से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं और पौराणिक कथाएं हैं. जोधपुर के पंडित हेमंत जोशी ने बताया कि इस वर्ष दीपावली 1 नवंबर को मनाई जाएगी, क्योंकि इसी दिन अमावस्या का सूर्योदय होगा.
भगवान श्रीराम जब 14 वर्षों का वनवास और रावण का वध कर अयोध्या लौटे, तब उनके स्वागत में दीपोत्सव मनाया गया था. इसी परंपरा के आधार पर आज दीपावली मनाई जाती है. पंडवों के वनवास के बाद उनके नगर लौटने पर भी दीपोत्सव मनाने की मान्यता है.
भगवान कृष्ण और नरकासुर वध की कथा
दीपावली के अवसर पर नरक चतुर्दशी भी मनाई जाती है, जिसे भगवान कृष्ण की कथा से जोड़ा जाता है. पंडित जोशी ने बताया कि इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध कर 16,000 पटरानियों को मुक्त किया था, जिससे पाप पर पुण्य की विजय हुई और तभी से दीपोत्सव मनाया जाने लगा.
देवी लक्ष्मी का प्राकट्य और समुद्र मंथन की कथा
जोधपुर के रातानाडा गणेश मंदिर के पुजारी प्रदीप शर्मा ने बताया कि एक बार दुर्वासा ऋषि द्वारा इंद्र को श्राप दिए जाने के बाद देवताओं ने समुद्र मंथन किया, जिससे मां लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ. इसी मंथन के दौरान भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी से विवाह किया और इंद्रदेव ने अपनी खोई शक्ति पुनः प्राप्त की. देवी लक्ष्मी को रात में पृथ्वी पर भ्रमण करने वाला माना गया है, इसलिए दीपावली की रात विशेष पूजा की जाती है.
भगवान गणेश और लक्ष्मी की पूजा का महत्व
इस पर्व पर लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की भी पूजा की जाती है. इसके पीछे यह मान्यता है कि गणेशजी सुख, समृद्धि और शांति के दाता हैं, और लक्ष्मीजी ने उन्हें धन के वितरण का दायित्व सौंपा. इस कारण दीपावली पर उनकी विशेष पूजा होती है ताकि समृद्धि का आशीर्वाद मिले.
दीपावली का महत्व
दीपावली का पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का प्रतीक है. इस दिन दीप जलाने का महत्व है, क्योंकि यह सुख-समृद्धि का प्रतीक है. श्रद्धालु सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में पूजा कर देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करते हैं. सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल की बेला होती है और इसी काल में अधिकतर लोग सिंह लग्न के साथ अन्य जो लग्न होते हैं, उनमें अपनी राशि के अनुसार पूजा करते हैं. इसी समय मां लक्ष्मी विचरण करने आती है और इसी समय पूजा अर्चना करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है.
ये भी पढ़ें- दिवाली पर हजारों साल पुरानी अनूठी परंपरा, अधूरा माना जाता है इसके बिना लक्ष्मी पूजन