Diwali 2025: ग्रीन पटाखों का बढ़ता क्रेज! क्या है 'सूतली बॉम्ब' बनाने की सीक्रेट कारीगरी, जो सबको आ रही पसंद?

Green Crackers Diwali: इस बार राजस्थान समेत देशभर के बाजारों में ग्रीन पटाखे लोगों की पहली पसंद बने हैं. इनके कारीगरों ने बताया कि ये पटाखे कैसे बनाए जाते हैं और इन्हें बनाते समय क्या सावधानियां बरती जाती हैं.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
ग्रीन सुतली बम बनाते हुए कारीगर
NDTV

Green Crackers Diwali: दिवाली आने में बस तीन दिन बाकी हैं. राजस्थान समेत देशभर के बाजार मिठाइयों और पटाखों से सज गए हैं. इस बार ग्रीन पटाखे लोगों की पहली पसंद बने हैं. जिसके लिए प्रदेश का श्रीगंगानगर अपनी खासियत के लिए मशहूर है. यहां कभी फुलझड़ियों का उत्पादन होता था, लेकिन कोविड के बाद यह उद्योग ठप हो गया, तो यहां के पटाखा कारीगरों और मालिकों ने ग्रीन पटाखों की ओर रुख किया, जिसकी बदौलत आज यहां करोड़ों का कारोबार होता है.

 पूरे राजस्थान में सप्लाई होते श्रीगंगानगर के ग्रीन पटाखे

ये ग्रीन पटाखे पूरे राजस्थान में सप्लाई किए जाते हैं. जिले के पुरानी आबादी, मिर्जावाला और साहूवाला स्थित कारखानों में कारीगर और मजदूर अपने हाथों से इन पटाखों को बड़ी मेहनत और सावधानी से तैयार करते हैं.

बम में सुतली डालते हुए कारीगर
Photo Credit: NDTV

धागा बांधने से लेकर फ्यूज डालने तक बरती जाती है सावधानी

यह पूरी तरह से हाथ से बनाया जाता है. इसमें पुरुष और महिला दोनों काम करते हैं. इसके धागे को हरे रंग से रंगा जाता है, जिससे इसे ग्रीन थ्रेड बम नाम दिया गया है. कई बार बम बनने के बाद उसे रंगा जाता है. पटाखा फैक्ट्री में काम करने वाले कारीगरों ने बताया कि पटाखे बनाना बहुत ही सावधानी और बारीकी से किया जाने वाला काम है. धागा बांधने से लेकर फ्यूज डालने तक, पूरा काम बहुत ही सावधानी और बारीकी से किया जाता है.इसमें  किसी मशीन का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि पूरा काम हाथ से ही होता है.

ग्रीन पटाखों में क्या होता है

इसमें पोटेशियम नाइट्रेट, सल्फर और चारकोल को 75:15:10 के अनुपात में बारीक पीसकर मिश्रण तैयार किया जाता है. इसे नम रखा जाता है ताकि धूल न उड़े. यह काम धूल रहित कमरे में किया जाता है, क्योंकि सल्फर ज्वलनशील होता है और जल्दी आग पकड़ लेता है. सूती धागे को हरे रंग में रंगकर 10-15 सेमी लंबाई में काटकर मज़बूत गांठों से बांध दिया जाता है.

Advertisement

बम को धूप में सुखाते हुए
Photo Credit: NDTV

तैयार बम को 24 घंटे तक  जाता है सुखाया

एक छोटे से कागज या प्लास्टिक के चैंबर में 5-10 ग्राम बारूद भरा जाता है. डोरी को कसकर लपेटा जाता है और उसमें फ्यूज लगा दिया जाता है. तैयार बम को 24 घंटे तक सुखाया जाता है. हर बम की जांच की जाती है कि उसमें कोई खराबी तो नहीं है. 50-100 बमों के पैकेट बनाकर राजस्थान के बाजारों में भेजे जाते हैं. ज़्यादा ऑर्डर पाने के लिए यह काम दिवाली से दो महीने पहले पूरा कर लिया जाता है.

 एक बम की लागत होती है 2 से 4 रुपए तक

पटाखा फैक्ट्री में पटाखे खरीदने आए एक युवक ने बताया कि फैक्ट्री में बहुत कम दामों पर अच्छे पटाखे बिकते हैं. साथ ही, इन पटाखों से पर्यावरण प्रदूषण भी बहुत कम होता है.एक पटाखा बम की कीमत 2 से 4 रुपये होती है, जबकि बाजार में यह 10 से 15 रुपये में बिकता है. श्रीगंगानगर की इन फैक्ट्रियों से सालाना 10 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार होता है.

Advertisement

यह भी पढ़ें; Dhanteras 2025: धनतेरस कब है 18 या 19 अक्टूबर? नोट कर लें सही तिथि, पूजा और खरीदारी का शुभ मुहूर्त

Topics mentioned in this article